तांबा : फिर लौटा चलन

Last Updated 03 Mar 2022 01:38:21 AM IST

पहले तांबा-पीतल, कांसा या चांदी के बर्तनों में भोजन करने का चलन था।


तांबा : फिर लौटा चलन

जमाना बदला, अब उनकी जगह स्टील, लोहा, एल्यूमीनियम, प्लास्टिक और चीनी मिट्टी समेत कई अन्य धातुओं से बने डिजाइनर बर्तनों ने ले ली। पहले मिट्टी के बर्तनों का भी प्रयोग किया जाता था परंतु इन धातुओं की समझ रखने वाले लोगों के घरों में तब पीतल, तांबे या कांस्य के बर्तन जरूर होते थे। ये उनकी संपन्नता के द्योतक भी थे। इसमें कोई दो राय नहीं कि तांबे का पात्र स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभकारी होता है। दरअसल, तांबे के पात्र पर कोई भी वायरस ज्यादा देर नहीं टिक पाता। वैज्ञानिकों की मानें तो तांबे में कोरोना प्रतिरोधक क्षमता के गुण होते हैं। हमने कभी यह नहीं सोचा कि जिन बर्तनों में हम खाते हैं, धातु के हिसाब से वे हमारे लिए कितने उपयोगी हैं?
अमेरिका की पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी ने पिछले साल फरवरी में इस बात को मान्यता दी थी कि वे पदार्थ जिनमें तांबा यानी कॉपर की मात्रा 95.6 प्रतिशत तक हो, वो सार्स-कोविड-2 यानी कोरोना वायरस को 2 घंटे में 99.9 प्रतिशत तक खत्म कर सकते हैं। 10 फरवरी, 2021 को जारी अपने बयान में यूएस-ईपीए ने कहा था कि तांबे से बने मिश्र धातु के वैसे पदाथरे जिनमें तांबा यानी कॉपर की मात्रा अधिकतम हो, में कोरोना वायरस सहित कई अन्य वायरसों से लंबे समय तक लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता होती है, और तांबे से बनी इन मिश्र धातुओं का उपयोग बहुत तरह की चीजों को बनाने में किया जा सकता है। ऐसी वस्तुओं में दरवाजा खोलने वाला हैंडल, सीढ़ियों के किनारे लगी रेलिंग या हर वो वस्तु शामिल हो सकती है, जिसकी सतह को लोग सबसे ज्यादा छूते हैं। यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि यूएस-ईपीए द्वारा दिए गए र्सटििफकेट को दुनिया भर में गोल्ड स्टैंर्डड यानी सबसे बेहतर माना जाता है। इसी तरह न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक तांबे से बनी वस्तुओं की सतह पर कोरोना वायरस ज्यादा से ज्यादा 4 घंटे टिक सकता है जबकि कार्ड बोर्ड पर 24 घंटे और प्लास्टिक या स्टेनलेस स्टील से बनी चीजों पर 48 से 72 घंटे तक टिका रह सकता है।

कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में भारत में तांबे का उपयोग बढ़ रहा है। फरवरी, 2022 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुताबिक भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने कोविड-19 महामारी से लड़ाई के लिए एक स्व-कीटाणुनाशक ‘कॉपर-आधारित नैनोपार्टकिल-कोटेड एंटीवायरल फेस मास्क’ विकसित किया है। यह मास्क कोविड-19 विषाणु के साथ-साथ कई अन्य वायरल और  बैक्टीरियल संक्रमणों के खिलाफ बेहतर काम करता है, और जैव निम्नीकरण (बायोडिग्रेडेबल यानी जैविक रूप से नष्ट होने वाला), सांस लेने में सुविधाजनक और धोने योग्य है। तांबा के नैनो कणों से मिश्रित इस कपड़े के वायरसनाशक गुणों की जांच सीएसआईआर-सीसीएमबी के वैज्ञानिकों ने की और पाया कि यह कपड़ा कोरोना वायरस यानी सार्स एवं कोविड-2 को 99.9 प्रतिशत तक खत्म करने की क्षमता रखता है। इसके बाद, वैज्ञानिकों ने सिंगर लेयर और ट्रिपल लेयर जैसे विभिन्न डिजाइन वाले प्रोटोटाइप (प्रारंभिक नमूना) मास्क का परीक्षण किया और पाया कि कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता के कारण तांबे के नैनो कणों से मिश्रित कपड़े वाला यह सिंगल लेयर मास्क एक नियमित मास्क से कहीं ज्यादा उपयोगी है।
इससे पहले रेल मंत्रालय ने जुलाई, 2020 में घोषणा की थी कि रेल कोच फैक्ट्री, कपूरथला ने कोविड-19 से लड़ने के लिए ‘पोस्ट कोविड कोच’ डिजाइन किया है। कोविड-19 वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए बनाए गए इस कोच की खास बातों में से एक है कॉपर कोटिंगयुक्त रेलिंग व चिटकनी। ये इस कोच में विशेष रूप से लगाई गई हैं। रेल मंत्रालय की विज्ञप्ति के मुताबिक ‘कॉपर के संपर्क में आने वाला वायरस कुछ ही घंटों में निष्क्रिय हो जाता है। कॉपर में सूक्ष्मजीव-रोधी गुण होते हैं। जब कॉपर की सतह पर वायरस आता है तो यह रोगाणु को जोर का झटका देता है, और वायरस के अंदर स्थित डीएनए एवं आरएनए को नष्ट कर देता है। सार्वजनिक परिवहन यानी बस, ट्रेन, मेट्रो वगैरह में जहां दिन-रात लाखों लोग यात्रा करते हैं। ट्रेन या मेट्रो की कोच में लगे हैंडल्स को सबसे ज्यादा लोग छूते हैं, या इनमें लगीं सीटें-जहां लोग बैठते हैं, या बस स्टैंड वगैरह को तांबे का बनाया जा सकता है। इससे यात्रियों को बनी-बनाई सुरक्षा दी जा सकती है।
भारतीय परंपरा में तांबे से बनी वस्तुओं का प्रयोग सदियों से चलता रहा है। खासकर खाने-पीने के बर्तनों में तांबे का प्रयोग तो अभी भी देखा जा सकता है। जैसे तांबे से बनी थालियां, कटोरियां, जग वगैरह। परंपरागत रूप से माना जाता रहा है कि तांबे के बर्तन में रात भर पानी छोड़ दिया जाए और उसी पानी को सुबह-सुबह खाली पेट पीने से पेट की गड़बड़ियां दूर हो जाती हैं। पीतल, जिसका प्रयोग हमारे देश में आम है, में भी दो-तिहाई हिस्सा तांबा ही रहता है।

सुशील देव


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