क्रिप्टो करंसी : बिना मान्यता तेज चलन में
क्रिप्टो करंसी छद्म अदृश्य मुद्रा है, जिसे न तो जेब में रख सकते हैं, न तिजोरी में, न ही बैंक के लॉकर में।
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यह इंटरनेट पर कंप्यूटर या मोबाइल की वैलेट में स्टोर होता है, जिसका कीकोड सिर्फ रखने वाले को पता होता है। मुद्रा विकेंद्रित है, जिसके पीछे कोई केंद्रीय अथॉरिटी नहीं है, न ही किसी अथॉरिटी की अनुमति होती है। इसको बनाने में ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है। बिटक्वाइन सबसे पुरानी क्रिप्टो करंसी है, जिसका प्रचलन 2009 से शुरू हुआ था। यह सबसे कीमती क्रिप्टो करंसी मानी जाती है, और क्रिप्टो करंसी का 50% के लगभग बाजार इसकी परिधि में है। इस करंसी में निवेश वाले लोग अपनी जिम्मेदारी पर करते हैं। पैसा डूब जाने की स्थिति में क्लेम नहीं कर सकते।
क्रिप्टो करंसी की कीमतें घटती-बढ़ती रहती हैं। कभी-कभी तेजी से ऊपर जाती हैं, या नीचे आ जाती हैं। 2017 में बिटक्वाइन की कीमत .1000 थी, नवम्बर, 2021 में .6900 पर पहुंच गई थी। अभी .3500 के लगभग है। बिटकॉइन के अलावा एथेरियम, कारडानो, बिनसक्वाइन, एवलांची एवं डोजक्वाइन बड़ी क्रिप्टो करंसियां हैं, जिनकी कीमतों में 400% से 2900% तक की वृद्धि देखी गई है। एक तरह से यह जुआ है, जिसमें चालाक खिलाड़ी रकम बना लेते हैं। बाकी मुंह देखते रहते हैं। बड़े उद्योगपतियों ने भी इसमें भारी मुनाफा कमाया है।
क्रिप्टो करंसी का चलन जितनी तेजी से हुआ उतनी ही तेजी से घोटाले भी होने लगे हैं। बहुत सारे वेबसाइट फ्रॉड हैं, जो निवेशकों को आकर्षित करते हैं, और उनका धन लेकर बैठ जाते हैं। 2021 में 96 लाख लोगों ने ऐसी वेबसाइट्स से धोखा खाया। केरल में हुए मारिस क्वाइन फ्रॉड में 900 लोगों ने 1200 करोड़ की पूंजी गंवाई। चैन एनालिसिस की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारत में क्रिप्टो करंसी के घोटालों से निवेशकों की 58000 करोड़ से अधिक की रकम डूबी। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री क्रुगमैन के अनुसार क्रिप्टो करंसी एक बुलबुला है, बुराई है, अंतर व्यापार है, प्रचलित वित्त व्यवस्था के लिए खतरा है। बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स ने 2018 में चेताया था कि क्रिप्टो करंसी बुलबुलों का समूह है, पोंजी (धोखाधड़ी) स्कीम है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के अनुसार इसका इस्तेमाल मनी लांड्रिंग एवं टेररिस्ट फंडिंग के लिए भी किया जा सकता है जबकि क्रिप्टो करंसी के पक्षधरों ने इसको इंटरनेट का चमकता सोना और जादुई मुद्रा तक की संज्ञा दे डाली है। उनके अनुसार सरकार से अधिक लोगों की मान्यता है, लोग जो करंसी मान लें वही कीमती है, चाहे वह अप्रत्यक्ष ही क्यों न हो। क्रिप्टो करंसी विश्व की वित्त व्यवस्था में नया प्रयोग है, जो टेक्नोलॉजी की देन है।
क्रिप्टो करंसी किसी सरकार या सरकारी बैंक द्वारा नहीं प्रसारित होती, न ही इस पर किसी का नियंत्रण होता है। इस पर प्रसारित करने वाले का कोई नाम-निशान और पता भी नहीं होता जिससे इसकी कीमत मांगी जा सके। इसको करंसी माना जाए या संपत्ति? यह भी विवादास्पद है। कुछ देशों में इसे संपत्ति के रूप में मान्यता दी गई है, जिसका विनिमय किया जा सकता है। कनाडा में टैक्स के लिए इसे वस्तु के रूप में मान्यता है। यूजर्स को इसके विनिमय की रिपोर्ट सरकार को देनी होती है। क्रिप्टो करंसी एक्सचेंजेज को मनी सर्विस बिजनेस के रूप में मान्यता दी जाती है। अमेरिका में भी एक्सचेंजेज को मनी सर्विस बिजनेस के रूप में मान्यता मिलती है। .10000 के ऊपर के लेन देन की रिपोर्ट उन्हें यूएस ट्रेजरी को देनी पड़ती है। यूरोपियन यूनियन ने क्रिप्टो करंसी को संपत्ति के रूप में मान्यता दी है किंतु इसे लीगल टेंडर नहीं माना है, और बैंकों और लोगों को इसके खतरे से भी अवगत करा दिया है। ऑस्ट्रेलिया में क्रिप्टो करंसी को फाइनेंशियल एसेट के रूप में मान्यता मिली है, और इसका विनिमय टैक्सेबल है। भारत में क्रिप्टो करंसी को सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है किंतु गैर-कानूनी भी नहीं है। इसके लेन देन से होने वाले मुनाफे पर 30% टैक्स देय होता है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास क्रिप्टो करंसी को अर्थव्यवस्था और वित्तीय व्यवस्था के लिए खतरा मानते हैं। रिजर्व बैंक ने 2018 में क्रिप्टो करंसी को बैंन कर दिया था। फरवरी 28, 2019 में एक उच्चस्तरीय सरकारी समिति ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि क्रिप्टो करंसी को भारत में बैन कर दिया जाए। एक बिल का मसौदा भी तैयार किया गया जिसमें प्राइवेट क्रिप्टो करंसियों को बैन करने, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा एक क्रिप्टो करंसी इश्यू करने एवं संबंधित तकनीक को विकसित करने का प्रावधान है। बिल अभी तक संसद में नहीं आया है।
भारत जैसे विकसित देश में क्रिप्टो करंसी वित्तीय अस्थिरता का कारण बन सकती है। निवेशकों को सब्जबाग दिखाकर धोखे से क्रिप्टो करंसी में निवेश से नुकसान उठाने के एक केस में 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्तों को बेल तो दे दी थी किंतु कहा था कि आरबीआई ने जो प्रतिबंध अप्रैल, 2018 में लगाए थे, वे उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं, और अभियुक्तों को निर्देश दिया था कि एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट की जांच में सहयोग करें। किंतु मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम आरबीआई केस में सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई का अप्रैल, 2018 का सकरुलर निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि क्रिप्टो करंसी एक्सचेंजों के खिलाफ अनियमितता आरबीआई ने साबित नहीं की, न ही क्रिप्टो करंसी की ऑनलाइन ट्रेडिंग का विकल्प सुझाया। हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की यह दलील नहीं मानी कि क्रिप्टो करंसी के लेन देन पर प्रतिबंध ट्रेडिंग करने के संवैधानिक अधिकार धारा 19 (1) (जी) का उल्लंघन है। फरवरी 25, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने क्रिप्टो करंसी की कानूनी वैधता को लेकर केंद्र सरकार को स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। क्रिप्टो करंसी के चलन से जो खतरे हैं, उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती, आरबीआई की आशंका निर्मूल नहीं है। इस करंसी को कानूनी मान्यता (लीगल टेंडर) के रूप में नहीं देनी चाहिए, संपत्ति के रूप में मान्यता दी जा सकती है, जैसा कि अधिकांश देश कर रहे हैं। इसके लेन देन से आमदनी पर भारी टैक्स लगाने की आवश्यकता है, सरकार ने 30% टैक्स लगाया है, जो कम है। जनहित में इसके चलन को हतोत्साहित करना चाहिए। क्रिप्टो करंसी एक्सचेंजों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर देना चाहिए, उनको कानून के दायरे में लाना चाहिए और ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए जिनसे निवेशकों को धोखे से बचाया जा सके।
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