बतंगड़ बेतुक : झल्लन ने शुरू किया बुर्का आंदोलन
जब अचानक एक बुर्केवाली मोहतरमा बिना झिझक-संकोच हमसे सटकर बैठ गयीं तो हमारे दिलोदिमाग में न जाने कैसी-कैसी घबराहटें पैठ गयीं।
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अगर इन्हें बैठना ही था तो किसी दूसरी बेंच पर बैठ लेतीं और अगर इसी बेंच पर बैठना था तो थोड़ा फासला बना लेतीं। सो हमने ही फासला बना लिया और अपने आपको छह इंच दूर खिसका लिया। तभी मोहतरमा ने अपने चेहरे का नकाब उठाया तो उसमें से झल्लन का मुस्कुराता हुआ चेहरा निकल आया। हमने गुस्से से कहा, ‘ये क्या मजाक है, ये बुर्का क्यों पहन आया है, कहां से उठा लाया है?’
वह बोला, ‘ददाजू, उठाकर नहीं, खरीदकर लाये हैं और अपनी मर्जी से पहनकर आये हैं।’ हमने कहा, ‘हमारी अक्ल पर पत्थर मत मार, चल तुरत ये बुर्का उतार।’ झल्लन बोला, ‘आप हमारे बुर्के पर सवाल उठाकर हम पर लांछन धर रहे हैं और हमारे संविधान की वो जो धारा है जो सबको आजादी देती है, उसका उल्लंघन कर रहे हैं।’ हमने कहा, ‘लगता है हिजाब विवाद ने तेरे दिमाग को ढक्कन कर दिया है तभी तूने ये बुर्का पहन लिया है। हिजाब-बुर्के औरतों के गहने हैं, मदरे ने ये कभी नहीं पहने हैं।’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, हमारा संविधान औरत-मर्द का भेद नहीं करता सो हम भी नहीं करेंगे, संविधान द्वारा दी गयी ओढ़ने-पहनने की आजादी का हम भरपूर इस्तेमाल करेंगे और जिन बुर्का विरोधियों ने संविधान और आजादी को खतरे में डाल दिया है हम उन्हें हराकर रहेंगे।’
हमने कहा, ‘भाई, सामाजिक अनुशासन भी तो कुछ होता है, उसका अनुपालन भी जरूरी होता है। आजादी का मतलब यह तो नहीं कि लंगोट उतार कर सर पर सहेज लो और पगड़ी उतारकर कमर में फेंट लो। हर जगह का अपना एक अनुशासन होता है जिसका सबको ध्यान रखना होता है, कभी-कभी हमें समान अनुशासन के लिए अपनी-अपनी रीति-रिवायत से हटना भी होता है। घर में हम लुंगी लपेटकर रहते हैं तो इसका ये मतलब नहीं कि हम बाजार भी लुंगी लपेटकर चले जायें, नकाब-बुर्का जिनके लिए है उनके लिए है इसका मतलब यह नहीं कि झल्लन मियां भी बुर्का पहनकर पार्क में चले आयें।’
झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, अनुशासन और कोड-वोड जिसके लिए होगा होता होगा, पर हम कोई अनुशासन नहीं मानेंगे, कहीं भी कुछ भी पहनने-ओढ़ने का हमारा पैदाइशी हक है सो हम अपने हक की मांग नहीं टालेंगे।’ हमने कहा, ‘तेरे सखा-संघाती सब बिना बुर्का आएंगे, इक्कीसवीं सदी में जहां औरतें खुद बुर्के से बाहर निकल रही हैं तब तुझे बुर्का पहने हुए देखेंगे तो तेरा मजाक नहीं उड़ाएंगे?’ झल्लन बोला, ‘सुनो ददाजू, लोग भले हमारा मजाक उड़ाएं हम बुर्का तो अब नहीं हटाएंगे, रही इक्कीसवीं सदी की बात तो हम अपनी इस लोकतांत्रिक बुर्का संस्कृति को पच्चीसवीं सदी में भी ले जाएंगे।’
हमने कहा, ‘देख झल्लन, लोकतंत्र एक जाति-मजहब के लिए नहीं होता, सबके लिए होता है। इसमें अपनी रवायती जिद का कुछ त्याग भी जरूरी होता है। बहुलतावादी लोकतंत्र में पहनने-ओढ़ने, खाने-पीने, पढ़ने-सीखने, व्यवसाय-नौकरी करने की एक सांझा संस्कृति भी होती है जिसमें हर कोई हर किसी को अपना जैसा समझता है, भेदभाव से अलग हटता है और ऐसा करने से ही एक-दूसरे के प्रति दोस्ती, भरोसे, विश्वास का रिश्ता बनता है।’ झल्लन बोला, ‘दोस्ती, विश्वास का रिश्ता बने या न बने पर हम अपना बुर्का नहीं छोड़ेंगे, बुर्के से हमने अपनी तहजीबी पहचान बना ली है सो इससे रिश्ता नहीं तोड़ेंगे।’ हमने कहा, ‘अबे पागल, बुर्का औरतों की पहचान है मदरे की नहीं, तू मर्द होकर बुर्का पहन रहा है तो लगता है तू राजनीति कर रहा है और तेरी नीयत सही नहीं।’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, हम बुर्के के सहारे खुद को दूसरों से अलग दिखा रहे हैं, अपनी अलग पहचान बना रहे हैं तो आप काहे इस पर मातम मना रहे हैं? और जो आप राजनीति की बात कर रहे हैं तो बताइए, राजनीति यहां नहीं है या वहां नहीं है, सोचिए, यह राजनीति कहां नहीं है?’
हमने कहा, ‘चुनाव का मौसम चल रहा है, शायद तभी तू अपने ऊपर बुर्का झल रहा है, पर हमें तेरा यह बुर्का बहुत खल रहा है।’ झल्लन बोला, ‘आपको खले या न खले हम इस पर नहीं जाएंगे, हां, चुनाव में अपना बुर्का जरूर लहराएंगे और अपने लिए वोट जुटाएंगे।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, चुनाव में बुर्के को मुद्दा बनाना अच्छी बात नहीं लगती, पर हैरानी है कि तेरे दिमाग में ये बात क्यों नहीं जगती? औरतों के बुर्का पहनने पर तो कोई बात हो सकती है मगर मदरे के बुर्का पहनने की बात हमें कहीं से नहीं जमती है। ये तेरा नया कायदा होगा पर इससे क्या फायदा होगा?’
झल्लन बोला, ‘पहला फायदा तो ये होगा ददाजू कि कोई छोरी हमारे ऊपर बुरी नजर नहीं डाल पाएगी, हमारी नीयत खराब होने से बच जाएगी और दूसरा फायदा यह कि कोरोना जैसी कोई महामारी भी हमारे पास नहीं आएगी क्योंकि हमें मास्क लगाने की जरूरत ही नहीं रह जाएगी।’ हमने कहा, ‘तेरी इस बात की सब हंसी उड़ाएंगे, मर्द तेरे साथ नहीं आएंगे।’ वह बोला, ‘तो ददाजू, हम हर मर्द को बुर्का पहनाएंगे, इसके लिए ‘बुर्का पहनो’ अभियान चलाएंगे, अभियान का उद्घाटन आपसे करवाएंगे और पहला बुर्का आपके लिए ही लाएंगे।’
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