मानवाधिकार : धर्म से अभिशप्त

Last Updated 10 Dec 2021 03:46:33 AM IST

धर्म का संबंध आस्था से है तो उसके केंद्र में प्रत्येक प्राणी और मानव के प्रति दया और करु णा के भाव होना चाहिए। यदि धर्म का संबंध विश्वास से है तो उसमें प्रत्येक मानव की गरिमा में असीम विश्वास होना चाहिए।


मानवाधिकार : धर्म से अभिशप्त

यदि धर्म का अर्थ शांति से है तो वह मानवीय गुण व्यवहार में प्रतिबिम्बित होना चाहिए। यदि धर्म जीने का तरीका है तो उसमें परस्पर द्वेष और घृणा नहीं होना चाहिए। यदि धर्म का संबंध ईश्वरीय श्रद्धा, पूजा पाठ, ईश्वरीय उपासना, आराधना आदि से है तो उसमें मानव मात्र के प्रति प्रेम के भाव आना चाहिए। यदि धर्म व्यवस्था, कानून, नीति या समाज के परिचालन का तरीका है तो उसमें असमान भाव और विरोधाभास की सम्भावनाएं नगण्य होना चाहिए।
दुनिया भर में मानवाधिकारों की स्थिति का आंकलन किया जाएँ तो हिंसा, अत्याचार और उत्पीड़न के पीछे धार्मिंक साया नजर आता है। अलग-अलग देशों में इसके प्रकार भिन्न-भिन्न होते हैं, लेकिन धर्म को बचाने के नाम पर हिंसा का खेल बदस्तूर जारी है। पिछले दिनों पाकिस्तान के सियालटकोट की एक फैक्टरी में काम करने वाले श्रीलंका के नागरिक प्रियांथा कुमारा को भीड़ ने ईशनिंदा के आरोप में पीट-पीटकर मार डाला बाद में उनके शव को जला दिया। इस वीभत्स घटनाक्रम में शामिल कुछ युवाओं ने वीडियो बनाकर बाकायदा पैगंबर मोहम्मद के अपमान और इस्लाम का हवाला देकर इसे न्यायोचित ठहराया। 1980 के दशक में कश्मीर से लाखों पंडितों के पलायन का कारण कट्टरपंथी धर्माधता रही, जिसे इस्लाम से जोड़ा गया।
भारतीय जनमानस भी उससे बहुत अलग नहीं है। यहां धार्मिंक आतंकवाद से ज्यादा एक अलग और कहीं खतरनाक किस्म का जातीय आतंकवाद है जो मंदिरों में जाने से किसी को रोक देता है और उस पर ईश्वर को अशुद्ध करने का आरोप लगाकर निशाना भी बना देता है, यहां तक की इस कारण कई लोगों को मार भी डाला जाता है। सितम्बर 2015 में दिल्ली के पास दादरी के बिसाहड़ा गांव में अखलाक नाम के अधेड़ को उनके घर से खींचकर निकालने और पीट कर हत्या कर डालने की घटना सामने आई थी। भीड़ ने मोहम्मद अखलाक पर गोमांस रखने का आरोप लगाया था। 2015 में केन्या की गारिसा यूनिर्वसटिी कॉलेज पर हुए एक आतंकी हमले में चरमपंथियों ने मुसलमान छात्रों को जाने दिया था और ईसाइयों को अलग करके गोली मार दी थी। उस हमले में 148 लोग मारे गए थे।

यहां पर धर्म और पहचान के नाम पर निशाना बनाया गया। इस साल नवदुर्गा पर बांग्लादेश में पूजा पंडालों में कुरान रखने की अफवाह पर हिंदुओं पर हमले किए गए और कई हिंदुओं की हत्याएं कर दी। फ्रांस में एक धर्माध नवयुवक द्वारा एक शिक्षक का गला रेत कर हत्या कर दी गई। आरोप था कि टीचर ने अपनी क्लास में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाया था। फ्रांस में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून को लेकर छिड़ी बहस के बीच ही नाइस शहर में एक और हमला हुआ। जहां हमलावर ने अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते हुए स्थानीय चर्च पर हमला किया, इसमें तीन लोगों की मौत हो गई एक महिला का गला काट कर निर्मम हत्या कर दी गई। 2019 में श्रीलंका में ईस्टर पर एक मुस्लिम अतिवादी संगठन द्वारा भयंकर आतंकवादी हमला हुआ और इसमे सैकड़ों लोग मारे गए थे। इसकी कड़ी प्रतिक्रिया वहां के मुसलमानों ने झेली। मस्जिदों पर हमले हुए।
मुसलमानों की दुकानों का बहिष्कार किया गया। यहां के मुसलमानों ने कई स्थानों पर श्रीलंका के प्रति अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए अपनी मस्जिदों को गिरा दिया। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मंदिरों और गुरु द्वारों पर हमले आम है। श्रीकृष्ण ने गीता में कहा था कि मनुष्य अपने विश्वास से निर्मिंत होता है। जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है। दुनिया भर में होने वाली धार्मिंक उत्पीड़न की घटनाओं से यह तो स्पष्ट हो ही जाता है कि धर्म को लेकर लोगों में पवित्र भावनाएं होनी चाहिए, लेकिन वह विद्वेष के रूप में सामने आ रही है। क्या धर्म रहस्य है क्योंकि धर्म कभी रहस्य नहीं हो सकता। जहां रहस्य होता है वहां बुद्धि श्रेष्ठता और विवेक शून्यता दोनों भाव आने की पूर्ण संभावना होती है और जब विवेक शून्य हो जाए तो भ्रम पैदा होता है।
भ्रम से चेतना व्यग्र होती है और तब तर्क नष्ट हो जाता है। जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा अंगीकार कर मानव अस्मिता और सम्मान को सुनिश्चित करने का प्रयास किया था, इसके साथ ही वैश्विक समुदाय से यह अपेक्षा भी की गई थी की वह मानव अधिकारों का पालन व्यवस्था की दृष्टि से भी करेंगे। इस घोषणा में समाहित किया गया की जाति, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार-प्रणाली, किसी देश या समाज विशेष में जन्म, संपत्ति या किसी अन्य मर्यादा आदि के कारण भेदभाव का विचार न किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, चाहे कोई देश या प्रदेश स्वतंत्र हो, संरक्षित हो, या स्वशासन रहित हो, या परिमित प्रभुसत्ता वाला हो, उस देश या प्रदेश की राजनैतिक क्षेत्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्थिति के आधार पर वहां के निवासियों के प्रति कोई  फर्क न रखा जाएगा।
गांधी जी का मानना था कि धर्म कोई पंथ नहीं बल्कि मानव के भीतर के मूल्य  होते हैं। अब  दुनिया भर में हिंसक घटनाओं के बीच लगातार मानवीय मूल्य दरकिनार किए जा रहे हैं और अफसोस इसे धर्म से जोड़ा जा रहा है। धर्म के नाम पर जारी इस संघर्ष को रोकने के प्रयास नाकाफी साबित होते जा रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण वह असुरक्षा की भावना है, जो धार्मिंक मान्यताओं के आधार पर  एक दूसरे को उत्तेजित करती रही है और इसमें धार्मिंक गुरु और राजनीतिज्ञों का प्रमुख योगदान है।
मलयेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने शिक्षक की हत्या को न्यायोचित ठहराते हुए कहा था कि मुस्लिमों को गुस्सा करने का और लाखों फ्रांसीसी लोगों को मारने का पूरा हक है। ऐसा लगता है कि धर्म और उसकी मान्यताओं से समाज पूरी तरह बिखर कर अलग-थलग होने को बेकाबू है। धर्म और  उसकी मान्यताओं की इस लड़ाई में मानवाधिकार असहाय और बेबस है।  धार्मिंक अत्याचारों की विभिन्न घटनाओं से मानवता शर्मसार हो रही है। विडम्बना ही है कि धर्म मानव अधिकारों का रक्षक बनने के स्थान पर उसका अस्तित्व मिटाने की ओर अग्रसर नजर आता है।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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