सरोकार : ब्राजील में ब्लैक महिलाओं का डंका

Last Updated 29 Nov 2020 02:51:20 AM IST

अमेरिकी चुनावों का तो खूब डंका बजा, लेकिन नवंबर मध्य में ब्राजील में भी चुनाव हुए। इससे पहले सोशल मीडिया में ब्लैक उम्मीदवारों को समर्थन देने वाले मैसेज छाए रहे।


सरोकार : ब्राजील में ब्लैक महिलाओं का डंका

एक फेसबुक पोस्ट में लिखा गया, ‘‘अपने मास्क, अपनी पहचान और पेन को भूलिए मत। न ही यह भूलिए कि आप ब्लैक हैं। तो मेरा वोट एक ब्लैक को जाएगा।’’
ब्राजील के बाशिंदों में अफ्रीकी मूल के 56 फीसद लोग हैं, लेकिन ब्राजील कांग्रेस में सिर्फ  17.8 फीसद। लेकिन अब ब्लैक लोग स्थानीय सरकारों में बड़ी तेजी से उभरकर आ रहे हैं, खास तौर से ब्लैक औरतें। इस साल के चुनावों में देश भर की सिटी काउंसिल्स में 14 फीसद ब्लैक महिलाओं ने जीत हासिल की है। 2016 में अफ्रीकी ब्राजीलियन औरतों को सिर्फ  3.9 फीसद सीटें मिली थीं। वैसे ब्लैक महिलाओं के लिए बड़े पदों पर पहुंचना बहुत मुश्किल होता है। वहां की कांग्रेस के निचले सदन के 513 रिप्रेजेंटेटिव्स में ब्लैक औरतों की संख्या सिर्फ  13 है और 81 सदस्यों वाली सीनेट में सिर्फ  एक ब्लैक महिला है।  
ब्राजील में ब्लैक महिला अधिकारों ने करवट तब ली थी, जब रियो द जेनेरियो में 2018 में मेरिएले फ्रांको की हत्या हुई थी। फ्रांको एक ब्लैक लेसबियन सिटी काउंसिल थीं, जो गरीब ब्लैक लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रही थीं। उनकी हत्या को मीडिया ने मेरिएले इफेक्ट कहा था। इससे ब्लैक उम्मीदवारों पर बहुत असर हुआ। यूं फ्रांको से पहले भी कई ब्लैक महिला राजनेताओं ने बाकी महिलाओं के लिए रास्ता खोला। इसमें बेनेदिता द सिल्वा और जेनेते पिएता जैसी नेता शामिल हैं। यह वह दौर था, जब वामपंथी राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला दा सिल्वा की सरकार के समय आर्थिक उछाल हुआ था। लूला की पार्टी में बहुत सी ब्लैक महिलाएं शामिल थीं।

इस समय ब्राजील में ब्लैक लोगों का बुरा हाल है। व्हाइट लोगों के मुकाबले वे कोविड-19 से 40 फीसद अधिक मौत का शिकार हुए हैं। वे बड़ी संख्या में बेरोजगार हैं, गरीब हैं। पुलिसवाले रोजाना किसी न किसी ब्लैक को अपने आतंक और गोलियों का शिकार बनाते हैं। तिस पर उन्हें राजनीतिक संरक्षण मिलता है। 19 नवंबर, 2020 को जोओ फ्रेइतास को दो व्हाइट सिक्योरिटी गार्डस ने पीट-पीटकर मार डाला, लेकिन राष्ट्रपति जेयर बोलसोनारो ने कहा कि सभी का रंग एक बराबर है। ऐसे में ब्लैक महिला राजनेता नस्लवाद को भी चुनावी मुद्दा बनाती हैं। वे अमेरिका में कमला हैरिस की जीत से काफी खुश हैं और उम्मीद करती हैं कि ब्राजील में हवा बदलेगी।
ब्राजील में ब्लैक महिलाओं की जो स्थिति है, वही स्थिति भारत में मुसलिम महिलाओं की है। यहां भी सारा मामला प्रतिनिधित्व का है। आजादी के बाद 17 लोकसभा में पांच में कोई मुसलिम महिला सांसद नहीं रहीं। यह आंकड़ा चार से आगे कभी नहीं बढ़ा। इस समय लोकसभा में तीन मुसलिम महिला सांसद हैं। यह 0.7 फीसद से भी कम है, जबकि आबादी में उनकी संख्या 6.9 फीसद के करीब है। इन्हें तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार इस्तेमाल भले करती हो, लेकिन इनकी ताकत से घबराती है। शाहीन बाग जैसे आंदोलन के खिलाफ बड़े-बड़े नेताओं के बयान इसी डर को दिखाते हैं। फिलहाल ब्राजील के नस्लवाद में भारत की सांप्रदायिकता के स्वर सुनाई देते हैं। जैसे ब्राजील में ब्लैक औरतें अपनी लड़ाई में जीत रही हैं, भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय की औरतें भी अपने हक की लड़ाई लड़ती रहेंगी।

माशा


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