अर्थव्यवस्था : कल्याणकारी योजनाओं की अहमियत
उन्तीस मार्च को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने और आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने से दुनिया भर में महंगाई बढ़ी है।
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यद्यपि भारत में महंगाई दूसरे देशों की तुलना में कम है और अन्य देशों से इतर भारत ने कोविड के दौरान करों का बोझ भी नहीं बढ़ाया है, लेकिन फिर भी बढ़ती महंगाई आम आदमी के लिए मुश्किलों का कारण बन गई है। ऐसे में सरकार की आर्थिक-सामाजिक कल्याण की योजनाएं महंगाई की मार को कम करने में राहतकारी दिखाई दे रही हैं।
छब्बीस मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट कमेटी की बैठक में महंगाई को देखते हुए सितम्बर, 2022 तक 80 करोड़ आबादी को मुफ्त में राशन जारी रखने का फैसला किया है। गौरतलब है कि कोरोना महामारी शुरू होने के बाद मोदी सरकार ने अप्रैल, 2020 में गरीबों को मुफ्त राशन देने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएम जीकेएवाई) की शुरुआत की थी। योजना के तहत लाभार्थी को उसके सामान्य कोटे के अलावा प्रति व्यक्ति पांच किलो मुफ्त राशन दिया जाता है। खास बात है कि एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड स्कीम के तहत कोई भी व्यक्ति देश के किसी कोने में इस योजना का लाभ ले सकता है।
इसमें दो मत नहीं हैं कि कोरोना काल की तरह यूक्रेन संकट से बढ़ती महंगाई के बीच एक बार फिर देश में लागू आर्थिक-सामाजिक कल्याणकारी योजनाएं राहतदायी हो सकती हैं। जन धन, आधार और मोबाइल (जैम) के जरिए डिजिटल दुनिया से जुड़ना आमजन तक सीधी राहत के मद्देनजर लाभप्रद होगा। देश में करीब 130 करोड़ आधार कॉर्ड, करीब 118 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता, लगभग 80 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता और करीब 44 करोड़ जन धन बैंक खातों का विशाल एकीकृत बुनियादी डिजिटल ढांचा विकसित हो चुका है, जो आमजन को आर्थिक-सामाजिक राहत का आधार बन गया है। जन धन योजना (पीएम जेडीवाई) देश की विकास गति में क्रांतिकारी बदलाव लाई है। इस पहल ने पारदर्शिता को बढ़ावा दिया है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि डायरेक्ट बेनिफेट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए जनवरी, 2022 तक 90 करोड़ से अधिक नागरिक इसका फायदा लेते हुए दिखाई दिए हैं। राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) के मुताबिक सरकार के 54 मंत्रालयों द्वारा 315 डीबीटी योजनाएं संचालित होती हैं। भारतीय स्टेट बैंक इकोरैप द्वारा प्रकाशित शोध रिपोर्ट के मुताबिक जन धन खातों के कारण भारत अब वित्तीय समावेशन के मामले में जर्मनी, चीन और दक्षिण अफ्रीका से आगे है।
उल्लेखनीय है कि बढ़ती महंगाई के बीच सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को डिजिटल करने का दोतरफा फायदा मिल रहा है। जहां वाजिब उपभोक्ताओं को उनके हक का अनाज समय से मिल रहा है, वहीं सरकारी खजाने का दुरुपयोग बंद हुआ है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत पीडीएस के तहत करीब 80 करोड़ लाभार्थियों में से जनवरी, 2022 तक 77 करोड़ से अधिक लाभार्थी डिजिटल रूप से राशन की दुकानों से जुड़ गए हैं। इस प्रणाली को डिजिटल बनाने से तकरीबन 19 करोड़ अपात्रों को बाहर किया जा सका है। यह संख्या कुल 80 करोड़ लाभार्थियों की करीब एक चौथाई है। यह भी गौरतलब है कि 2 अगस्त, 2021 को सरकार ने जो ई-रु पी वाउचर लॉन्च किया है, उसके माध्यम से कल्याण योजनाओं से लाभार्थियों को अधिकतम उपयोगिता देने और सरकारी सब्सिडियों के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के साथ-साथ महंगाई नियंत्रण में भी उपयोगिता दिखाई दे रही है।
निश्चित रूप से देश में किसानों को विभिन्न प्रकार से दी जा रही सहायता और कृषि विकास के प्रोत्साहनों से भी करोड़ों किसानों को महंगाई से राहत मिलेगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक, एक दिसम्बर, 2018 से लागू पीएम किसान सम्मान निधि के तहत 6000 रु पये प्रति वर्ष प्रत्येक किसान को दिए जाने से यह योजना देश के छोटे किसानों का बड़ा संबल बन गई है। अब तक 11.37 करोड़ से अधिक किसानों को 1.82 लाख करोड़ रु पये दिए जाने, फसल बीमा योजना में सुधार, एमएसपी डेढ़ गुना करने, किसान क्रेडिट कार्ड से सस्ती दर से बैंक से कर्ज की व्यवस्था, कृषि निर्यात तेजी से बढ़ने, कृषि बजट बढ़ाने और उपज का लाभकारी मूल्य मिलने से किसानों को महंगाई से राहत मिलेगी। निश्चित रूप से यूक्रेन संकट के बीच जहां पीएम जीकेएवाई के तहत इस साल अप्रैल से सितम्बर तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन देने से उन्हें महंगाई से राहत मिलेगी। उम्मीद करें कि बढ़ती महंगाई के बीच सरकार समाज के विभिन्न वगरे के लिए कोरोनाकाल की तरह विभिन्न आर्थिक-सामाजिक कल्याण योजनाओं का दायरा बढ़ाकर महंगाई पर नियंत्रण में अहम भूमिका निभाएगी।
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