पसमांदा समाज : राष्ट्र निर्माण में अमूल्य योगदान

Last Updated 25 Jan 2022 04:56:20 AM IST

पसमांदा आंदोलन की शुरुआत मोमिन कांफ्रेंस के नाम से हुआ था। जो आज भी ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के नाम से चल रहा है।


पसमांदा समाज : राष्ट्र निर्माण में अमूल्य योगदान

मोमिन कांफ्रेंस का कयास मौलाना अब्दुस्सलाम के द्वारा लिखी गई किताब ‘तारीखुल मिनवाल’ व ‘अहलेही’ से लिया गया था, परंतु अशराफों के भय के कारण ये किताब उनके बेटे मौलाना उबैदुल्ला रहमानी के नाम से छपी थी। मौलाना अब्दुस्सलाम मुबारकपुर के रहने वाले थे, परंतु पटना की पब्लिक लाइब्रेरी में काम करते थे, जहां पर अशराफों का वर्चस्व था। मोमिन कांफ्रेंस की स्थापना सामाजिक संगठन के रूप में हुआ था। इसको आगे बढ़ाने में आसिम बिहारी का नाम सर्वोपरि है।
मोमिन कांफ्रेंस का मूल उद्देश्य भारतीय मूल की पसमांदा मुस्लिम समाज की सभी शोषित एवं उपेक्षित भारतीय मूल की पसमांदा मुस्लिम समाज की बिरादरियों को साथ लेकर चलना था, मगर अशरफों ने मोमिन लफ्ज को अंसारी से जोड़कर इस संगठन को अंसारियों का संगठन घोषित कर दिया। फलस्वरूप पसमांदा मुस्लिम समाज की दूसरी बिरादरियों ने अपनी-अपनी जाति पर आधारित संगठनों जैसे कुल हिंद जमातुल कुरैश, ऑल इंडिया जमातुल मंसूर, ऑल इंडिया जमातुल राईनी, जमातुल कास्सर, जमातुल हवरी, अंसारी महापंचायत, मोमिन अंसार सभा, अति पिछड़ा मुस्लिम संगठन, अंसारी डेमोक्रेटिक फ्रंट, पसमांदा मुस्लिम मोर्चा, आल इंडिया फलाह ए मनिहार, ऑल इंडिया अब्बासी महासभा, ऑल इंडिया जमातुल सलमानी ट्रस्ट, शेख जनायतुल अब्बास, ऑल इंडिया यूनाइटेड मुस्लिम मोर्चा, ऑल इंडिया जमयतुल कुरैश आदि का गठन किया। इसकी वजह से हम लोग पसमांदा आंदोलन के मूलभूत उद्देश्यों से भटक गए और भारतीय मूल के पसमांदा समाज की ताकत बिरादरीवाद में गुम हो गई।

यही कारण है कि पसमांदा आंदोलन को शुरू हुए करीब करीब सौ साल हो गए हैं, परंतु भारतीय मूल के पसमांदा मुस्लिम समाज की हालत बद-से-बदतर होती गई। इसका मुख्य कारण यह है कि भारतीय मूल की पसमांदा मुस्लिम समाज की सभी बिरादरियां जागरूक और संगठित नहीं है। इसमें दो राय नहीं है कि बिरादरीवाद से पसमांदा आंदोलन को बहुत नुकसान पहुंचा है, परंतु आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज का उद्देश्य है कि भारतीय मूल की पसमांदा मुस्लिम समाज की बिरादरियों के नाम से चल रहे सभी संगठनों से वाद-विवाद करके एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाकर कार्य करें। पसमांदा मूल रूप से भारतीय मूल की मुस्लिम समाज की ओबीसी, एससी एवं एसटी जातियों को कहते हैं। भारतीय मूल की पसमांदा मुस्लिम समाज की पेशेवर बिरादरियों जैसे मोमिन अंसार (जुलाहा), कुरैशी (कसाई), मंसूरी (धुनिया) अब्बासी (सक्का) सैफी (लोहार), सलमानी (नाई), हावारी, (धोबी) आदि जिनको भारत में मौजूद सभी फरिकों के अशरफ संस्थापकों सहित उन के लगभग सभी प्रमुख अशराफ उलेमाओं द्वारा अपनी पुस्तकों/फतवों में जलील करने व पीछे रखने के उद्देश्य से फिकहों की किताबों, हदीसों एवं अन्य तथाकथित इस्लामी किताबों का सहारा लेकर कुरआन की मनमानी व्याख्या किया और भारतीय मूल की पसमांदा मुस्लिम समाज की पेशेवर जातियों को इन किताबों द्वारा अजलाफ व अरजाल अर्थात नीच, कमीन व निकृष्ट लिखा। मुसलमानों में मौजूद जाति/जन्म आधारित ऊंच-नीच नामक कोढ़ व्यवस्था की वह सच्चाई है, जिसको अशरफ लीडरशिप व अशरफ उलेमाओं ने किसी भी मंच से नहीं उठाया बल्कि बढ़ावा ही दिया, परंतु भारत सरकार सहित तमाम प्रदेशों की सरकारों द्वारा गठित लगभग सभी आयोगों ने तरक्की व सम्मान देने के उद्देश्य से भारतीय मूल के पसमांदा मुस्लिम समाज को आरक्षण के दायरे में लाने के लिए उन्हें पिछड़ा, अतिपिछड़ा, एससी, एसटी श्रेणी में रखने की सिफारिश की तथा उसी आधार पर ओबीसी एवं एसटी में आरक्षण देकर मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया, परंतु अशराफ मुस्लिम नेताओं, बुद्धजीवियों एवं राजनीतिक रसूख रखने वाले मौलवी और मुल्लाओं द्वारा संविधान के अनुच्छेद 341 पर लगे धार्मिंक प्रतिबंध (10 अगस्त 1950 को तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी की नेतृत्व वाली सरकार ने प्रेसिडेंट के द्वारा एक ऑर्डर लाकर आर्टकिल 341 पर धार्मिंक प्रतिबंध लगा दिया, जिससे भारतीय मूल के पसमांदा मुस्लिम समाज की एससी बिरादरियों को आरक्षण का लाभ आजतक नहीं मिल सका) के विरुद्ध आजादी के इतने वर्षो तक कभी एक शब्द नहीं कहा गया क्योंकि यदि अनुच्छेद 341 पर लगा धार्मिंक प्रतिबंध समाप्त हो जाता तो मुस्लिम दलित (भंगी, मोची, भिश्ती, कोरी, धोबी आदि) भारतीय मूल की मुस्लिम अनुसूचित जातियों को आरक्षण का लाभ मिलने लगता। भारतीय मूल के पसमांदा मुस्लिम समाज की 85 फीसद आबादी होने के बावजूद सत्ता में साझेदारी इसलिए नहीं है क्योंकि हम लोग संगठित नहीं है। हमको संगठित होना है। सत्ता में हिस्सेदारी लेने के लिए पसमांदा आंदोलन को मजबूत करना होगा। यह विडंबना ही कही जाएगी कि कालांतर में भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़, वस्त्रोत्पादन एवं शिल्प कला में निपुण भारतीय मुस्लिम समाज की पेशेवर जातियों के लोगों की संख्या 85 फीसद होने के बावजूद सत्ता व सरकार तथा अन्य संगठनों में इनकी संख्या शून्य है। ऐसा क्यों? इस बात हमें अच्छे से समझ लेना चाहिए कि पसमांदा समाज की चेतना अभी अविकसित अवस्था में है।
जब तक चेतना का विकास नहीं होता तब तक उनका न तो कोई संगठन बन सकता है और न ही कोई आंदोलन खड़ा हो सकता है। सारी पार्टयिों में मुसलमानों के नाम पर तथाकथित अशराफ मुसलमान काबिज हैं जो कि जातीय पूर्वाग्रहों के तहत पसमांदा का टिकेट कटवा देते हैं। हम भारतीय मूल के लोग है। भारत हमारा देश है और हमारा देश हमें प्राणों से प्यारा है। देश का हित सर्वोपरि है। देश की रक्षा के लिए हम भारतीय मूल के पसमांदा मुस्लिम समाज के लोग पहले भी वीर शहीद अब्दुल हमीद के रूप में प्राणों की आहुति दी है और आगे भी खड़े रहेंगे। देश की सेवा के लिए भारतीय मूल के पसमांदा मुस्लिम समाज से एपीजे अब्दुल कलाम ने अपना योगदान दिया है और आने वाले समय में भारतीय मूल के पसमांदा मुस्लिम समाज से और भी कलाम पैदा होंगे।
(मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज)

मुहममद युनूस


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