क्रिकेट : टीम इंडिया में बदलाव की जरूरत

Last Updated 25 Jan 2022 04:54:16 AM IST

विराट कोहली से वनडे की कप्तानी छिनने के बाद दक्षिण अफ्रीका के साथ टीम इंडिया की यह पहली सीरीज थी।


क्रिकेट : टीम इंडिया में बदलाव की जरूरत

 इस दौरान टीम की बॉडी लैंग्वेज पहली जैसी कतई नजर नहीं आई। टीम के प्रदर्शन में बिखराव साफ नजर आया। इस सीरीज के दौरान टीम इंडिया गलतियों से सीखने के बजाय उन्हें लगातार दोहराती रही। इसका ही नतीजा था कि भारत का इस तीन मैचों की वनडे सीरीज में 3-0 से क्लीन स्वीप हो गया। यह भारतीय टीम के वनडे इतिहास में सिर्फ पांचवां मौका है, जब उसे वनडे सीरीज में क्लीन स्वीप का सामना करना पड़ा है। इससे पहले आखिरी बार 2020 में न्यूजीलैंड के खिलाफ टीम इंडिया को पूर्ण सफाए का सामना करना पड़ा था।
अब सवाल यह है कि जो टीम पिछले लंबे समय से वनडे प्रारूप में विजयी तालमेल के रूप में पहचानी जाती थी, वह दोयम दज्रे की टीम कैसे बन गई। इसकी वजह शायद नेतृत्व परिवर्तन से टीम में बिखराव, पारी की अच्छी शुरुआत नहीं हो पाना और गेंदबाजी में दमदार प्रदर्शन नहीं कर पाना हैं। विराट को वनडे कप्तानी से हटाने के बाद रोहित शर्मा को इस प्रारूप का कप्तान बनाया गया था, लेकिन वह चोटिल होने के कारण दौरे पर नहीं जा सके। इस स्थिति में केएल राहुल को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। पर वह इस जिम्मेदारी को निभाते समय तमाम गलतियां करते नजर आए और इसका टीम को भी खमियाजा भुगतना पड़ा। वह अपने टीम साथियों को अपना बेस्ट देने के लिए प्रेरित कर ही नहीं सके। आमतौर पर कप्तान के मैच के दौरान लिए जाने वाले फैसलों की तो अहम भूमिका होती ही है, साथ ही उसका प्रदर्शन भी साथी खिलाड़ियों को प्रेरित करता है।

पर केएल के कुछ गलत फैसलों के साथ बल्ले से चमक नहीं बिखेर पाने से भी टीम इंडिया का प्रदर्शन प्रभावित हुआ। इस सीरीज में केएल राहुल एक ओपनर के तौर पर भी नहीं चल सके। उन्होंने तीन मैचों में मात्र 76 रन बनाए, जिसमें एक पारी में 55 रनों का योगदान शामिल है। इसका मतलब हुआ कि बाकी दो मैचों में वह 21 रनों का योगदान ही कर सके। सही मायनों में भारतीय मध्यक्रम का भी रनों का सह योगदान नहीं कर पाना भी भारत की हार का प्रमुख कारण रहा। सीरीज के दौरान मध्यक्रम में खेले श्रेयस अय्यर, ऋषभ पंत और सूर्यकुमार यादव सभी गलत शॉट चयन के शिकार बने। दिक्कत की बात यह रही कि इन बल्लेबाजों ने इस गलती को दोहराकर यह संकेत दिया कि वह गलती से सीख नहीं रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि पंत लंबे समय तक वनडे टीम की योजना का हिस्सा नहीं रहे हैं। पर पिछले कुछ समय से टेस्ट में अच्छे प्रदर्शन के बाद उन्हें वनडे में भी मौका दिया जाने लगा है, लेकिन लगता है कि वह मिले मौके का फायदा उठाने में किसी हद तक नाकाम रहे हैं। पंत ही नहीं श्रेयस और सूर्यकुमार भी गैर जिम्मेदाराना शॉट खेलकर आउट हुए। कोच राहुल द्रविड़ को इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना बेहद जरूरी है। भारतीय गेंदबाजी आक्रमण भी प्रभाव छोड़ने में असफल रहा। पहले दो मैचों में खेले भुवनेर कुमार के प्रदर्शन से लगा कि अब उनमें पहले वाली बात नहीं रही है। वह गति के मालिक तो पहले भी नहीं थे पर स्विंग के कमाल से जलवा बिखेरने में सफल रहते थे। इस दौरे पर उनके प्रदर्शन को देखकर लगा कि अब उनसे आगे बढ़ने का समय आ गया है। वनडे प्रारूप में भारतीय आक्रमण की अगुआई जसप्रीत बुमराह करते हैं, लेकिन दूसरे छोर से सही सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से वह दबाव बनाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। इस कमजोरी की वजह से ही भारत पॉवरप्ले में विकेट निकालने के मामले में फिसड्डी साबित हो रहा है।  बुमराह इस दौरान खेले 11 मैचों में पॉवरप्ले में 43 ओवर फेंककर सिर्फ एक विकेट ही निकाल सके हैं। आखिरी वनडे में दीपक चाहर और प्रसिद्ध कृष्णा को सीरीज में पहली बार खिलाया गया और उन्होंने गेंदबाजी से प्रभावित करके भविष्य के लिए उम्मीद जरूर बंधाई है। पर इस आक्रमण में एक बाएं हाथ के पेस गेंदबाज की कमी भी महसूस की जाती रही है। सीरीज के दौरान एक बात और उभरकर आई कि हमारे पास हार्दिक पांडय़ा, रविंद्र जडेजा और वाशिंगटन सुंदर के विकल्प मौजूद नहीं हैं। इस तिकड़ी की इस दौरे पर कमी महसूस की जाती रही।
असल में यह तीनों ही गेंदबाजी के साथ-साथ अच्छी बल्लेबाजी करने की क्षमता भी रखते हैं। इससे टीम में संतुलन बनाने में आसानी होती है। यही वजह है कि तीसरे वनडे में दीपक के शानदार अर्धशतक से टीम को जीत की दहलीज पर पहुंचाने के बाद भी बाकी दो बल्लेबाज जीत के लिए जरूरी 10 रन तक नहीं बना सके। पिछले कुछ सालों से टीम की एक दिक्कत यह भी रही है कि विशेषज्ञ बल्लेबाजों में से कोई भी पार्ट टाइम गेंदबाज नहीं है। इस सीरीज में श्रेयस को इस भूमिका निभाते देखकर अच्छा लगा। ऐसा करके गेंदबाजों के भार को कुछ कम किया जा सकता है। भारत में 2023 में होने वाले आईसीसी विश्व कप के आयोजन में साल से कुछ ही समय बाकी है। इसलिए वनडे टीम को अंतिम रूप देने का समय अब आ गया है। ऐसा करके विश्व कप तक खेले जाने वाले 14-15 मैचों में इन खिलाड़ियों को मजबूती दी जा सकती है।

मनोज चतुव्रेदी


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