हिंदू संस्कृति : हिंसा मुक्त विश्व की सोच
अमेरिका के अलग-अलग राज्यों ने अक्टूबर महीने को हिंदू हेरिटेज महीना घोषित किया है, जिनमें टेक्सास, फ्लोरिडा, न्यू जर्सी, ओहियो और मास्साच्सूट्स जैसे अहम राज्य शामिल हैं।
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कई अमेरिकी सांसदों, बुद्धिजीवियों और हिंदू समुदाय के लोगों ने अमेरिकी राष्ट्रपति से आग्रह किया है कि अक्टूबर महीने को हिंदू हेरिटेज महीने के रूप में घोषित किया जाए। दुनिया को बेहतर ढंग से समझने और उसका यथोचित हल ढंढ़ने का माध्यम भी सनातनी व्यवस्था में है। बहुलता, तर्क, शांति और विश्व बंधुत्व को मजबूत आधार भी वैदिक दशर्न में है। इसलिए जरूरत है कि कैसे विश्व राजनीति को एक हिंदू दशर्न द्वारा समझा और परखा जाए।
दरअसल, विश्व राजनीति में हिंदू शब्द का अर्थ एक पंथ और समुदाय से जोड़ कर देखा जाता रहा है, जबकि यह उसका सही विश्लेषण नहीं है। दरअसल, हिंदू विश्व ढांचे की तहकीकात की जाए तो कई तथ्य दिखाई देते हैं, जिनकी चर्चा कभी हुई ही नहीं। हिंद महासागर से लेकर हिमालय के तटवर्ती देशों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पक्ष की जांच-परख करें तो पता चलता है कि करीब 54 ऐसे देश थे जहां पर भारतीय संस्कृति की शाखा स्थापित थी। ये देश पूर्व एशिया से लेकर हिंद महासागर के अफ्रीकी तट तक फैले हुए थे। आसियान के 10 देशों में हिंदू संस्कृति आज भी जीवित है। संक्षेप में हिंदू संस्कृति की बात करें तो यह एक ऐसी संस्कृति है, जिसने किसी भी देश की राज ब्यवस्था को बलपूर्वक या छल से बदलने की साजिश नहीं की। जैसा था, वैसा ही रहने दिया, लोगों के बीच आत्मीयता और प्रेम को बनाए रखा।
चीन ने अपनी सोच के साथ दुनिया के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया। कोरोना महामारी इसका सीधा प्रमाण है। हथियारों की होड़ और खूनखराबा निष्कंटक जारी है। क्या ऐसे हालात में हम हिंदू विश्व ब्यवस्था की बात सोच सकते हैं? क्या विश्व को प्राकृतिक आपदा और मानवीय त्रासदी से बचाया जा सकता है? लेकिन इसकी शुरुआत तो दक्षिण एशिया से ही होगी। वहां पर हिंदू संस्कृति को लेकर बवाल है। पाकिस्तान हिंदू संस्कृति के विरोध में आज भी एक राष्ट्र राज्य की परिभाषा के लिए भटक रहा है। जब अस्तित्व का ठिकाना नहीं मिला तो भारत विरोध उसकी पहचान बन गई। 1947 से लेकर आज तक उसी भूलभुलैया में खोया हुआ है। झाड़ फानूस उसके राजनीतिक पहचान को बेतरतीब बना चुके हैं। विदेशी ताकतें भी हिंदू संस्कृति को कमजोर बनाने के लिए भारत के पड़ोसी देशों को मदद पहुंचाती रहीं। बांग्लादेश, मालदीव, अफगानिस्तान और नेपाल में भी भारत विरोध की लहर पैदा करने की कोशिश की गई। नेपाल जो कुछ वर्ष पहले तक हिंदू राष्ट्र था, वहां पर भी हिंदू संस्कृति को चुनौती दी जाने लगी। अयोध्या और बद्रीनाथ को नेपाल में बताया जाने लगा। यह सुनयोजित योजना के तहत ही किया जा रहा है। पिछले दिनों बांग्लादेश में हिंसा के पीछे भी यही कारण था। इस बार दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेश के भीतर हिंसा हुई।
भारत की सांस्कृतिक विरासत की अमिट छाप दक्षिण एशिया के मानचित्र पर है। दुर्भाग्य है कि इतिहासकार और विश्लेषक दक्षिण एशिया में कई संस्कृतियों का विलय मानते हैं, जैसे पर्शियन, अरबिक, सिनिक और मलय जबकि सच्चाई यह है कि दक्षिण एशिया का सांस्कृतिक ढांचा हिंदू संस्कृति की तर्ज पर बना है। बाहरी संस्कृतियों ने समन्वय से अधिक मतभेद पैदा किया है। जब मतभेद राजनीति के रंग में परिवर्तित हुआ तो भारत विरोधी लहर दक्षिण एशिया में फैलनी शुरू हुई जिसे एंटी-इंडिया वेव के रूप में देखा जा सकता है। इसका ज्वलंत उदाहरण है, कुछ वर्ष पूर्व नेपाल की साम्यवादी सरकार के प्रधानमंत्री ओली ने राममंदिर को नेपाल के भीतर बताया जाना। 2015 में यह कहकर हिंदू संस्कृति को मलिन करने की साजिश रची गई थी कि बद्रीनाथ नेपाल में ही है। दरअसल, यह सब कुछ अनायास नहीं होता। सांस्कृतिक विरासत को कमजोर करने के लिए बाहरी शक्तियां राजनीति को हथियार के रूप में इस्तेमाल करती रही हैं। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भारत देश की परिकल्पना ही 1947 के बाद से शुरू की अर्थात भारत का राष्ट्र राज्य के रूप में जन्म ही 1947 के बाद हुआ। चूंकि कई दशकों तक भारत के बुद्धिजीवियों द्वारा कोई प्रतिवाद नहीं किया गया इसलिए पश्चिम दुनिया ने जैसा लिखा और समझाया उसे हम अंगीकार करते गए। लेकिन सच तो सामने आना था। भारत की नींव जब मजबूत बनने लगी तो वही पश्चिमी विश्व भारत को सभ्यताओं वाला देश कबूल करने राष्ट्र धर्म की परिभाषा चर्चा में आने लगी।
जब चीन के साथ भारत की पहचान सभ्यताओं वाले देश में होने लगी तो, चीन को लगा कि सांस्कृतिक पहचान में भारत चीन आगे निकल जाएगा क्योंकि चीन के लोग आज भी भारत को अपनी गुरु भूमि मानते हैं। ऐसी हालत में चीन ने सांस्कृतिक कूटनीति में छल का प्रयोग करते हुए दक्षिण एशिया के देशों में हिंदू संस्कृति को तोड़ने के खेल शुरू किया। नेपाल इसका सबसे बेहतरीन उद्धरण है। अन्य पड़ोसी देशों में इस्लामिक ग्रुप को हवा देकर हिंदू संस्कृति पर हमले हुए, जिनमें चीन का हाथ था।
चीन की विस्तारवादी सोच को लगाम देने के लिए जरूरी है कि भारत अपनी सांस्कृतिक कूटनीति की धार को तेज करे अर्थात जरूरी शक्ति का प्रयोग भी आवश्यक शर्त बन चुका है। सॉफ्ट पावर के सिद्धांतकार जोसफ नाई ने भी माना है कि केवल सॉफ्ट पावर से बात नहीं बनती। स्मार्ट पावर के लिए मूलभुत शक्ति की जरूरत है। बाहरी शक्तियां सदियों से भारत की सांस्कृतिक विरासत को खंडित करने की कोशिश करती रही हैं, उससे हिंदू संस्कृति अपनी ही जमीन बेगानी बन गई। लेकिन समय का चक्र बदल चुका है। भारत में ऐसी राजनीतिक व्ययस्था बन गई है, जो खंडित संस्कृति को पुन: स्थापित करने की कोशिश में है। दरअसल, यह संस्कृति दक्षिण एशिया के विकास की संस्कृति है। श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और अफगानिस्तान जैसे देश इसी संस्कृति में पुष्पित-पल्ल्वित हुए हैं। यह देशों को जोड़ने का नया आयाम बन सकता है। पुन: 54 देशों में इसका विस्तार भी संभव है। इसमें एशिया और अफ्रीका के देश हैं क्योंकि उनकी जड़ों में हिंदू संस्कृति की पहचान है। एक ऐसा विश्व जहां शांति और आपसी मित्रता की तर्ज पर हिंसा मुक्त विश्व की सोच को बल मिलेगा। इसलिए संस्कृति के प्रसार में जरूरत है दुश्मनों से उन्हीं के अंदाज में उत्तर देने की।
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