श्रद्धांजलि : अभिनय की चमकदार कड़ी थे ऋषि
हिंदी फिल्मों के हीरो यानी नायक की एक खास कैटेगरी के लिए एक विशेषण इस्तेमाल होता है-सदाबहार।
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ऋषि कपूर उसी श्रेणी के अभिनेता थे। देव आनंद के बाद यकीनन एक रोमांटिक हीरो के तौर पर ऋषि कपूर सबसे लंबी पारी खेलने वाले अभिनेता के तौर पर याद किए जाएंगे। सत्तर के दशक में बॉबी से शुरू हुआ रोमांटिक भूमिकाओं का उनका सिलसिला लगभग ढाई दशक और करीब 90 फिल्मों तक चला। कलाओं की विस्तृत दुनिया में अभिनय एकमात्र ऐसी कला है, जिसमें एक ही जीवन में कई जिंदगियां जीने का मौका मिलता है। ऋषि कपूर की शख्सियत में एक बच्चे की मासूमियत, मस्ती, बेफिक्री, बिंदासपन, साफगोई, शरारत, बेचैनी और जोश था, जिसे उन्होंने अपने फिल्मी किरदारों में बखूबी ढाला। राज कपूर की क्लासिक फिल्म मेरा नाम जोकर में भूमिका राज कपूर की किशोरावस्था की थी जो अपनी टीचर सिमी ग्रेवाल के प्रति तीखा यौन आकषर्ण महसूस करता है। उस छोटी-सी लेकिन जटिल मनोभावों को दशर्ने वाली भूमिका के लिए ऋषि कपूर की प्रशंसा हुई। इस प्रशंसा के पीछे की घनघोर मेहनत और अपने पिता के सख्त निर्देशन की कहानी उन्होंने अपनी आत्मकथा में बयान की है। एक दृश्य में उनकी मां का किरदार निभा रहीं अचला सचदेव को उन्हें थप्पड़ मारने थे। राज कपुर ने उस दृश्य के 8 -9 रिटेक लिए। ऋषि कपूर ने लिखा है-मेरे चेहरे पर नील पड़ गए थे और मैं जार-जार रो रहा था लेकिन मेरे पिता पर इसका कुछ असर नहीं पड़ा। वो निर्देशक पहले थे, पिता बाद में।
ऋषि कपूर की फिल्म बॉबी को हिंदी सिनेमा में एक कल्ट फिल्म का दरजा हासिल है। उस फिल्म ने उस दौर की युवा पीढ़ी को तो दीवाना बनाया ही, नौजवान इश्क के मतवालेपन और बागी तेवरों को एक कामयाब फार्मूले की तरह सिनेमा में स्थापित कर दिया। वर्ग, जाति और धर्म की दीवारों को तोड़ कर परवान चढ़ने वाली यह प्रेम कहानी ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे प्रगतिशील कथाकार की कलम से निकली थी। अमीर पूंजीपति का बेटा गरीब मछुआरे की बेटी को दिल दे बैठता है और अपने प्यार को हासिल करने के लिए अपने पारिवारिक परिवेश और पूंजीवादी जीवन मूल्यों के खिलाफ बगावत कर देता है। बॉबी एक तरह से रोमियो जूलियट की मिथकीय दास्तान का हिंदी सिनेमाई संस्करण थी, लेकिन जिसके अंत को राजकपूर ने दुखद न बनाकर सुखद रखा था। इस फिल्म से ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया युवा दिलों की धड़कन बन गए थे। ऋषि कपूर रॉक स्टार बन गए थे। उनकी मोटरसाइकिल, चौड़े फ्रेम का धूप का चश्मा, बेलबॉटम सब फैशन स्टेटमेंट बन गए थे।
सत्तर के दशक में जब ‘जंजीर’ के साथ अमिताभ बच्चन के एंग्री यंगमैन का दौर शुरू हुआ तो उसके ग़ुस्सैल तेवरों के आगे सारे हीरो फीके पड़ने लगे थे। ऋषि कपूर ने अपनी रोमांटिक छवि की बदौलत एंग्री यंगमैन का सुकून भरा विकल्प पेश किया। मनमोहन देसाई की अमर अकबर एंथनी से शुरू हुई अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर की जुगलबंदी मल्टी स्टार फिल्मों में कमाल की रही। खुशमिजाज अकबर के किरदार को ऋषि कपूर ने इतना प्यारा बना दिया कि वह आज भी बेहद लोकप्रिय है।
दरअसल, देखा जाए तो बॉबी की कामयाबी ने ऋषि कपूर के लिए हिंदी सिनेमा में एक भले, भोलेभाले, मासूम, खुशमिजाज, शरीफ शहरी नौजवान के किरदारों का जो सांचा तैयार किया, उनकी सारी अभिनय यात्रा लगभग उसी दायरे में घूमती रही। ऋषि कपूर अपनी ज्यादातर फिल्मों में एक जैसे बेहतरीन नजर आते हैं। हालांकि इस दोहराव की वजह से बाद के दौर में उन्हें काफी बोरियत होने लगी थी और ठहराव-सा आने लगा था। भीतर के कलाकार की असंतुष्टि की यह बात ख़्ाुद ऋषि कपूर ने स्वीकार की थी। इसलिए चरित्र भूमिकाओं में उन्होंने अपने अभिनेता को नये सिरे से तराशा और सबको चौंका दिया। राजू चाचा के अधेड़ विधुर का किरदार एक नई पारी की शुरु आत थी, जहां से ऋषि कपूर के भीतर के अनुभवी अभिनेता की परिपक्वता के दशर्न होने शुरू हुए। दो दूनी चार, कपूर एंड संस, हम तुम, लव आज कल, 102 नॉट आउट और मुल्क ही ऐसी ही कुछ फिल्मों के नाम हैं। अग्निपथ में खलनायक रऊफ लाला का किरदार ऋषि कपूर की पुरानी चाकलेटी हीरो वाली छवि के ठीक उलट था, जिसमें उनकी अभिनय क्षमता का अब तक छुपा पहलू नजर आया और लोग वाह-वाह कर उठे। एक मायने में ऋषि कपूर की अभिनय यात्रा में आए महत्त्वपूर्ण पड़ाव हिंदी सिनेमा के कथ्य, शिल्प में आते बदलावों की भी कहानी कहते चलते हैं।
उन्होंने राज कपूर का बेटा होने के अलावा एक कलाकार और स्टार की हैसियत से जो मुकाम हासिल किया उसकी चमक के आगे उनके बाकी दोनों भाइयों का अक्स कम रोशन दिखता है। कलाकार दैहिक अवसान के बाद भी जीवित रहते हैं। हिंदी सिनेमा में स्टार पुत्रों का सिलसिला पृथ्वीराज कपूर के तीन बेटों राज कपूर, शम्मी कपूर और शशि कपूर से शुरू हुआ था, जिन्होंने अपने पिता के नाम के साथ-साथ अपनी प्रतिभा के बूते पर भी अलग से ऊंचाइयां हासिल कीं और नामवर हुए। ऋषि कपूर उसी परंपरा की चमकदार कड़ी थे। वह चमक कभी फीकी नहीं पड़ेगी।
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