राष्ट्रीय शिक्षा दिवस : मातृ भाषा में हों व्यावसायिक पाठ्यक्रम
शिक्षा के आदान-प्रदान में माध्यम का बड़ा योगदान है। सर्वविदित है कि मातृभाषा या स्थानीय भाषा में पढ़ाने से छात्र अधिक तेजी से समझते और सीखते हैं।
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में बहुभाषावाद और भाषा की शक्ति पर बल दिया गया है। इस वर्ष पहली बार आईआईटी, एनआईटी सहित प्रतिष्ठित कॉलेजों में प्रवेश के लिए होने वाली जेईई परीक्षा को एनटीए ने अंग्रेजी के अलावा 12 भारतीय भाषाओं में कराया। परीक्षा में लगभग 9 लाख छात्र सम्मिलित हुए जिनमें 1.5 लाख से अधिक छात्रों ने भारतीय भाषाओं में परीक्षा दी। निश्चित रूप से इनमें से बहुत सारे छात्रों ने अपनी लगन और मेहनत से सफलता भी प्राप्त की होगी। यह भी स्वाभाविक है कि ये छात्र व्यावसायिक और तकनीकी पढ़ाई भी भारतीय भाषाओं में ही करने में सहज होंगे। भारतीय भाषाओं में पढ़ने के अवसर न मिलने से कितने ही नौजवानों के सपने उड़ान भरने के पहले ही लहूलुहान हो जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनेकों बार देश में शिक्षा के माध्यम के रूप में भारतीय भाषाओं के महत्त्व को रेखांकित किया है।
जिन डेढ़ लाख छात्रों ने भारतीय भाषाओं में परीक्षा दी है, उनमें 95% छात्र हिंदी, गुजराती और बांग्ला भाषाओं के हैं। विचारणीय विषय है कि मराठी, तमिल, तेलगु, कन्नड़, असमी, उड़िया में नाम मात्र के छात्रों ने प्रवेश परीक्षा दी जबकि इन भाषाओं के बोलने वाले करोड़ों की संख्या में है। स्कूली शिक्षा के माध्यम के रूप में भी इन भाषाओं में लाखों की संख्या में छात्र पढ़ते हैं। स्कूली शिक्षा अपने को उच्च शिक्षा के अनुरूप ही संरेचित करती है। इसलिए उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं को पढ़ाई का माध्यम बनाया जाना नितांत आवश्यक है। अब छात्र भाषायी अवरोध के बिना अपनी रु चि के कोर्सेज में पढ़ाई कर सकेंगे। अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं में शिक्षा प्राप्त कर अपनी योग्यता का अधिकतम उपयोग कर सकेंगे। इस दिशा में एआईसीटीसी ने बीस से अधिक कॉलेजों को पहली बार इस शैक्षणिक सत्र में पांच भारतीय भाषाओं में व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रारंभ करने की अनुमति दी है।
देश के 73 प्रतिशत से अधिक छात्र स्कूली शिक्षा में भारतीय भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करते हैं। इनमें से बहुसंख्यक बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। इनको अपनी भाषा में व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलने से बहुत बड़ा वर्ग अपना कौशल विकास कर सकेगा। आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में बहुभाषा और समावेशी शिक्षा का यह ढांचा छात्रों को भाषा अवरोध के बिना अपनी प्रतिभा को निखारने का अवसर प्रदान करेगा। भारतीय भाषाएं दुनिया में समृद्ध, वैज्ञानिक और अधिक अभिव्यंजक भाषाओं में से है जिनमें प्राचीन और आधुनिक सहित्य का विशाल भंडार है। वस्तुत: यहां मांग-आपूर्ति का सिद्धांत लागू होता है। सभी व्यावसायिक पाठ्यक्रम भारतीय भाषाओं में प्रारंभ किए जा सकते हैं, जैसे ही भारतीय भाषाओं में शैक्षणिक सामग्री की मांग बढ़ेगी। लेखक और निजी प्रकाशक भी पुस्तकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए आगे आएंगे। कोई कारण नहीं कि इन भाषाओं में आधुनिक तकनीक की मदद से विज्ञान, गणित और तकनीकी विषयों के लिए समृद्ध विषय सामग्री न तैयार की जा सके। कहावत है कि कोस-कोस पर बदले पानी-चार कोस पर बानी। आठवी सूची में शामिल 22 भाषाओं के अलावा देश में अनेकों बोलियां और भाषाएं हैं। बहुभाषी भारत देश में भाषाओं को संरक्षित और समृद्ध करने की आवश्यकता है। भारत की भाषायी विविधता के अनुरूप इस वर्ष होने वाला नेशनल अचीवमेंट सर्वे 22 भाषाओं में कराया जा रहा है। भाषायी माध्यम वाले छात्रों का उचित मूल्यांकन और तदनुरूप सुधार और विकास की रणनीति का निर्माण स्कूली शिक्षा के सुदृढ़िकरण में महत्त्वपूर्ण है।
एक बड़े वर्ग को भारतीय भाषाओं में व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा की आवश्यकता है। इसके लिए उपयुक्त इको सिस्टम तैयार कर गुणवत्ता शिक्षा उपलब्ध कराए जाने से कुशल और योग्य इंजीनियर्स और तकनीशियनों का बड़ा पूल तैयार किया जा सकेगा जो विकसित भारत के सपनों को सफल बनाने में योगदान कर सकेंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुपालन में मातृ भाषा, क्षेत्रीय भाषा, स्थानीय भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में प्रयोग करने एवं भारतीय भाषाओं के विकास से जनवादी, सर्वग्राही और सर्वसुलभ शिक्षा उपलब्ध कराया जा सकेगा जो बड़े बदलाव का संकेत है।
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