शिक्षा : उचित जीवन मूल्यों की अहमियत

Last Updated 27 Feb 2022 12:13:34 AM IST

विश्व की अनेक गंभीर समस्याओं के उलझते जाने का एक प्रमुख कारण है कि उनके समाधान के लिए जो उचित जीवन मूल्यों का प्रसार चाहिए वह उपेक्षित रहा है।


शिक्षा : उचित जीवन मूल्यों की अहमियत

पर्यावरण की गंभीर समस्याएं हों या युद्ध के तनाव की, अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन नियमित होते रहते हैं, पर इनकी सफलता के लिए जो जमीनी स्तर पर बदलाव होना चाहिए, उस पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता।
इस दिशा में पहला कदम यह है कि ऐसे सबसे आवश्यक जीवन-मूल्यों के बारे में व्यापक सहमति बनाई जाए जो एक ओर समाज की वर्तमान समस्याओं को कम करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, और साथ में भविष्य की इससे भी गंभीर चुनौतियों का सामना करने के लिए भी जरूरी है। बहुत सरल सा जीवन मूल्य है-हम अपनी ओर से पूरा प्रयास करें कि अपने किसी वचन या कार्य से दूसरों को (अन्य मनुष्यों व जीवों को) दुख न पहुंचाएं। इस जीवन मूल्य के महत्त्व को पहले गहराई से आत्मसात करना होगा। फिर निरंतरता से उसे साधना होगा तभी इस पर टिक सकेंगे। यही बात अन्य महत्त्वपूर्ण जीवन-मूल्यों पर भी लागू होती है। इन पर टिके रहने के लिए हम बेहद रचनात्मक ऐसे आत्ममंथन और विमर्श से जुड़ते चले जाते हैं, जो हमारे अपने जीवन को बेहतर बनाता है, और साथ में दुनिया को बेहतर बनाने से हमें जोड़ता है।
इसी श्रृंखला में एक अन्य महत्त्वपूर्ण जीवन-मूल्य यह है कि न केवल लैंगिक भेदभाव को विभिन्न स्तरों पर समाप्त किया जाए अपितु लैंगिक संबंधों को आधिपत्य, सत्तात्मकता, भोगवाद व वस्तुतीकरण से मुक्त कर इन्हें परस्पर सम्मान, प्रेम, सहमति, सहजता व मर्यादित खुलेपन की ओर ले जाया जाए। जीवन के किसी भी क्षेत्र में ऐसा न हो कि आधुनिकता के नाम पर समाज के लिए उपयोगी रही मर्यादाओं को अंधाधुंध त्याग दिया जाए। अंधविश्वासों और दकियानूसीपन को छोड़ा जाए। शराब और अन्य नशों, अत्यधिक भोग-विलास के जीवन, व्यभिचार, भ्रष्टाचार, जुए आदि बुराइयों के विरुद्ध जो परंपरागत मान्यताएं हैं वे बनी रहें।
मानव संबंधों में यह एक बड़ी कमी है कि यह प्राय: अपने विचार, अपने हित, अपने स्वार्थ स्थापित करने पर टिके होते हैं। आधिपत्य के संबंध बहुत समस्याएं लाते हैं क्योंकि दूसरे पक्ष के विचारों और जरूरतों को महत्त्व नहीं दिया जाता। निरंतर टकराव, दुख, धोखे, झगड़े की संभावना बनी रहती है। अत: मानव संबंधों का आधार आधिपत्य के स्थान पर सहयोग का होना चाहिए और इसके लिए सतत् प्रयास जरूरी हैं। एक अति महत्त्वपूर्ण जीवन मूल्य है कि यथासंभव अन्याय के विरुद्ध न्याय का साथ अवश्य देना चाहिए। इस जीवन-मूल्य का व्यापक स्तर पर पालन होगा तो दुनिया अहिंसा की राह पर ही व्यापक समानता, न्याय और सबकी जरूरतों को गरिमामय ढंग से पूरा करने की ओर बढ़ेगी।
वास्तव में सभी जीवन मूल्य जीवन को बहुत सार्थक व रचनात्मक बनाते हैं और इस तरह जीवन को अवसाद, बोरियत, आलस्य से मुक्त कर जीवन में उल्लास, उत्साह, आपस में मिल-जुलकर प्रेरक कार्य करने की भावना लाते हैं, जिससे प्रसन्नता प्राप्त होती है। जीवन में कभी खालीपन नहीं लगता है। कोई भी सौ लोग दौड़ें तो उनमें एक ही प्रथम आएगा पर जिस एक को जीत मिलती है, चैन उसे भी नहीं मिलता क्योंकि शिखर पर पंहुचने के बाद उसे शिखर पर जितनी देर हो सके बने रहने का तनाव है। यदि समता और सादगी के जीवन मूल्य अपनाए जाएं तो एक साथ विषमता और हिंसा की समस्याओं से बाहर निकलने का रास्ता नजर आता है। सादगी का अर्थ है कि अपनी जीवन परिस्थिति के अनुसार हम अपनी आवश्यकताओं का निर्धारण कर लें और इससे अधिक कुछ हो तो उसका उपयोग जन-हित में करें।
सादगी का सिद्धांत हमें दूसरों की भलाई करने के लिए तो प्रेरित करेगा ही, नशे, अय्याशी आदि बुराइयों से भी बचाएगा। समता के सिद्धांत का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी करने का अधिकार है। समाज के सभी सदस्यों का कर्त्तव्य है कि गरीब से गरीब व्यक्ति को यह अधिकार मिले। इन दो जीवन-मूल्यों-समता और सादगी का चोली-दामन का साथ है, इन्हें अपनाया जाए तो दूसरों का हक छीनने के लिए जो हिंसा होती है, न वह रहेगी और इस कारण जो विषमता उत्पन्न होती है, वह भी नहीं रहेगी।

भारत डोगरा


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