बतंगड़ बेतुक : बस अब चैट नहीं करेंगे

Last Updated 04 Oct 2020 12:11:32 AM IST

आज झल्लन दुखी नजर आ रहा था और हमसे सीधे नजर भी नहीं मिला रहा था, लगता था जैसे वो किसी गम में गला जा रहा था।


बतंगड़ बेतुक : बस अब चैट नहीं करेंगे

हमने उसके कंधे पर हाथ रखने के लिए हाथ तो आगे बढ़ा दिया परंतु दिमाग में कोरोना डिस्टेंसिंग के कौंध जाने से बढ़ा हुआ हाथ पीछे हटा लिया। हम उसके प्रति स्पर्शी संवेदना नहीं प्रकट कर पाये और मन-ही-मन कोरोना को कई बार कोस आये। हमने पूछा, ‘काहे झल्लन, तेरी देह ढीली चल रही है या तेरे मन में कोई व्यथा पल रही है?’ झल्लन बोला, ‘हम ऐसा अंधेर कभी नहीं देखे जैसा अब देख रहे हैं, इस दुष्ट व्यवस्था में कैसे-कैसे सुंदर सलोने लोग कैसे-कैसे कष्ट झेल रहे हैं।’ हमने कहा, ‘इस दुष्ट-भ्रष्ट व्यवस्था का कौन-सा हिस्सा कहां भ्रष्ट हो रहा है और किसके कष्ट पर तुझे इतना कष्ट हो रहा है?’
झल्लन बोला, ‘वे करोड़ों लोगों का दिल बहलाती हैं, उन्हें  मनोरंजन के झूले में झुलाती हैं, लोगों की आंखें जिन्हें देखने को तरस जाती हैं, जिन्हें देखकर दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं और आंखें चमक जाती हैं, उन्हें निजी चैट के लिए सम्मन दिया जा रहा है और फालतू लोगों द्वारा फालतू की पूछताछ के लिए फालतू में बुलाया जा रहा है।’ हमने मजाक किया, ‘जिन लोगों को तू फालतू बता रहा है वे भी दिल तो रखते होंगे, उनके भी अरमान मचलते होंगे, उनके नयन भी दर्शन-नजराने को तरसते होंगे। सो, उन्हें  लगा होगा कि वैसे तो दर्शन पा नहीं सकते तो ऐसे ही दर्शन पा लिया जाये और पूछताछ के बहाने उन्हें दफ्तर बुला लिया जाये।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हमारे दिल में बालाओं के लिए दर्द उठ रहा है और आपके मन में मजाक उग रहा है। और उधर हमारा मीडिया है जो चीख-चिल्ला रहा है, चीख-चीखकर जमाने को बालाओं के अपराध गिना रहा है।’ हमने कहा, ‘तेरा मीडिया बालाओं के अपराध नहीं गिना रहा है, दिन-रात एक करके अपनी टीआरपी बढ़ा रहा है, और फिर अगर कोई नशा करेगा, हशीश-कोकीन जीभ पर धरेगा, कानून का उल्लंघन करेगा, पूछताछ और गिरफ्तारी में घिरेगा तो मीडिया तो हो-हल्ला ही करेगा।’

झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, यहां सड़क से संसद तक नोड़ियों की भरमार है, नशेड़ियों के हाथ में विपक्ष है और नशेड़ियों के हाथ में सरकार है। इनके नशे से पूरे मुल्क का नशा उतर रहा है और कुछ नशीली बालाओं के थोड़ा-सा नशा लेने पर इन्हें नशा चढ़ रहा है। थोड़ी-सी उमंग के लिए, मन की थोड़ी-सी तरंग, थोड़े-से उत्साह और जिंदगी से थोड़ी-सी जंग के लिए थोड़ी-सी हशीश-कोकीन जीभ को चखा दी तो कौन-सा बड़ा पाप कर दिया, लेकिन मीडिया को देखो, जरा सी बात पर कैसा पल्राप कर दिया।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, इनका नशा इसलिए बुरा है कि इनके नशे से मीडिया को ज्यादा नशा चढ़ने लगता है और सारा-का-सारा मीडिया हवा में उड़ने लगता है।’ झल्लन बोला, ‘यही तो ददाजू, मीडिया को चीख-चिखावन और उन्माद बढ़ावन की जो नशीली लत लगी है उस पर कोई नहीं बोलता, कोई अपनी जुबान तक नहीं खोलता। बालाओं की लत तो बालाओं का भी नुकसान नहीं कर रही है पर मीडिया की लत की मार तो हर भले आदमी के विवेक पर पड़ रही है, किसी भी नशा नियंत्रक को ये बात समझ में नहीं आ रही है, और जनता जो लोकतंत्र में मूर्ख से मूर्खतर होती गयी है इसके अंजाम को नहीं समझ पा रही है।’
हमने कहा, ‘पर झल्लन, तेरा मीडिया जो नशा करता और करवाता है वह किसी कानून की पकड़ में नहीं आता है और जो कानून की पकड़ में आ जाता है, कानून उस पर चढ़ जाता है। कानून तो कानून होता है और कानून का भी एक कानून होता है, वह इसमें फर्क नहीं करता कि नशा किसी सुमुखी बाला ने किया है या किसी चरसी लाला ने किया है। अगर नशा करोगे और नशा करवाओगे तो अंधे कानून की नजर से बचकर कहां जाओगे।’ झल्लन बोला, ‘पर ददाजू, जो नशा उगाते हैं, बेचते हैं, इधर से उधर भिजवाते हैं, बच्चे-बच्चियों को नशे की लत लगवाते हैं, उनका तो कानून कुछ कर नहीं पाया, बस, हमारी चेहेती बालाओं को पकड़ लाया, कानून का यह काम हमारी समझ में नहीं आया।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, जो नशा उगाते हैं, नशे का धंधा चलाते हैं, नशे को बूढ़े-बच्चों-जवानों तक पहुंचाते हैं वे नेताओं और अधिकारियों को भरपूर खिलाते हैं, तभी न अपना व्यापार चलाते हैं। अगर सुकोमल, सुकुमारी बालाओं ने भी वक्त पर चढ़ावा चढ़ा दिया होता तो न उनको सम्मन मिलता, न उनका ये तमाशा बनता।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, अब तो हम भी डर रहे हैं, सोचते हैं हम ये क्या कर रहे हैं। कबू-कभार हम भी चंडूखाने चले जावे हैं और थोड़ी चिलम हम भी चढ़ा आवे हैं। देखते हैं, जब कानून ने बेचारी बालाओं को नहीं छोड़ा तो हमें क्या छोड़ेगा, अगर पकड़ में आ गये तो बहुत तोड़ेगा।’ हमने कहा, ‘तो तू अब नशा करना छोड़ देगा, चरस-अफीम से मुख मोड़ लेगा?’ झल्लन बोला, ‘कैसी बात करते हो ददाजू, नशे से मुंह कैसे मोड़ लेंगे, बस, थोड़े होशियार रहेंगे और जैसी चैट के चक्कर में बालाएं फंसी हैं वैसी चैट करना छोड़ देंगे।’

विभांशु दिव्याल


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