वर्ष 2021 : ऐतिहासिक पहल का साल
वर्ष 2020-21 जहां विश्व में कोविड महामारी के लिए जाना जाएगा, वहीं ये दौर भारत में एक ऐतिहासिक पहल के लिए भी दर्ज किया जाएगा।
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एक ओर जहां पूरा विश्व महामारी से जूझ रहा था, वहीं भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 34 वर्षो के लंबे अंतराल के बाद नई शिक्षा नीति का आगाज हुआ। यह केवल एक नीति नहीं है, यह नये भारत का विजन पत्र भी है। नई शिक्षा नीति न केवल भारतीय मूल्यों पर आधारित है बल्कि यह अंतरराष्ट्रीयता को भी साथ लेकर चलती है। प्रधानमंत्री ने जेएनयू के एक कार्यक्रम में कहा था, ‘21वीं सदी ज्ञान की सदी है और भारत इसका नेतृत्व करेगा। नई शिक्षा नीति का आगमन इसी दिशा में एक पहल है।’
एक और जहां इंडियन नॉलेज सिस्टम (भारतीय ज्ञान परम्परा) पर विशेष फोकस है, वहीं दूसरी ओर इंडियन वैल्यू सिस्टम (भारतीय मूल्यों) पर भी जोर दिया जा रहा है। नई शिक्षा नीति नये पाठ्यक्रम (एनसीएफ) की भी बात करती है। अभी तक मैकाले मॉडल के तहत देश के छात्रों को उन अध्यायों को पढ़ाया गया है जो देश की पीढ़ी को न तो भारत पर गर्व का आभास कराता है और न ही भारतीयता का बोध। अब नये पाठ्यक्रम को नये सिरे से, तथ्यात्मक रूप से, स्पष्ट स्वरूप में एवं सही परिप्रेक्ष्य में लाने का काम प्रारम्भ हो चुका है एनसीएफ स्टीयरिंग कमेटी इस दिशा में तेजी से काम कर रही है। ये एक शानदार पहल है जिसका स्वागत किया जाना स्वाभाविक है।
नई शिक्षा नीति के तहत एक और बड़ी पहल हुई है। शिक्षा मंत्रालय के तहत इंडियन नॉलेज सिस्टम डिवीजन (भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ) का गठन भी हो चुका है। यह प्रकोष्ठ भारतीय ज्ञान परम्परा को पोषित और संरक्षित करने के साथ-साथ भारतीय ज्ञान परम्परा को विश्व पटल पर ले जाने का भी काम करेगा। हमारे वेद, उपनिषद, ग्रंथ पूरे विश्व के लिए ज्ञान का स्रोत रहे हैं। ज्ञान का ऐसा अद्भुत भंडार पूरी दुनिया में किसी के पास नहीं है। ऐसा ही एक ज्ञान शास्त्र है श्रीमद्भगवीता कर्मयोग का जो पाठ हजारों साल पहले भगवान श्रीकृष्ण ने किंकर्त्तव्य्यविमूढ़ अर्जुन को पढ़ाया था, उसका आज भी कोई विकल्प नहीं है। ‘कर्म ही धर्म है’ का संदेश पूरे विश्व को गीता ने दिया। आज भी श्रीमद्भगवीता सबसे ज्यादा बिकने वाली और सर्वाधिक भाषाओं में अनूदित की गई पुस्तक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व के सभी राष्ट्र प्रमुखों को श्रीमद्भगवीता भेंट कर भारतीय संस्कृति से सभी देशों को अवगत कराने का कार्य किया। गीता जीवन का सार है, इसमें कोई दो राय नहीं है। क्यों न गीता को शैक्षिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए! इस विषय को संसद के शीतकालीन सत्र में भाजपा सांसद गोपाल शेट्टी ने बड़े सार्थक और तार्किक रूप से उठाया था, जिसका मैं जिक्र करना चाहूंगा। मेरा मत है कि उनकी ये मांग पूरी तरह तर्कसंगत है और न्यायसंगत भी। गीता को धार्मिंक नहीं, शैक्षणिक दृष्टिकोण से समझने की आवयश्कता है।
मेरा मानना है कि विश्व गुरु भारत की परिकल्पना भारतीय ज्ञान के स्रोतों के साथ युवा पीढ़ी के समागम के बिना संभव नहीं है। मुझे महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टिन का कथन याद आता है-‘जब-जब मैं गीता को पढ़ता हूं और यह समझने का प्रयास करता हूं कि किस प्रकार ईश्वर ने ब्रह्मांड का निर्माण किया होगा बाकी सब कुछ तुच्छ नजर आता है।’ महान चिंतक हेनरी डेविड थोरू ने कहा था-‘हर सुबह जब मैं श्रीमद्भगवीता के दर्शन, असीम और अद्भुत ब्रम्हांड चिंतन से आत्मसात करता हूं तो सब कुछ मिथ्या नजर आता है। राल्फ एमर्सन जैसे महान चिंतक ने भी श्रीमद्भगवीता को सर्वोच्च ज्ञान के भंडार के रूप में परिभाषित किया है। गीता को लेकर उनके विचार आपने आप में एक सुखद अनुभव है।
गांधी, टैगोर, विवेकानंद, दयानन्द जैसी महान आत्माओं को गीता की शरण में ही जीवन का सार मिला। सभी ने गीता को जीवन में एक प्रयोग के रूप में आत्मसात किया और एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। आज दुनिया के उच्च पदों पर बैठे सभी शीर्ष पदाधिकारियों के कक्ष में श्रीमद्भगवीता का मार्गदर्शक के रूप में मौजूद होना इस महान ज्ञान के भंडार एवं दर्शन की महत्ता को स्थापित करता है। अगर आप इस पुस्तक का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि ये कोई धार्मिंक पुस्तक नहीं बल्कि सफल जीवन का दर्शन है। आखिर क्यों हम अपनी आने वाली पीढ़ी को इसके साक्षात्कार से वंचित रखें। इसलिए ये सही समय है कि हम व्यवस्थित रूप से गीता के ज्ञान को शैक्षणिक पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की दिशा में आगे बढ़ें। शिक्षा नीति का क्रियान्वयन एक ऐतिहासिक अवसर है, जिसे हमें चूकना नहीं चाहिए।
हाल ही के दिनों में माननीय प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि पुस्तकें न केवल हमें ज्ञान देती हैं बल्कि हमारे वयक्तित्व का भी निर्माण करती हैं। नई शिक्षा नीति को लेकर उनका विजन युवा पीढ़ी को वैश्विक नागरिक के रूप में तैयार करने का है। वैश्विक नागरिक तैयार करने का उनका संकल्प तभी पूरा होगा जब हम चरित्र निर्माण से व्यक्ति निर्माण और राष्ट्र निर्माण की दिशा में आगे बढ़ेंगे।
शिक्षा केवल पाठ्यपुस्तकों के पाठों तक सीमित नहीं होती बल्कि यह जीवन के पाठ के बारे में भी बताती है। ऐसी शिक्षा हमें भगवद्वीता में साफ दृष्टिगोचर होती है। श्रीमद्भगवीता व्यक्ति के चरित्र निर्माण का सबसे विसनीय और समावेशी मार्ग है। मुझे विश्वास है कि आने वाले दिनों में हमारी युवा पीढ़ी गीता के ज्ञान को पाठ्यक्रम के माध्यम से प्रारंभिक शिक्षा में ही आत्मसात करेगी। विगुरु भारत का मार्ग गीता के कर्मयोग, भारतीय ज्ञान परम्परा और भारतीय मूल्यों की त्रिवेणी से ही प्रशस्त होगा, ऐसा मेरा अटूट विश्वास है।
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