यूक्रेन युद्ध : भारत पर असर लाजिम
भले ही रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया है, लेकिन अभी भी इस युद्ध में अमेरिका या अन्य देश सीधे तौर पर शामिल नहीं हुए हैं।
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सीधे युद्ध की जगह अमेरिका और नाटो ने रूस पर प्रतिबंध लगाने का रास्ता चुना है, लेकिन रूस पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध बहुत प्रभावशाली नहीं हैं। मौजूदा समय में रूस लगाए गए और लगाए जाने वाले प्रतिबंधों का सामना करने के लिए तैयार है। लग रहा है कि रूस ने पूरी तैयारी के बाद ही यूक्रेन पर आक्रमण करने का फैसला किया है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर तनाव बने रहने और विभिन्न उत्पादों की आपूर्ति बाधित होने की संभावना है।
एक अनुमान के अनुसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमत में बढ़ोतरी के अनुरूप भारत में भी तेल की कीमत में 15 से 20 रुपये तक की वृद्धि की जा सकती है। उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत में 1 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि से भारत में तेल की लागत में लगभग 8,000 से 10,000 करोड़ रुपये की वृद्धि होती है। दुनिया में सऊदी अरब, रूस और अमेरिका तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। रूस में 12 प्रतिशत, 12 प्रतिशत सऊदी अरब में और 18 प्रतिशत अमेरिका में कच्चे तेल का उत्पादन होता है। भारत 80 प्रतिशत तेल का आयात करता है। भारत ज्यादातर आयात सऊदी अरब और अमेरिका से करता है, लेकिन कुछ प्रतिशत तेल का आयात इराक, ईरान, ओमान, कुवैत, रूस आदि देशों से भी करता है। रूस और यूक्रेन की लड़ाई से भारत का तेल आयात आंशिक रूप से प्रभावित होना तय है, और इससे भारत के तेल आयात की लागत में बढ़ोतरी होगी जिससे देश की विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आएगी। हालांकि भारत के पास अभी पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा का भंडार है, लेकिन युद्ध कुछ और दिनों या महीनों तक चलता है, तो भारत के लिए भी मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
भारत की कुल ईधन खपत में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी लगभग 6 प्रतिशत है, और इसकी आपूर्ति के लिए भारत पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। भारत इसका आयात कतर, रूस, ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे आदि देशों से करता है। इसे लिक्विफाइड नेचुरल गैस यानी एलएनजी कहा जाता है। भारत लाकर इसे पीएनजी और सीएनजी में परिवर्तित किया जाता है। फिर इसका इस्तेमाल कारखानों, बिजलीघरों, सीएनजी वाहनों और रसोईघरों में होता है। रूस विश्व में प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक है। वैश्विक मांग का 10 प्रतिशत उत्पादन करता है। घरेलू प्राकृतिक गैस की कीमत में एक डॉलर की बढ़ोतरी पर सीएनजी की कीमत भारत में लगभग 5 रु पये प्रति किलो बढ़ जाती है। फिलवक्त, युद्ध की वजह से भारत में सीएनजी की कीमत में 15 से 20 रुपये प्रति किलो तक वृद्धि हो सकती है। प्राकृतिक गैस की कीमत में उछाल आने से रसोई गैस की कीमत भी बढ़ सकती है, जिससे भारत सरकार की सब्सिडी लागत में भी इजाफा होगा।
रूस 40 प्रतिशत तेल और प्राकृतिक गैस, यूरोप को बेचता है, जिसे युद्ध की वजह से रूस बंद कर सकता है। इसलिए अमेरिका कोशिश कर रहा है कि कतर एलएनजी यूरोप को बेचे। अभी कतर एलएनजी भारत, चीन, जापान आदि देशों को बेच रहा है। अगर कतर अमेरिका की बात मान लेता है तो भारत के हिस्से के एलएनजी की कटौती कतर कर सकता है।
ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के आंकड़ों के अनुसार भारत ने वर्ष 2020 में यूक्रेन से 1.45 बिलियन डॉलर का खाद्य तेल आयात किया था। इससे पता चलता है कि भारत खाद्य तेल की अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए यूक्रेन पर आंशिक रूप से निर्भर है। युद्ध शुरू हो जाने से भारत में खाद्य तेल की कीमत में उछाल आने की आशंका बढ़ गई है। इधर, भारत में वर्ष 2020 की तुलना में वर्ष 2021 में खाद्य तेल की कीमत में दोगुनी से भी ज्यादा की वृद्धि हो चुकी है। ऐसे में आम जनता की पहुंच से खाद्य तेल पूरी तरह से दूर हो सकता है। यूक्रेन विश्व का सबसे बड़ा परिष्कृत सूरजमुखी तेल का भी निर्यातक है। दूसरे स्थान पर रूस है। भारत दोनों देशों से सूरजमुखी तेल का आयात करता है। इसलिए इसकी उपलब्धता भारत में कम हो सकती है। यूक्रेन से भारत खाद भी बड़ी मात्रा में खरीदता है। भारत ने वर्ष 2020 में लगभग 210 मिलियन डॉलर का खाद और लगभग 103 मिलियन डॉलर का न्यूक्लियर रिएक्टर व बॉयलर यूक्रेन से खरीदा था। यूक्रेन न्यूक्लियर रिएक्टर और बॉयलर के मामले में भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इसलिए मौजूदा युद्ध से भारत की न्यूक्लियर एनर्जी से जुड़ी परियोजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना लाजिमी है। रूस पैलेडियम का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है, जिसका इस्तेमाल बहुत सारे कीमती उत्पादों के निर्माण में होता है। रूस और यूक्रेन हथियारों के बड़े आपूर्तिकर्ता हैं। भारत भी इनसे हथियार खरीदता है। भारतीय नेवी के इस्तेमाल के लिए टर्बाइन भी यूक्रेन भारत को बेचता है। इसलिए भारत में हथियार की आपूर्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। भारत, रूस से मोती, कीमती पत्थर, धातु भी आयात करता है। इनमें से कुछ का इस्तेमाल फोन और कंप्यूटर बनाने में किया जाता है।
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध का नकारात्मक असर भारत और चीन के बीच के वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भी देखने को मिल सकता है क्योंकि चीन मौके का फायदा उठाकर भारत पर कूटनीतिक दबाव बना सकता है। अमेरिका का पूरा ध्यान अभी रूस पर है, इसलिए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। रूस दुनिया के सबसे बड़े गेहूं निर्यातक देशों में शुमार है जबकि यूक्रेन विश्व में गेहूं का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है। दोनों देशों के गेहूं निर्यात को मिला दें तो यह कुल वैश्विक निर्यात का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। वहीं, भारत विश्व में गेहूं उत्पादन के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि जो देश अभी रूस एवं यूक्रेन से गेहूं आयात कर रहे थे, वे अब भारत से गेहूं का आयात कर सकते हैं क्योंकि कुछ वर्षो में भारत के गेहूं की मांग वैश्विक स्तर पर बढ़ी है।
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध हाल-फिलहाल में खत्म होता नजर नहीं आ रहा है क्योंकि दोनों देश झुकने के लिए तैयार नहीं हैं। अमेरिका और नाटो द्वारा लगाए गए प्रतिबंध ज्यादा प्रभावकारी भी नहीं हैं, जिससे रूस के लिए युद्ध जारी रखना आसान है। ऐसे में भारत की मुश्किलें आगामी दिनों में बढ़ने की प्रबल संभावना है। खासकर आम भारतीयों के लिए क्योंकि वे पहले से ही महंगाई से त्रस्त हैं।
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