मुद्दा : इस चेतावनी को समझे सरकार
भारत का पहला नियोजित शहर चंडीगढ़ एक ऐसी स्थिति से गुजरा है, जिसकी कभी कल्पना नहीं की गई थी। निजीकरण के विरोध में चंडीगढ़ के बिजली कर्मचारी सोमवार मध्यरात्रि को यह कह कर 72 घंटे की हड़ताल पर चले गए कि मांगें नहीं मानी तो हड़ताल अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा देंगे।
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इससे पूर्व स्थानीय अखबारों में खबरें छपी थीं कि लोग इनवर्टर, पॉवर बैंक और मोबाइल आदि पहले से चार्ज करके रखें, क्योंकि यदि बिजली बंद हो गई तो तीन दिन बाद ही ठीक हो पाएगी।
यह एक दुविधा में डालने वाली खबर थी, लेकिन लोग कर भी क्या सकते थे। रात 12 बजे से हड़ताल शुरू होनी थी, मगर तय समय से आधा घंटा पहले ही अधिकांश क्षेत्रों की बत्ती गुल हो गई। बाद में पता चला कि हड़ताली कर्मचारियों ने हड़ताल पर जाने से पहले खुद ही बिजली काट दी थी। इससे भी अधिक खतरनाक हरकत यह की गई कि सेक्टर 16 और सेक्टर 32 स्थित दो प्रमुख सरकारी अस्पतालों की बिजली सबसे पहले काटी गई। यह एक आपराधिक कृत्य था, जिसकी अब जांच हो रही है। कोरोना की तीसरी लहर अभी समाप्त नहीं हुई है और अनेक मरीज गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) और वेंटिलेटर जैसे जीवन रक्षक उपकरणों पर हैं।
ऐसे में बिजली का लंबे समय के लिए न सिर्फ चले जाना, बल्कि हड़ताल समाप्त होने के बाद ही ठीक हो पाना, एक चिंताजनक स्थिति थी। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए स्थिति की समीक्षा की और केंद्र शासित के चीफ इंजीनियर को तलब किया। यह पूछा गया कि जब दो माह पहले ही हड़ताल का नोटिस दिया गया था तो बिजली के सुचारू वितरण और दुरुस्तीकरण की वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गई? हड़ताल के पहले दिन ही त्राहि-त्राहि होने लगी।
औद्योगिक क्षेत्रों में उत्पादन ठप हो गया, जिससे इंडस्ट्री को हर रोज 70 करोड़ रु पये तक का नुकसान होने की बात कही गई। छात्र ऑनलाइन परीक्षाएं नहीं दे पाए। ट्रैफिक लाइटें बंद होने से यातायात अस्त-व्यस्त हो गया। टेलीकॉम कंपनियों को कठिनाई हुई। रात में शहर में और सड़कों पर जैसा ब्लैक आउट रहा, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया था। थोड़ी देर के लिए किसी क्षेत्र में बिजली चले जाना और इस ब्लैक आउट में फर्क यह था कि इसके तीन दिन तक ठीक होने की उम्मीद नहीं थी। प्रशासन ने पड़ोसी राज्यों से बिजली कर्मचारी मांगे, लेकिन पंजाब और हरियाणा ने साफ इनकार कर दिया।
वैकल्पिक व्यवस्था के लिए अधिकारी स्तर के लोग तैनात किए गए, लेकिन उनका कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि लाइनमैन का काम करने के लिए कोई मौजूद नहीं था। हेल्पलाइन पर शिकायतों का अंबार लग रहा था, परंतु वहां से भी अटपटे जवाब दिए जा रहे थे, जैसे हड़ताल खत्म होने पर ही बिजली ठीक होगी। किसी ने शिकायत कि पानी नहीं आ रहा है, तो उत्तर दिया गया हमारे यहां भी नहीं आ रहा है। बिजली के निजीकरण की बात करें तो, केंद्र सरकार ने केंद्र शासित प्रदेशों की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के निजीकरण की प्रक्रिया 2020 में शुरू की थी, जिसकी शुरुआत चंडीगढ़ से हुई।
अन्य केंद्रशासित (यूटी) राज्य जहां ऐसा होना है, उनमें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादर और नगर हवेली, दमन और दीव के डिस्कॉम शामिल हैं। पुडुचेरी और जम्मू- कश्मीर तथा लद्दाख के डिस्कॉम क्रमश: राजनीतिक विरोध और सुरक्षा जैसे मुद्दों के कारण तुरंत प्रस्ताव पर नहीं हैं। लक्षद्वीप द्वीप समूह को बिजली की मांग कम होने के कारण फिलहाल निजीकरण से बाहर रखा गया है। आरपी-संजीव गोयनका समूह की एमिनेंट ने 871 करोड़ रुपये की उच्चतम बोली प्रस्तुत की थी। यूटी पॉवरमैन यूनियन द्वारा दायर एक याचिका पर, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने निविदा प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी, परंतु 12 जनवरी को शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और यूटी प्रशासन ने निजीकरण प्रक्रिया के लिए टेंडर की बिक्री फिर से शुरू कर दी। हड़ताली कर्मचारी जब बातचीत से नहीं माने तो चंडीगढ़ प्रशासन ने आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम (एस्मा) लागू करके बिजली विभाग द्वारा छह महीने के लिए हड़ताल पर प्रतिबंध लगा दिया। तब जाकर हड़ताल समाप्त हुई। सवाल यह है कि एक सुव्यवस्थित और तीन राजधानियों वाले शहर का यह हाल हो गया, तो देश के बाकी शहरों में क्या हालात हो सकते हैं?
बात सिर्फ बिजली के निजीकरण की नहीं है। कायदे से किसी भी प्रकार की आवश्यक सेवाओं में कोताही नहीं होनी चाहिए। अपनी जायज मांगें संबंधित पक्ष के सामने रखना और अपने हितों की रक्षा करने के लिए लड़ाई लड़ना एक बात है, परंतु आम जनता का जीवन संकट में डाल देना दूसरी और महत्त्वपूर्ण बात है। पूरी व्यवस्था को भंग करने की इजाजत भी किसी विभाग के कर्मचारियों को कतई नहीं दी जा सकती। वहीं प्रशासनिक अधिकारियों को भी इस घटना से एक सबक यह लेना होगा कि बिजली जैसी अति आवश्यक सेवा के लिए हर हालत में वैकल्पिक व्यवस्था बना कर रखनी चाहिए। प्रशासन ने तो अपना पल्ला छाड़ कर आपातकाल से निबटने के लिए जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया था। अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिए चंडीगढ़ की घटना एक केस स्टडी साबित होगी।
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