तृणमूल कांग्रेस : हैसियत बढ़ाने की जद्दोजहद

Last Updated 12 Nov 2021 12:18:00 AM IST

पश्चिम बंगाल में मार्च-अप्रैल में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की लाख कोशिश और तमाम आश्वासन व दावों को खारिज करते हुए तृणमूल कांग्रेस ने प्रचंड और अभूतपूर्व जीत हासिल की।


तृणमूल कांग्रेस : हैसियत बढ़ाने की जद्दोजहद

हालांकि ममता बनर्जी नंदीग्राम से खुद चुनाव हार गई, लेकिन तय समय सीमा के भीतर कोलकाता के भवानीपुर क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीतकर मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने में कामयाब रहीं। पहले सूबे के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत और फिर उपचुनाव में खुद की जीत के बाद से ‘अग्निकन्या’ के नाम से मशहूर ममता बनर्जी को न केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा, बल्कि कई क्षेत्रीय दल और भाजपा विरोधी कुछ नेता तो यहां तक कहने लगे कि अगर अगले लोक सभा (2024) में भाजपा को केंद्र की सत्ता से बेदखल करना है, तो ममता बनर्जी को आगे करना ही होगा।

गैर-भाजपाई दलों के कई नेता दबी जुबान से तो कई नेता खुले मंच पर यह कहने-सुनते देखे गए कि अगर केंद्रीय सत्ता पर कब्जा चाहिए तो निजी विचारधारा व मनमुटाव और विरोधाभाव को दरकिनार कर ममता को विपक्ष की मुख्य नेत्री के रु प में प्रस्तुत करना चाहिए। कहना गलत नहीं होगा कि पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने खुद को सत्ता की दावेदार कहने वाली भाजपा को करारी शिकस्त दी और कांग्रेस व वाम मोर्चा को शून्य पर ला दिय।, इससे तृणमूल नेताओं में तो आत्मविश्वास बढ़ा ही, गैर-भाजपाई दलों के नेताओं को भी ममता के रूप में आशा की किरण नजर आई। मार्च-अप्रैल के विधानसभा चुनाव में एकतरफा फतह के बाद हुए उपचुनावों में भी तृणमूल का परचम लहराता रहा और सभी सीटों पर केवल और केवल ‘जोड़ा फूल’ (तृणमूल कांग्रेस का चुनाव चिह्न) खिला। चुनावी जीत से इतर तृणमूल ने अन्य दलों के नेताओं को अपने खेमे में लेने का खेल भी जारी रखा, जिस वजह से सूबे के कई भाजपाई, कांग्रेसी व वामपंथी नेता उन्हीं ममता बनर्जी का बखान करने लगे, जो विधानसभा चुनाव से ठीक उन्हें कोसते थे। इतना ही नहीं, ममता को छोड़ ‘कमल’  (भाजपा का चुनाव चिह्न) थामने वाले कई धुरंधर नेता (मुकुल राय, सव्यसाची दत्त व राजीव बनर्जी) अब घर वापसी में ही खुद का राजनीतिक भविष्य सुरक्षित समझ रहे हैं। इस बीच ममता ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और आसनसोल से भाजपा के सांसद रहे बाबुल सुप्रियो को अपने पाले में कर जता दिया है कि जिस तरह से प्रदेश भाजपा ने उनके दल (तृणमूल) में सेंधमारी की थी अब ठीक उसी राह पर वे (ममता) भी चल पड़ी हैं। राजनीति के पंडितों का मत है कि भाजपा को बंगाल विधानसभा चुनाव हारने का जितना गम नहीं हुआ होगा उससे कहीं ज्यादा भाजपा के केंद्रीय नेता जिस बात को लेकर चिंतित हैं, वह यह है कि टीएमसी अन्य राज्यों में ‘जोड़ा फूल’ खिलाने की जुगत में है। बीते दिनों ममता ने जहां गोवा (पणजी) को दौरा किया वहीं उनके सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी ने त्रिपुरा की धरती से भाजपा पर हमला बोला।
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि तृणमूल कांग्रेस पंजाब और उत्तर प्रदेश (जहां अगले साल की शुरु आत में विधानसभा चुनाव होना है) पैर पसारने को तत्पर है, बल्कि कई जगहों पर उम्मीदवार भी उतार सकती है, जो भाजपा के लिए चिंता का विषय हो सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि तृणमूल कांग्रेस को बंगाल की तरह अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव में सफलता नहीं मिलने वाली है, इस बात को ममता बनर्जी भी भलीभांति जानती हैं, फिर भी वह इस गणित और आकलन के मद्देनजर अन्य प्रदेशों के विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार उतारने पर विचार कर रही हैं कि तृणमूल के उम्मीदवार जीतें या न जीतें, बस तृणमूल प्रत्याशी के कारण भाजपा का उम्मीदवार चुनाव हार जाए तो यह भी उनके लिए किसी जीत से कम नहीं होगा।
कहावत है-दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है और इसी कहावत को ध्यान में रखते हुए तृणमूल कांग्रेस न केवल अगले साल कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने में जुटी है, बल्कि 2024 के लोक सभा चुनाव में मोदी को सत्ताविहीन करने को भी आतुर है। ममता का बंगाल के बाहर का दौरा, मोदी की आलोचना, भाजपा को कोसना इन सब बातों ने बहुत नहीं तो थोड़ा ही सही केसरिया खेमे को हिला तो अवश्य दिया है। इन सब के बीच अगले साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को बेहतर नतीजे प्राप्त करने से कहीं ज्यादा 2024 की चिंता सता रही है। देखना है कि ममता बनर्जी की बढ़त को कम करने के लिए भाजपा के रणनीतिकार तुरुप का कौन सा पत्ता चलते हैं?

शंकर जालान


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