खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता
देश में तिलहन के घटते रकबे के चलते कुछ विशेषज्ञों ने शंका जताई है कि भारत 2030-31 तक खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर होने के लक्ष्य को शायद ही हासिल कर पाए।
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खाद्य तेलों की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए सरकार ने 2030-31 तक देश में खाद्य तेलों का उत्पादन 2.54 करोड़ टन तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। लेकिन किसानों की प्राथमिकताएं बदलते जाने से इस मंसूबे पर पानी फिरता दिखलाई पड़ रहा है।
इस खरीफ सीजन में सोयाबीन और मूंगफली जैसी तिलहन फसलों की कम रकबे में बुआई हुई है। आकलन है कि इन फसलों के रकबे में इस बार करीब छह प्रतिशत की गिरावट आई है।
बीते वर्ष तिलहन फसलों की बुआई 161 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की गई थी, जो घट कर 156 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रह गई है। सोयाबीन की बुआई में भी छह प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।
बुआई का यह रुख स्पष्ट रूप से किसानों की प्राथमिकताओं में परिवर्तन का संकेत है, जो यकीनन खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा अवरोधक होगा। भारत खाद्य तेलों की अपनी कुल खपत का करीब 60 प्रतिशत आयात करता है, और इसी आंकड़े के चलते भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक देश है।
बीते वर्ष भारत ने 1,41,950 करोड़ रुपये से ज्यादा का खाद्य तेल आयात किया था। 2003-04 में खाद्य तेलों का आयात 44 लाख टन था, जो अब बढ़ कर 1.6 करोड़ टन पर पहुंच चुका है। दरअसल, किसानों की प्राथमिकताएं बदलना आने वाले समय भारत में खाद्य तेल परिदृश्य पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। किसान अब तिलहन की उपज लेने की बजाय मक्का जैसी नकदी फसल को तरजीह दे रहे हैं। इसलिए कि मक्के की उपज में लागत के मुकाबले लाभ ज्यादा है।
पेट्रोल में 20 प्रतिशत एथनॉल मिशण्रकी नीति ने पिछले चार-पांच वर्षो में मक्का के दाम को करीब-करीब दोगुना कर दिया है। पशु चारा और सस्ते प्रोटीनयुक्त खाद्य उद्योग में भी मक्का की मांग तेजी से बढ़ी है। इसलिए किसान तिलहन की फसल पर मक्का की पैदावार को प्राथमिकता दे रहे हैं।
बेशक, इससे तिलहन का घरेलू उत्पादन उत्तरोत्तर घट सकता है। शंका है कि मौजूदा रुझान जारी रहा तो अगले छह-सात वर्षो में भारत का खाद्य तेल आयात दो करोड़ टन से भी ज्यादा हो सकता है, और आत्मनिर्भरता के मंसूबे पर तो पानी ही फिर जाएगा।
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