बतंगड़ बेतुक : तू आदमी है कि पाजामा

Last Updated 03 Apr 2022 02:43:57 AM IST

झल्लन आते ही बोला, ‘बधाई हो ददाजू, हमारे योगी जी फिर मुख्यमंत्री बनकर आ गये हैं, पूरे मीडिया में छा गये हैं और सच कहें ददाजू, थोड़ा बहुत हमें भी लुभा गये हैं।’


बतंगड़ बेतुक : तू आदमी है कि पाजामा

हमने कहा, ‘तू आदमी है कि पाजामा, पिछली बार तो तू अखिलेश भइया का गुणगान कर रहा था और ईवीएम से लेकर चुनाव आयोग तक सबके विरुद्ध क्रांति का आह्वान कर रहा था। अब तू कह रहा है कि योगी जी सब जगह छा गये हैं और तेरे मन को भी भा गये हैं।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, आप भी न जाने कैसी-कैसी बात करने लगते हो..अरे, जब बड़े-बड़े नेता कूद-कूदकर इधर से उधर जा सकते हैं तो क्या हम भइया को छोड़कर थोड़ा योगी जी के साथ नहीं आ सकते हैं। हमारे योगी जी राष्ट्रवाद की, सुशासन की, सुरक्षा की, विकास की प्रचंड शपथ ले लिये हैं सो शपथ के प्रवाह में बहकर हम भी योगी के साथ हो लिये हैं।’
हमने कहा, ‘तेरे भइया तो कहते हैं कि भाजपा की जीत के साथ ही अपराधी माफिया बेखौफ हो लिये हैं, अपनी अवांछनीय गतिविधियां शुरू कर दिये हैं, भाजपा राज में पहले की तरह फिर भय और भ्रष्टाचार झलकते हैं और प्रशासनिक अधिकारी इन पर हाथ डालने से झिझकते हैं। भाजपा के शासन में रोज बलात्कार हो रहे हैं, उसके झूठे वादों से परेशान होकर किसान और युवा आत्महत्या पर मजबूर हो रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘हम मानते हैं कि ये बातें हमारे भइया ने कही थीं लेकिन जब तक हम उनके पाले में थे ये बातें तभी तक सही थीं, पर अब हम इन्हें सफेद झूठ बताएंगे और खिसियानी बिल्ली का खंबा नोंचना दिखाएंगे, और असल बात ये कि हमारे योगी बाबा गुंडों-माफियाओं पर फिर बुलडोजर चलवाएंगे।’ हमने कहा, ‘मतलब यह कि गुंडा-माफिया वही होगा जिसे तू गुंडा-माफिया बताएगा और जिसे तू गुंडा-माफिया बताएगा उन्हीं पर अपना बुलडोजर चलवाएगा।’

झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, जब आप समझदार होकर भी मूखरे जैसी बात करते हो तो हमें सचमुच बहुत बुरे लगते हो। क्या आप नहीं जानते कि गुंडे-माफिया हमारे लोकतंत्र और हमारी राजनीति की बेशकीमती संपदा हैं जिस पर सब अपनी-अपनी हैसियत के हिसाब से अधिकार रखते हैं, इन्हीं के बल पर नेता और अधिकारी फूलते-पनपते हैं और चुनाव तथा चुनाव बाद इन्हें  राजनीति की बिसात पर अपने मजबूत मोहरों की तरह चलते हैं।’ हमने कहा, ‘तो तू मानता है कि तेरे योगी बाबा के राज में भी गुंडे-माफिया पलेंगे, फर्क सिर्फ इतना होगा कि उन पर बुलडोजर नहीं चलेंगे।’ झल्लन बोला, ‘आप भी न ददाजू, न जाने क्या-क्या बकने लगते हो, कहां से कहां बहने लगते हो। अरे, बुलडोजर कोई आंख बंद कर थोड़े ही फिराया जाता है, बहुत सोच-समझ कर जहां चलवाना होता है वहीं चलवाया जाता है। और रही योगी बाबा के राज में गुंडे-माफियाओं के पनपने की बात तो किसने कहा कि गुंडे-माफिया सिर्फ भइया के राज में पल सकते हैं, बाबा के राज में भी उनके विशेषाधिकार सुरक्षित हैं सो रंग बदल कर वहां भी पनप सकते हैं।’
हमने कहा, ‘हमारी समझ में नहीं आ रहा कि ये बात कहकर तू योगी बाबा पर कीचड़ उछाल रहा है या उन पर लगने वाली कीचड़ को डिटरजेंट से निकाल रहा है।’ झल्लन बोला, ‘सुनिए ददाजू, न तो हम किसी पर कीचड़ उछाल रहे हैं और न किसी की कीचड़ निकाल रहे हैं। क्योंकि अब हम योगी बाबा के साथ हैं सो उन पर उछली कीचड़ को इत्र बताएंगे और कीचड़ को पूरी तरह विपक्ष का षड़यंत्र बताएंगे।’ हमने कहा, ‘मतलब यह हुआ कि तू तटस्थ होकर सभ्य इंसानों की तरह तटस्थता से किसी चीज का आकलन नहीं करेगा और किसी भी चीज को अच्छा या बुरा बताने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं करेगा?’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, हम तटस्थता और विवेक को मूर्खता का पर्यायवाची मानते हैं इसलिए इनके बारे में जानकर भी नहीं जानते हैं। और दूसरी बात यह ददाजू कि आज के माहौल में जो विवेकशील तटस्थ रहे आते हैं वे न घर के रह जाते हैं न घाट के रह जाते हैं।’  हमने कहा, ‘मनुष्य के जीवन में आदर्शों और सिद्धांतों का कोई चलन है कि नहीं, बेहतर मनुष्य और बेहतर समाज के निर्माण में इनका कोई वजन है कि नहीं?’ झल्लन बोला, ‘पता नहीं ददाजू, आप कौन से जमाने में जी रहे हो जो आज भी आदर्श और सिद्धांत के घूंट पी रहे हो। आप जैसे लोग आदर्श और सिद्धांत के बोझ को जितना ढोना था ढो चुके हो पर नये युग में एकदम नाकारा और बेकार हो चुके हो।’ हमने कहा, ‘तेरा दिमाग फिर गया है जो तू ऐसे समाज विरोधी विचारों से घिर गया है और आदर्श-सिद्धांत को लेकर इतना नीचे गिर गया है।’
वह उठते हुए बोला, ‘देखिए ददाजू, आदर्श और सिद्धांत का घंटा आप अपने गले में लटकाइए, आप ही बजाइए पर हमें इनका फालतू पाठ मत पढ़ाइए। आप चाहते हैं कि हम भी आपकी तरह फालतू हो जायें और बिना धन, सम्मान और सत्ता के मर जायें। हमारी सलाह है कि वक्त रहते अपनी बीमारी का इलाज करा लीजिए और रही-बची जिंदगी इज्जत से बिता लीजिए।’

विभांशु दिव्याल


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