टावर ध्वस्तीकरण : ध्वस्त होंगे नापाक मंसूबे

Last Updated 02 Mar 2022 01:24:00 AM IST

तिनका-तिनका जमा करके आशियाना बनता है। कभी-कभार ये आशियाने प्राकृतिक आपदाओं की भेंट चढ़ जाते हैं, जिन पर इंसान का कोई बस नहीं चलता।


टावर ध्वस्तीकरण : ध्वस्त होंगे नापाक मंसूबे

अलबत्ता, लोगों की जिंदगी भर की जमा पूंजी से खड़ी होने वाली इमारत अगर घोर मानवीय लापरवाही, लालच और छल-कपट की भेंट चढ़ जाए तो यह नाकाबिल-ए-माफी जुर्म है। ऐसे में नोएडा स्थित सुपरटेक ट्विन टॉवर को जमींदोज करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती निस्संदेह एक नजीर साबित होगी। इससे अपना घर का सपना देखने वालों को ठगने वाले बिल्डरों और उनके साथ मिलीभगत करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों को कठोर संदेश जाएगा। अपने सिर पर अदद एक छत का सपना देखने वालों के सपने पर तुषारापात नहीं होने पाएगा। साथ ही, यह भी सुनिश्चित होगा कि भविष्य में कोई भी बिल्डर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ न करने पाए।
अदालत की सख्ती के बाद अब इस इमारत की ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। हाल ही में दक्षिण अफ्रीका के दो विशेषज्ञ इसके निरीक्षण के लिए पहुंचे। इस काम की जिम्मेदारी न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डवलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) के जरिए एडिफिस कंपनी को दी गई है। उसके इंजीनियर्स और सैकड़ों मजदूर पहले ही एपेक्स और स्यान नामक इन जुड़वा टॉवरों की दीवार को गिराने और खिड़कियों, दरवाजों एवं गिल्र को निकालने का काम कर रहे हैं। इनमें इस्तेमाल ईट, लकड़ी, लोहे और स्टील को हटाया जा रहा है ताकि इन्हें धवस्त करते समय नुकसान को कम से कम किया जा सके। इसको आगागी 22 मई को एक झटके के साथ विस्फोट करके गिरा दिया जाएगा। विस्फोटकों के लिए इमारतों में छेद बनाए जा रहे हैं।  
अब जबकि सुपरटेक के एमरॉल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट के इन दोनों टॉवरों के ध्वस्तीकरण की उल्टी गिनती शुरू हो गई है, तो बहुत से लोगों को इनका मोह लग रहा है। वैसे तो अदालत ने इनमें बने फ्लैट्स के खरीदारों को उनकी रकम 12 फीसद ब्याज समेत लौटाने का आदेश देकर बड़ी राहत दी है। फिर भी उनमें से कई लोगों को इस बात का मलाल है कि आखिर, उनसे गलती कहां हुई। उन्होंने अथॉरिटी का स्वीकृत लेऑउट और प्रोजेक्ट देखकर ही अपने घर का सपना संजोया था। कुछ लोगों का ऐसा सोचना भी वाजिब है कि इतना बड़ा निर्माण होने के बाद तोड़ना उचित नहीं लगता। इसको तोड़ने और मलबा हटाने में भी 10-20 करोड़ रु पये खर्च होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर, ऐसी नौबत आती ही क्यों है?

वैसे दिल्ली-एनसीआर में बिल्डरों द्वारा अवैध निर्माण के जरिए लोगों को ठगने का यह कोई पहला वाकेया नहीं है। केवल राजधानी दिल्ली में 1700 से ऊपर अनाधिकृत कॉलोनियां हैं। शहर की लगभग 30 प्रतिशत आबादी इन्हीं कॉलोनियों में निवास करती है। दिल्ली के अलावा नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद में आम्रपाली, यूनिटेक, पार्नाथ समेत कई बड़े बिल्डर्स को उनके विभिन्न प्रोजेक्ट्स में कई बार डिफॉल्टर पाया गया। इन्हीं करतूतों की वजह से रियल इस्टेट के कई बड़े खिलाड़ी आज या तो सलाखों के पीछे हैं, या फिर फरार हैं।  
जाहिर है कि ऐसा दुस्साहस वे विकास प्राधिकरणों और दीगर निर्माण एजेंसियों के अधिकारियों की मिलीभगत से कर पाते हैं। कह सकते हैं कि नेताओं, भ्रष्ट अधिकारियों और बिल्डरों का तिगड्डा यह सब किए दे रहा है।
सुपरटेक के एमरॉल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट का मामला भी इससे कुछ अलग नहीं है। मूलत: इसके तहत भूतल समेत 9 फ्लोर के 14 टॉवर बनने थे लेकिन समय के साथ-साथ बिल्डरों के बढ़ते लालच की वजह से इसके टॉवर और फ्लोर, दोनों बढ़ते गए। इस कदर कि उन्होंने 40 मंजिला ट्विन टॉवर बना डाले। न कोई अनुमति और न नक्शे आदि की फिक्र। इस प्रकार नियम विरुद्ध कार्य किया गया। प्रावधान के अनुसार बिल्डरों को आरडब्ल्यूए की स्वीकृति लेनी चाहिए थी जिसकी अनदेखी की गई। यही नहीं, नेशनल बिल्डिंग कोड के दो आवासीय टॉवरों के बीच 16 मीटर की दूरी का भी उल्लंघन किया गया। स्थानीय आरडब्ल्यूए के विरोध को गंभीरता से लिया गया होता तो भी बनने से ही पहले इन ट्विन टॉवर्स में हो रहे नियमों के उल्लंघन को दूर कर लिया गया होता।
काबिलेजिक्र है कि रियल इस्टेट सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए रेरा कानून तो अभी चंद बरस पहले ही पारित हुआ है। ऐसे में यह दलील बेदम लगती है कि इससे अवैध निर्माणों को बल मिला। उसके पहले से ही आर्थिक प्रगति के साथ इस क्षेत्र को पंख लग गए थे। उसी दौरान कुकुरमुत्ते की तरह अवैध निर्माण वजूद में आने लगे। इन अवैध निर्माणों पर अंकुश लगाने के लिए पहले से ही नियम-कानून मौजूद हैं लेकिन जरूरत इस बात की है कि सिंगापुर जैसे बहुमंजिला इमारतों वाले देशों की तरह हमारे यहां भी निर्माण से पहले ही बिल्डरों को ऐसा कोई सर्टिफिकेट या प्रमाण दिया जाना चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि अब बनने वाला भवन किसी भी हालत में तोड़ा नहीं जाएगा। दिल्ली-एनसीआर में यह पहला मौका होगा जब किसी इतनी बड़ी इमारत को विस्फोटकों के जरिए जमींदोज किया जाएगा जिसकी धमक दूर तक जाएगी। इस तरह की सख्त कार्रवाई से अपना घर का सपना देखनों वालों पर कुठाराघात नहीं होगा।

मोहम्मद शहजाद


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