सरोकार : कौन दिलाएगा आधी आबादी को भरोसा?

Last Updated 26 Dec 2021 12:05:48 AM IST

चेन्नई में 11वीं क्लास की 17 साल की एक छात्रा ने भावुक सुसाइड नोट लिखकर आत्महत्या कर ली।


सरोकार : कौन दिलाएगा आधी आबादी को भरोसा?

नोट में जो कुछ भी लिखा गया वो महिला सुरक्षा पर सवालिया निशान लगाता है। ‘न शिक्षकों पर भरोसा करो और न ही रिश्तेदारों पर, लड़कियां सिर्फ  मां के गर्भ या कब्र में ही सुरक्षित हैं।’ ये शब्द न केवल नश्तर की तरह चुभते हैं, बल्कि एक विकृत समाज का वीभत्स चेहरा भी बेनकाब करते हैं। नोट ने परिवार व समाज के लिए कई अनसुलझे सवाल छोड़ दिए हैं। स्कूल के असुरक्षित होने और किसी भी शिक्षक पर भरोसा नहीं करने संबंधी बात ने अभिभावकों की निगहबानी व चिंता बढ़ा दी है। सवाल वाजिब है, विद्या के मंदिर ही सुरक्षित नहीं होंगे तो सुरक्षा कहां तलाशी जाए!
आंकड़ों की बात करें तो ऐसे मामले चौंकाते हैं। 2020 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में 18 वर्ष से कम उम्र के 7.9% लड़के एवं 19.7% लड़कियां यौन शोषण की शिकार हुई। वहीं भारत में 2017 से 2020 के बीच  3 साल की अवधि में यौन उत्पीड़न के 24 लाख से अधिक मामलों में 80 प्रतिशत 14 साल से कम उम्र की किशोरियों के थे। उधर, यूनिसेफ द्वारा 2005 से 2013 के बीच किए गए अध्ययन के आंकड़े बताते हैं कि भारत की 10 प्रतिशत लड़कियों को जहां 10 से 14 वर्ष से कम उम्र में यौन दुव्यर्वहार का सामना करना पड़ा वहीं 30 प्रतिशत ने 15 वर्ष के दौरान यौन दुर्व्यवहार झेला। ये आंकड़े भयावह स्थिति के संकेतक हैं। आखिर, हम किस कुंठित समाज में जी रहे हैं, जहां महिलाओं को अपनी अस्मत की सुरक्षा के लिए मौत को गले लगाना पड़ रहा है। समाज, परिवार और सरकार से निराशा हाथ लगने पर वे अपना अस्तित्व मिटा रही हैं। जो देश विकास की पटरी पर निर्बाध गति से दौड़ रहा हो वहां महिलाएं सुरक्षा जैसे मुद्दे पर लड़ रही हों, यह संकटातीत है।  जाहिर है कि स्त्रियों की सुरक्षा को न तो कभी राष्ट्रीय नीति का हिस्सा बनाया गया, न ही इस पर तत्परता से कार्य किया गया। सशक्त राष्ट्र बनने की राह पर खड़ा कोई देश आखिर आधी आबादी के इस बड़े और कड़वे सच को कैसे झुठला सकता है।

स्कूल या घर के भीतर भावनात्मक व मानसिक स्तर पर किया जाने वाला यह शोषण बच्चे के अंतर्मन में गहरी पैठ बना रहा है, जो आगे चलकर उसे एक कुंठित और विकृत संतति के रूप में समाज का हिस्सा बनाएगा। कितनी हैरानी की बात है कि परिवार, कानून और समाज और सरकार से सहारा न मिलने पर कुंठा और घोर निराशा में बच्चियां खुद की आत्महंता बन रही हैं। ताउम्र इस कुंठा के बोझ तले जीवन गुजारने के चलते बड़े होने पर भी इस मानसिक गुलामी से उबर नहीं पातीं और एक विक्षिप्त व्यक्तित्व का हिस्सा बन समाज में गैर-उत्पादक इकाई बन जाती हैं। जब देश विकास की ऊंचाइयों को छू रहा है, तो ऐसे मामले कब के गैर-प्रासंगिक हो जाने चाहिए थे। बच्चियां सुरक्षित वातावरण में अपना किशोरवय जीवन जिएं, इसके पुख्ता इंतजाम किए जाने चाहिए। आखिर, जब महिलाएं ही सुरक्षित नहीं होंगी तो विकास सूचकांक में शीषर्ता का क्या औचित्य! आधी आबादी की सुरक्षा से ही देश सुरक्षित होगा। यौन शोषण और उससे जुड़े आत्महत्या के मामले किसी भी राष्ट्र की गरिमा मलिन करते हैं। सुरक्षा सबके लिए समान रूप से हो तभी चहुंमुखी विकास की आधारशिला रखी जा सकती है। समय आ गया है कि पुख्ता और त्वरित न्याय के जरिए ऐसी मामलों को समूल नष्ट किया जाए।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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