विकासोन्मुख : पूर्वाचल और अयोध्या

Last Updated 12 Nov 2021 12:22:22 AM IST

वर्षो नहीं, सदियों से माना जाता रहा है कि अयोध्या को सीता का श्राप लगा है। इसके कारण ही अयोध्या की रौनक चली गई है।


विकासोन्मुख : पूर्वाचल और अयोध्या

सब सूना-सूना लगता है। लोगों की यह आशंका सही भी थी। अनेक तीज-त्योहारों के बीच भी अयोध्या सूनी-सूनी ही लगती थी। पिछली कई सदियों से यह जानते हुए भी कि यह सनातनियों के पूज्य प्रभु राम की जन्मस्थली है, इसे विश्व क्या भारत के स्तर पर भी कभी तीर्थ की मान्यता नहीं मिली।
कभी सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रही अयोध्या से लेकर अब से तीन सौ वर्ष पहले तक यह अवध के नवाबों की भी राजधानी रही। पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की बजाय अफगानी सरदार अहमदशाह अब्दाली का साथ देने वाले वजीर उल ममालिक ए हिंदुस्तान नवाब शुजाउद्दौला के सरयू किनारे स्थित महल के खंडहर आज भी देखे जा सकते हैं। अयोध्या में  भव्य मंदिरों के कंगूरे भी अहसास कराते हैं कि इस नगरी का अतीत बड़ा गौरवशाली रहा होगा। यहां तक कि घोर वामपंथी विचारधारा के लेखक राहुल सांकृत्यायन ने भी अपनी प्रसिद्ध रचना ‘वोल्गा से गंगा’ में यह लिखते हुए संकोच नहीं किया कि ‘पुष्यमित्र के शासन-काल के आरम्भिक दिनों में भी साकेत का खास महत्त्व था, और यह भी कि पतंजलि और पुष्यमित्र के समय अयोध्या नहीं, साकेत ही इस नगर का नाम था। पुष्यमित्र, पतंजलि और मिनान्दर के समय से हम दो सौ साल और पीछे आते हैं। इस समय भी साकेत में बड़े श्रेष्ठी (सेठ) बसते थे।’

अपने इस वैभवशाली इतिहास के बावजूद स्वतंत्र भारत में अयोध्या तीर्थ या पर्यटन केंद्र के रूप में अब तक उपेक्षित ही रही। उत्सवों एवं तीज-त्योहारों में आसपास के जिलों के श्रद्धालु ही सिर पर अनाज की गठरी बांधे आते, सरयू किनारे ही अपना भोजन पकाते, वहीं आसपास निवृत्त होते, जरूरत पड़ती तो किसी मंदिर के प्रांगण में चादर बिछाकर झपकी ले लेते और अगली सुबह अपने घर निकल जाते। यहां संतों और राजे-रजवाड़ों द्वारा बनाए गए अनेकानेक मंदिरों की कमी नहीं थी। घर-घर मंदिर थे, और अभी भी हैं। हर तेरस (त्रयोदसी) को सरयू पार के गोंडा, बहराइच, बलरामपुर, बस्ती आदि जिलों से तमाम श्रद्धालु आते हैं। पवित्र सरयू के निर्मल जल में स्नान करते हैं। नागेर नाथ को जल अर्पित करते हैं। हनुमानगढ़ी जाकर बजरंग बली को प्रसाद चढ़ाते हैं, और अपने घरों को लौट जाते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी के दिन 14 कोसी परिक्रमा शुरू होती है। लोग आते हैं। 24 घंटे में परिक्रमा पूरी करते हैं। गिरते-पड़ते अपने घर लौट जाते हैं। इसके तीसरे दिन एकादशी को पंचकोशी परिक्रमा शुरू होती है। इसमें ज्यादातर स्थानीय लोग हिस्सा लेते हैं। कुछ घंटे में यह भी खत्म हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सरयू स्नान की भीड़ भी अयोध्या और उसके बहुत कम सुविधाओं वाले मंदिर संभाल लेते हैं। अगहन में पड़ने वाले राम विवाह, चैत्र की रामनवमी और श्रावण के झूलनोत्सव में अयोध्या श्रद्धालुओं का ज्वार देखती आई है, लेकिन विश्व पर्यटन के नक्शे पर अथवा राष्ट्रीय तीथरे में अयोध्या अब तक अपना स्थान बना पाने में असफल ही रही है। क्योंकि स्वतंत्र भारत के शासकों ने कभी इस दिशा में सोचा ही नहीं।
स्वतंत्रता के कुछ वर्षो बाद ही विवादित बाबरी ढांचे के नीचे रामलला के प्राकट्य से आतंकित सेक्युलर शासकों ने कभी अयोध्या की ओर मुड़कर भी नहीं देखा। करीब तीन दशक पहले अयोध्या की छाती पर कलंक के समान खड़ा एक प्रतीक तो हटा, लेकिन मुकदमों ने रामलला का पीछा नहीं छोड़ा।  स्थितियां बदलीं ठीक दो साल पहले 09 नवम्बर, 2019 को, जब सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायमूर्तियों की पीठ ने फैसला रामलला के पक्ष में सुनाया, लेकिन सीता जी के श्राप से अयोध्या को मुक्ति मिलती दिखाई दी पांच अगस्त, 2020 को, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीराम जन्मभूमि पर स्वयं भव्य मंदिर का शिलान्यास किया। मंदिर बनेगा कि नहीं? बनेगा तो कब बनेगा? जैसे सवाल खत्म हो चुके थे। इस बीच रामजन्मभूमि स्थल पर चार सौ गुणो तीन सौ वर्ग फीट की नींव तैयार की जा चुकी है। लक्ष्य है कि दिसम्बर 2023 तक मंदिर इतना तैयार हो जाए कि 2024 की मकर संक्रांति के बाद किसी पावन सुबह गर्भ गृह में श्रीरामलला की भव्य आरती देखी जा सके। सूर्य के उत्तरायण में आने के बाद का वह दिन न सिर्फ  अयोध्या की उदासी को पूरी तरह खत्म करेगा, बल्कि पूरे पूर्वाचल की प्रगति के लिए नये द्वार भी खोलेगा। इसकी शुरुआत हो चुकी है।
अब प्रति वर्ष छोटी दिवाली के दिन न सिर्फ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में अयोध्या के आसपास, बल्कि देश-दुनिया के लोग भी अयोध्या पहुंच कर भव्य दीपोत्सव के दर्शन करते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयास से अब अयोध्या पहुंचने की दिक्कतें भी धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। कभी मुंबई जैसी महानगरी से अयोध्या जाने के लिए सिर्फ  एक साप्ताहिक ट्रेन हुआ करती थी, अब दक्षिण भारत के रामेश्वरम एवं बेंगलुरू से भी सीधे अयोध्या या आसपास के जिलों तक के लिए सीधी ट्रेन सेवा शुरू हो गई है (हालांकि मुंबई से संपर्क अब भी बहुत सीमित है)। योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से कुशीनगर में अंतरराष्ट्रीय विमानतल की शुरुआत हो चुकी है। अयोध्या में अंतरराष्ट्रीय विमानतल निर्माणाधीन है और उत्तर प्रदेश के ही नोएडा में अंतरराष्ट्रीय विमानतल की नींव रखी जा चुकी है। दिल्ली से सड़क मार्ग से अयोध्या पहुंचना भी अब अत्यंत सुगम हो चुका है।
कोई अपने चौपहिया वाहन से सिर्फ  सात घंटे में दिल्ली से अयोध्या पहुंच सकता है। यहां अब कई होटल आकार लेने लगे हैं। यहां तक कि कुछ मंदिरों एवं आश्रमों ने भी अपने भक्तों के ठहरने और खान-पान की उत्तम व्यवस्थाएं करनी शुरू कर दी हैं। विकास की यह धारा अयोध्या तक ही सीमित नहीं है। ट्रेन के जरिए रामेश्वरम या बेंगलुरू से आने वाले श्रद्धालु सिर्फ अयोध्या नहीं घूमते। श्रावस्ती, कुशीनगर और काशी तक की यात्राएं करके अगले सप्ताह की ट्रेन से वापसी करना चाहते हैं। ऐसे सैलानियों को सुविधा देने के लिए टूर एवं ट्रैवेल व्यवसाय भी पंख पसारने लगा है, लेकिन बहुत कुछ किया जाना बाकी भी है। यह धीरे-धीरे होगा, लेकिन यह निश्चित है कि अयोध्या के साथ-साथ जल्दी ही पूरा पूर्वाचल पुष्पक विमान की तरह ऊंची उड़ान भरेगा।

आचार्य पवन त्रिपाठी


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