सरोकार : उम्मीदें जगातीं बिहार की लड़कियां

Last Updated 03 Apr 2022 02:40:16 AM IST

एक प्रसिद्ध उक्ति है-औरत पढ़ेगी तो परिवार पढ़ेगा, परिवार से समाज और फिर समाज से राष्ट्र और इस तरह समूचा विश्व शिक्षित होगा।


सरोकार : उम्मीदें जगातीं बिहार की लड़कियां

स्त्री को केंद्र में रखकर गढ़ी गई ये उक्ति समता और बराबरी के लिहाज से विमर्श का विषय है। उपर्युक्त कथन को सौ फीसद सच भी मान लें तो गैरबराबरी के परिदृश्य को कम करके आंका नहीं जा सकता। देश में स्त्री के हक की पैरोकारी करने वाले उसके समान अधिकार, समान न्याय और समान अवसरों की बात भले ही करते रहे हों, लेकिन कड़वे सच से वे भी मुंह नहीं मोड़ सकते, मगर हाल में आई एक सुखद खबर ने एक नई आशा जगाई है। बिहार बोर्ड की ओर से गुरु वार को जारी मैट्रिक के रिजल्ट में औरंगाबाद के दो लड़कियों रामायणी रॉय और प्रज्ञा कुमारी ने मिसाल कायम किया है। एक 487 अंक के साथ स्टेट टॉपर बनी तो दूसरी 485 उनके साथ तीसरे स्थान पर रही। कोरोना काल में स्कूल बंद होने और शिक्षा के पटरी से उतरने के बाबजूद बिहार की इन दो लड़कियों ने कमाल किया है। उनके अथक परिश्रम का कमाल है कि आज उनके समक्ष एक सुनहरा भविष्य बाहें खोले तैयार है।

दोनों ने साथ में परीक्षा की रणनीति तैयार की और संसाधनों की कमी के बावजूद  कामयाबी के झंडे गाड़ दिए। अलबत्ता क्या ये गौर करने वाली बात नहीं की बिहार जैसे राज्यों में जहां लड़के-लड़कियों के बीच बड़ी गैर बराबरी है, समाज से लेकर शिक्षा और घर से लेकर दफ्तर तक लड़कियां भेदभाव की शिकार है। आज भी लड़कियां अनेक मोचरे पर भेदभाव की शिकार है, जिसे कई बार आंकड़ों में इस तरह गोल-मोल कर पेश किया जाता है, जिससे सच हमारी आंखों से ओझल हो जाता है। उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विहंगम दृष्टिपात की आवश्यकता है। स्त्री-पुरु ष अनुपात रोजगार के लिहाज से भी गैरअनुपातिक है। शिक्षा के उच्च संस्थानों में तो गैरबराबरी की यह खाई कमोबेश और  गहरी व चौड़ी है। तमाम कोशिशों के बाद भी असमानता के इस अंतर को पाटा नहीं जा सका है। ऐसे में संबधित एजेसियों सहित मानव संसाधन महकमे की भी भूमिका अहम होगी। शैक्षिक संस्थानों में महिलाओं की स्थिति को सुनिश्चित कर आधी आबादी को सबल और स्वाबलंबी बनाया जा सकेगा। कामकाजी महिलाओं को बढ़ावा देकर सामजिक नजरिये में बदलाव भी लाया जाना भी जरूरी होगा। भारतीय मूल में समानता और समावेशी अवधारणा सदियों से व्याप्त है। तमाम ऐसी मिसालें हैं भी जिन्होंने समाज में बदलाव की नई बुनियाद रखी है।
भारतीय पुरातन शिक्षा और शैक्षिक तंत्र कभी गैर बराबरी की पैरोकारी नहीं करता। ऐसे में स्त्री-पुरु ष समानता से ही शैक्षिक अंतर को पूरा किया जा सकेगा। एक आंकड़े के अनुसार देश में 1.5 लाख स्कूल सरकारी एवं निजी है और इनमें करीब 7 लाख कक्षाएं है। वहीं कॉलेज एवं विश्वविद्यालय स्तर पर 2 लाख कक्षाएं है। इस प्रकार देश में कुल 9 लाख कक्षाएं हैं। करीब 60 साल पहले चलाए गए ब्लैकबोर्ड अभियान को अब तक मुकाम पर नहीं पहुचाया जा सका है। ऐसे में बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है कि समग्र डिजिटलाइजेशन का अंजाम क्या होगा। उल्लेखनीय है कि देश में अनेक राज्यों के सरकारी स्कूलों में स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी बिजली नहीं पहुंची है। बिहार की जिन दो लड़िकयों ने नजीर पेश की है वो कबीलेतारीफ है। अल्प संसाधन में बड़ी सफलता चौंकाती है। राज्य इस दिशा में और ज्यादा संसाधन के साथ आगे आए इसकी अपेक्षा है।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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