पर्यावरण मंत्रालय : राज्यों को प्रोत्साहन!

Last Updated 24 Jan 2022 02:13:22 AM IST

पिछले दिनों केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक विवादास्पद कदम में पर्यावरण मंजूरी देने में दक्षता और समय-सीमा के आधार पर राज्यों को रैंकिंग देकर प्रोत्साहन देने का फैसला किया है।


पर्यावरण मंत्रालय : राज्यों को प्रोत्साहन!

इस फैसले के अनुसार, जो भी राज्य किसी भी परियोजना के लिए राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए) से पर्यावरण मंजूरी जल्द से जल्द लेगा उस राज्य को सर्वोत्तम स्थान दिया जाएगा। एसईआईएए कम से कम समय में परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी देता है, और इसके द्वारा दी गई मंज़ूरी उच्च मानकों के आधार पर प्रदान की जाती है।  
ईसी (पर्यावरण मंजूरी) के अनुदान में दक्षता और समय-सीमा के आधार पर राज्यों को स्टार-रेटिंग प्रणाली के माध्यम से प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया गया है। मंत्रालय ने पिछले हफ्ते जारी एक आदेश में कहा है कि यह मान्यता और प्रोत्साहन के साथ-साथ सुधार, जहां आवश्यक हो, के लिए भी है। यदि एसईआईएए को एक मंजूरी देने में औसतन 80 दिन से कम समय लगता है तो उसे 2 अंक मिलेंगे। यदि उसे मंजूरी देने में 105 दिन से कम समय लगता है तो एक अंक। उसी तरह 105-120 दिनों के लिए 0.5; और 120 से अधिक दिनों के लिए शून्य अंक मिलेंगे। गौरतलब है कि राज्य प्राधिकरण प्रस्तावित परियोजनाओं के लिए अधिकांश पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करते हैं जबकि प्रमुख श्रेणी ‘ए’ की परियोजनाओं को केंद्र द्वारा मंजूरी दी जाती है। बड़ी परियोजनाओं को छोड़कर शेष, खनन, थर्मल प्लांट, नदी घाटी और बुनियादी परियोजनाएं राज्य निकायों के दायरे में आती हैं।

इसके साथ ही, 100 दिनों से अधिक समय से लंबित पर्यावरण संशोधन प्रस्तावों के निपटारे के लिए भी एसईआईएए को अंक दिए जाएंगे। नब्बे प्रतिशत से अधिक मंजूरी के लिए एक अंक मिलेगा; 80-90 प्रतिशत निकासी के लिए 0.5; और 80 प्रतिशत से कम के लिए शून्य अंक। इस फैसले में यह भी कहा गया है कि  एसईआईएए द्वारा मंजूरी देने के लिए कम पर्यावरणीय विवरण मांगने पर भी राज्य के अधिकारियों को पुरस्कृत किया जाएगा। यदि ईडीएस (आवश्यक विवरण) मामलों का प्रतिशत 10 प्रतिशत से कम है, तो एसईआईएए को एक अंक मिलेगा; अगर यह 20 प्रतिशत है, तो उन्हें 0.5 मिलेगा; और अगर यह 30 प्रतिशत से अधिक है, तो उन्हें शून्य अंक मिलेगा। पांच दिनों से कम समय में प्रस्ताव स्वीकार करने पर एसईआईएए को एक अंक मिलेगा; 5-7 दिनों के लिए 0.5; और 7 दिनों से अधिक के लिए शून्य अंक दिए जाएंगे। इस रेटिंग प्रणाली में शिकायतों के निपटान को भी ध्यान में रखा गया है। इसके तहत यदि सभी शिकायतों का निवारण किया जाता है तो एक अंक; यदि 50: शिकायतों का निवारण किया जाता है तो 0.5; और 50: से कम के लिए शून्य अंक। इन मापदंडों के आधार पर यदि कोई एसईआईएए 7 से अधिक अंक प्राप्त करता है, तो उसे 5-स्टार (उच्चतम रैंकिंग) के रूप में स्थान दिया जाएगा। राज्य के अधिकारियों को भी उनके संचयी स्कोर के आधार पर 5,4,3,2 और 1-स्टार के रूप में स्थान दिया जा सकता है। कुल तीन से कम अंक प्राप्त करने वाली एसईआईएए को कोई स्टार नहीं मिलेगा।
दरअसल, मंत्रालय का यह निर्णय पिछले साल 13 नवम्बर को कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में हुई एक बैठक की पृष्ठभूमि में लिया गया है, जिसमें विशेष रूप से कारोबार करने में आसानी को सक्षम करने के लिए की गई कार्रवाई का मुद्दा उठाया गया था जिसके तहत मंजूरी के अनुसार लगने वाले समय के आधार पर राज्यों की ‘रैंकिंग’ की जाएगी। पर्यावरणविद्  ने इस कदम की आलोचना करते हुए चेतावनी दी है कि राज्य के अधिकारी, जिनका कार्य पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, अब राज्य की रैंकिंग बढ़ाने के लिए परियोजनाओं को बिना पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित किए हुए तेजी से पूरा करने के लिए प्रतिस्पर्धा करेंगे। एसईआईएए बुनियादी ढांचे, विकासात्मक और औद्योगिक परियोजनाओं के बड़े हिस्से के लिए पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण और लोगों पर प्रस्तावित परियोजना के प्रभाव का आकलन करना और इस प्रभाव को कम करने का प्रयास करना है।
दिल्ली के पर्यावरण वकील ऋत्विक दत्ता के अखबार को दिए बयान के अनुसार यह आदेश बिल्कुल बेतुका है। जिस गति से परियोजनाओं को मंजूरी दी जाती है, उसके अनुसार पर्यावरण की रक्षा के लिए जिम्मेदार संस्था को आप कैसे ग्रेड दे सकते हैं? मंजूरी के लिए समय-सीमा को वैसे भी 75 दिनों तक लाया गया था, जो चिंता का विषय था, और पर्यावरण की कीमत पर परियोजनाओं को मंजूरी देने के स्पष्ट उद्देश्य से किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में सबसे बड़ी परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय द्वारा श्रेणी ए के तहत पर्यावरण मंजूरी दी जाती है। एसईआईएए मुख्य रूप से निर्माण परियोजनाओं के लिए देश भर में 90 प्रतिशत से अधिक मंजूरी देते हैं। वि बैंक ने खुद व्यापार करने में आसानी के सिद्धांत को खारिज कर दिया है, यह स्वीकार करते हुए कि यह कारगर नहीं है। यह आदेश किसी वन अधिकारी को यह बताने जैसा है कि वह जितना ज्यादा जंगल में जाएगा, उसे उतने ही कम अंक मिलेंगे। यह पर्यावरण कानून के हर प्रावधान का उल्लंघन करता है।
दरअसल, इस तरह के आत्मघाती विकास के पीछे बहुत सारे निहित स्वार्थ कार्य करते हैं, जिनमें राजनेता, अफसर और निर्माण कंपनियां प्रमुख हैं क्योंकि इनके लिए आर्थिक मुनाफा ही सर्वोच्च प्राथमिकता होता है। जितनी महंगी परियोजना, जितनी जल्दी मंजूरी, उतना ही ज्यादा कमीशन। यह कोई नई बात नहीं है। मुंशी प्रेमचंद अपनी कहानी ‘नमक का दरोगा’ में इस तथ्य को 100 वर्ष पहले ही रेखांकित कर गए हैं। पर कुछ काम ऐसे होते हैं, जिनमें आर्थिक लाभ की उपेक्षा कर व्यापक जनहित को महत्त्व देना होता है। पर्यावरण ऐसा ही मामला है जो देश की राजनैतिक सीमाओं के पार जाकर भी मानव समाज को प्रभावित करता है। इसीलिए आजकल ‘ग्लोबल वाìमग’ को लेकर सभी देश चिंतित हैं। अब सोचना यह है कि पर्यावरण मंत्रालय के इस नये आदेश से राज्यों को प्रोत्साहन मिलेगा या पर्यावरण का विनाश होगा।

विनीत नारायण


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