एमएसपी : किसानों की असली आजादी

Last Updated 30 Oct 2020 03:39:24 AM IST

केरल सरकार ने किसानों को शानदार तोहफा दिया है। राज्य सरकार ने एक नवम्बर से 16 सब्जियों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने की घोषणा की है।


एमएसपी : किसानों की असली आजादी

ऐसा करने वाला वह देश का पहला राज्य बन गया है। सब्जियों का यह न्यूनतम या आधार मूल्य उनकी उत्पादन लागत से 20 प्रतिशत अधिक होगा। अगर बाजार मूल्य नीचे चला जाता है तो भी किसानों से बेस प्राइस पर ही उनकी उपज खरीदी जाएगी। ऐसा माना जा है कि सब्जियों और फलों की केरल में एमएसपी तय करने से वहां के किसान फल एवं सब्जियां उगाने को प्रेरित होंगे। इससे राज्य में फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में बढ़त होगी और केरल के किसानों को राहत भी मिलेगी। वे अपनी उपज का निश्चित मूल्य हासिल कर सकेंगे। उनकी आमदनी बढ़ेगी जिससे वे सब्जियों-फलों के भंडारण पर भी ज्यादा पैसा खर्च कर पाएंगे। इससे उपभोक्ता पर बहुत असर नहीं पड़ेगा क्योंकि वह तो पहले से ही ज्यादा कीमत दे रहा है, जबकि किसानों को वाजिब कीमत नहीं मिलती।  
गौरतलब है कि जिन सब्जियों को हम बाजार से 50 से 60 रुपये प्रति किलो की दर पर खरीद रहे हैं, वास्तव में वही सब्जियां किसान औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर होते हैं। दरअसल, देश में उत्पादित करीब 40 प्रतिशत ताजा खाद्य पदार्थ ग्राहकों तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाते हैं। बंपर फसल और कई बार कोल्ड स्टोरेज की कमी के साथ-साथ नाजुक प्रकृति की कुछ फसलों को बेच पाने की गुंजाइश ही बहुत कम रहती है। खाद्य प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग) से फलों एवं सब्जियों की उम्र बढ़ जाती है, लेकिन देश में इसकी सुलभता बहुत सीमित है। देश में कुल उत्पादित फलों एवं सब्जियों का महज 2 प्रतिशत ही प्रसंस्कृत हो पाता है जबकि मोरक्को जैसे छोटे देश में भी यह आंकड़ा 35 प्रतिशत और अमेरिका में 60 प्रतिशत है। मालूम हो, फलों और सब्जियों की खेती ज्यादातर सीमांत एवं छोटे किसान ही करते हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन होती है। उन पर फसलों के कम दाम मिलने का गहरा असर होता है। हालांकि देश में उपजाऊ जमीन के सिर्फ 10 प्रतिशत से भी कम हिस्से पर फलों एवं सब्जियों की खेती होती है।

बहरहाल, किसी भी फसल की एमएसपी से किसानों में एक तरह से वाजिब कीमत मिलने का भरोसा पैदा होता है और वे इसे उगाने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। भारत में सबसे पहले साल 1966-67 में गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की गई थी। तब देश में हरित क्रांति की शुरु आत हुई थी और अनाज की तंगी से जूझ रहे देश में कृषि उत्पादन बढ़ाना सबसे प्रमुख लक्ष्य था। ऐसे में केरल सरकार द्वारा किया गया फैसला किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है। आज वास्तव में किसानों के लिए इस तरह के कानूनों की सख्त जरूरत है जिनसे किसानों को उत्पाद का उचित एवं वाजिव मूल्य मिल सके और उन्हें सीधा फायदा पहुंचे।
किसानों की समस्याओं की जड़ें तो खेतों से दूर सरकारी नीतियों में छिपी हुई हैं। इसलिए उनका हल भी सही सरकारी नीतियों के माध्यम से ही संभव हो सकता है। किसान का मुख्य संकट आर्थिक है। उसका समाधान किसान परिवार की सभी बुनियादी आवश्यकताएं प्राप्त करने के लिए सम्मानजनक आय की प्राप्ति है। किसानों की समस्याओं का समाधान केवल उपज का थोड़ा मूल्य बढ़ाकर नहीं होगा, बल्कि किसान के श्रम का शोषण, लागत वस्तु के खरीद में हो रही लूट, कृषि उत्पाद बेचते समय व्यापारी, दलालों द्वारा खरीद में या सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद में की जा रही लूट, बैंकों, बीमा कंपनियों द्वारा की जा रही लूट इन सबको बंद करना होगा। बहरहाल, केरल सरकार के फैसले के बाद कर्नाटक सरकार भी ऐसी मांग पर विचार कर रही है और पंजाब में भी ऐसी मांग हो रही है। महाराष्ट्र में भी समय-समय पर ऐसी मांग उठती रही है। महाराष्ट्र में खासकर अंगूर, टमाटर, प्याज जैसी फसलों के किसान परेशान रहते हैं। कुछ साल पहले देखा गया था कि किसानों को अंगूर 10 रुपये किलो बेचना पड़ा जबकि उनकी लागत 40 रुपए प्रति किलो तक आ रही थी। पंजाब के किसान संगठनों ने हाल में राज्य सरकार से मांग की है कि सब्जियों एवं फलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाए। इससे सबक लेकर सब्जियों के लिए आधार मूल्य पूरे देश में तय होना चाहिए। यही किसानों की असली आजादी है।

रविशंकर


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