वैक्सीन डोज : इस असंतुलन का क्या कीजिएगा?

Last Updated 05 Jan 2022 12:05:31 AM IST

दुनिया नए साल में प्रवेश कर चुकी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है क्या इस साल के आखिर तक अधिकांश आबादी को कोविड के खिलाफ वैक्सीनेटेड किया जा सकेगा?


वैक्सीन डोज : इस असंतुलन का क्या कीजिएगा?

क्योंकि दुनिया के कई ऐसे गरीब देश हैं, जहां वैक्सीनेशन की रफ्तार बहुत ही धीरे है या उन्हें वैक्सीन नहीं मिल पा रही है। खैर, अभी दुनिया कोविड के नये वैरिएंट ओमीक्रोन की चपेट में है। इससे वैरिएंट से अपने नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए जहां कुछ अमीर देश अपने नागरिकों को बूस्टर डोज देने में लगे हुए हैं तो वहीं दूसरी ओर गरीब देश के अधिकांश नागरिकों को अभी तक सिंगल डोज भी नहीं मिल पाया है। यही वजह है कि कम आय वाले देश अभी टीकाकरण के लक्ष्य से काफी दूर हैं।
सबसे कम आय वाले सभी 25 देश अभी भी 40 फीसद टीकाकरण लक्ष्य से दूर हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 194 सदस्य देशों में से आधे देशों में यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा। करीब 40 देशों में तो 10 प्रतिशत लोगों को भी टीका नहीं लगा है। संगठन ने इसके लिए टीकों की जमाखोरी को सबसे बड़ा कारण बताया है और इसके पीछे विशेष रूप से मुट्ठी भर पश्चिमी देशों को जिम्मेदार ठहराया है जो अभी से बूस्टर टीके भी दे रहे हैं, जबकि अभी तक दुनिया भर में टीकों की 8.6 अरब से भी ज्यादा खुराकें दी जा चुकी हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश ऊंची आय वाले देशों में दी गई हैं।
इस बीच हाल ही में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक अमीर देश कोविड-19 वैक्सीन की खुराक का बड़ी मात्रा में संग्रह कर रहे हैं, जिस वजह से गरीब देशों में रहने वाले लोगों को अगले साल तक कोरोना वायरस महामारी से जूझना पड़ सकता है। कहा जा रहा है कि दर्जनों गरीब देशों में 10 में से 9 लोगों को कोरोना वैक्सीन मिलने की संभावना नहीं है। आवर र्वल्ड इन डाटा के अनुसार दुनियाभर के 35 से भी ज्यादा देश अपने नागरिकों को बूस्टर डोज दे रहे हैं। अलग-अलग देशों में अलग-अलग फैक्टर को ध्यान में रखते हुए लोगों को कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज दी जा रही है। आवर र्वल्ड इन डाटा के मुताबिक बूस्टर शॉट के मामले में चिली सबसे आगे हैं। चिली में 53 फीसद से अधिक लोगों को बूस्टर डोज दी जा चुकी है। ब्रिटेन में 47 फीसद से अधिक लोगों को यह डोज दी जा चुकी है। बूस्टर डोज के मामले में तीसरे नंबर पर जर्मनी और चौथे नंबर पर फ्रांस है। जर्मनी में करीब 35 फीसद और फ्रांस में 29 फीसद को यह डोज दी जा चुकी है। इटली में 27 फीसद से अधिक लोगों को बूस्टर डोज दी जा चुकी है। वह छठे स्थान पर है।

अमेरिका में 19 फीसद से अधिक लोगों को यह डोज मिल चुकी है। चीन में आठ फीसद और रूस में चार फीसद लोगों को यह डोज दी जा चुकी है। इन देशों के पास इतने संसाधन थे कि उन्होंने टीके बनाने वाली कंपनियों के साथ खुद ही करार कर लिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 5 बिलियन से ज्यादा कोविड डोज में से 75 फीसद डोज पर सिर्फ 10 देशों का कब्जा है। हालांकि गरीब मुल्कों को वैक्सीन के लिए लंबा इंतजार न करना पड़े, इसके लिए कोवैक्स बनाया गया है। इसका उद्देश्य ही है अमीर या गरीब सभी देशों में तेजी से कोरोना वायरस के टीके को उपलब्ध कराना। यूनिसेफ के अनुसार 10 दिसम्बर तक दुनिया के 144 देशों को कोवैक्स के माध्यम से केवल 65 करोड़ से कुछ ऊपर डोज मिल पाई हैं। अफ्रीका की 80 फीसद से ज्यादा आबादी को पहली डोज भी नहीं मिल पाई है। ये गरीब देश पूरी तरह से कोवैक्स-व्यवस्था पर ही निर्भर हैं। उदाहरण के लिए हेती में 1,00, कांगो में 0.02 और बुरुंडी में 0.01 फीसद लोगों को कम-से-कम एक डोज लगी है। अधिकांश अफ्रीकी देशों में यह आंकड़ा बहुत से बहुत दो अंकों के शुरुआती स्तर तक है। गौर करने वाली बात यह है कि अमीर देशों द्वारा इकट्ठी की गई करीब 10 करोड़ कोविड-19 वैक्सीन बीते साल के अंत तक के साथ बर्बाद हो गई। यह बात साइंटिफिक इन्फॉर्मेशन एंड एनालिटिक्स कंपनी एयरफिनिटी की एक रिसर्च से सामने आई है। बर्बाद होने वाले 10 करोड़ टीकों में से 41 फीसद यूरोपीय संघ के पास और 32 फीसद अमेरिका के पास था।
साफ है, यह असंतुलन अनैतिक और अत्याचार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमीर देशों को चेतावनी दी कि वे अपने यहां बूस्टर शॉट्स की व्यवस्था के बारे में फिलहाल न सोचें, बल्कि गरीब देशों के लिए टीके भेजें, क्योंकि वहां टीकाकरण बहुत धीमा है। इस असंतुलन के कारण कुछ जगहों पर कोरोना बगैर रोक-टोक के फैल रहा है।  ओमिक्रॉन जैसे नये वैरिएंट के सामने आने के बाद खतरा और ज्यादा बढ़ा है। सवाल है, अगर अमीर और गरीब देशों के बीच ऐसी असमानता रही तो कोरोना दुनिया कैसे खत्म होगा। टीके पर अमीर देशों ने जिस तरह कब्जा कर रखा है,अगर यही हालात बने रहे तो पूरी दुनिया को कोरोना के नये वैरिएंट ओमिक्रॉन से सामना करना मुश्किल हो जाएगा।

रवि शंकर


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