सामयिक : अभूतपूर्व लॉक-डाउन में देश

Last Updated 31 Mar 2020 12:57:32 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ में लोगों से माफी मांगते हुए कहा है कि लॉक-डाउन के अलावा कोई चारा नहीं है।


सामयिक : अभूतपूर्व लॉक-डाउन में देश

एक साथ 130 करोड़ से ज्यादा की आबादी के लॉक-डाउन का इतिहास दुनिया में नहीं है। इस नाते भारत का तीन सप्ताह का लॉक-डाउन दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा है। सबको पता है कि कोरोना मूल के कोविड 19 वायरस संक्रमण से बचाव का कोई रास्ता है तो यही कि पूरे देश में जो जहां है वही सिमटे रहने दिया जाए।
यह आरोप गलत है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिना तैयारी इसकी घोषणा कर दी। जब उन्होंने 19 मार्च को देश को संबोधित किया तो लोगों से कहा कि हमने आपसे जो भी मांगा आपने दिया, अब हमें आपका समय चाहिए, कुछ सप्ताह का समय। उसी में यह संकेत मिल गया था कि अभी वो भले लोगों से आवश्यक काम न होने पर घर से बाहर न निकलने की अपील कर रहे हैं किंतु हो सकता है आने वाले दिनों में इसे अनिवार्य कर सरकारी स्तर पर लागू करने की घोषणा हो जाए। ऐसा लगता है कि देश के मानस की परीक्षा के लिए उन्होंने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू तथा कोरोना खतरे को झेलते हुए देश को बचाने के लिए काम करने वालों को धन्यवाद ज्ञापन की अपील की थी। उसका अच्छा असर हुआ। और हल्के अपवादों को छोड़कर पूरा देश अपने घरों में बंद रहा। साथ ही ठीक समय पर यानी पांच बजे पूरे देश में लोगों ने तालियां, थालियां, घंटी, शंख आदि बजाकर धन्यवाद ज्ञापन किया।

यह देश को मानसिक रूप से एकजुट करने तथा सामूहिक ध्वनि से वातावरण को तरंगित करने की बुद्धिमतापूर्ण कोशिश थी। इसका उपहास भी खूब उड़ाया गया, लेकिन यह काफी सोच-समझकर दिया गया कार्यक्रम था जिससे यह संदेश निकला कि कोरोना के संकट से पूरे देश को मिलकर लड़ना होगा तथा इसको परास्त करने का सबसे बड़ा उपाय यही है कि हम अपने को घरों में सिमटा दें। प्रधानमंत्री ने संकल्प और संयम की बात की थी। ध्यान रखिए, उसके बाद कई राज्यों ने अपने यहां कुछ क्षेत्रों या पूरे राज्य में लॉक-डाउन कर दिया था। महाराष्ट्र, पंजाब, पुड्डुचेरी जैसे राज्यों ने तो कर्फ्यू तक लगा दिया गया। कारण यही था कि कुछ लोग यह समझने को तैयार ही नहीं थे कि वो बाहर निकलकर स्वयं को तो संकट में डाल ही रहे हैं, अपने साथ परिवार, दोस्त एवं पूरे समाज के लिए संकट का कारण बन रहे हैं। एक आदमी यदि संक्रमित हो गया तो वह बहुगुणित होते हुए हजारों लोगों को कोरोना की चपेट में ला सकता है। डॉक्टर, विशेषज्ञ, नेता, अधिकारी सब लोगों से घरों रहने की अपील कर रहे थे, लेकिन एक वर्ग इसका उल्लंघन कर रहा था। इसमें रास्ता यही बचा था कि पूरे देश को एक साथ लॉक-डाउन कर दिया जाए। प्रधानमंत्री ने लोगों को समझाते हुए कहा कि याद रखिए जान है तो जहान है। अगर आप दुनिया का परिदृश्य देखिए तो बिल्कुल भयावह है। दुनिया के 195 देश कोरोनावायरस की चपेट में आ चुके हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इससे मरने वालों की संख्या 33 हजार को पार कर चुकी है।
सात लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। सबसे ज्यादा संक्रमितों एवं मृतकों की संख्या उन देशों से आ रहीं हैं, जिन्हें विकसित दुनिया कहा जाता है और जिनकी स्वास्थ्य व्यवस्था उत्कृष्टतम मानी जाती है। अमेरिका जैसे देश में एक लाख 42 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित  हो जाएं, 2500 लोग मर जाएं और सभी संसाधन झोंक देने के बावजूद यह सिलसिला रु के नहीं तो इससे विकट स्थिति कुछ हो ही नहीं सकती। इटली जैसे बेहतर स्वास्थ्य सेवा वाला देश तो कोरोना के सामने आत्मसमर्पण कर चुका है। एक लाख के आसपास लोग संक्रमित हुए एवं मृतकों की संख्या कभी भी 10 हजार पार करने वाली है। स्पेन में 80 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित तो 6000 से ज्यादा मर चुके हैं। फ्रांस में 2600 से ज्यादा लोगों को कोरोना लील चुका है तथा संक्रमित होने वालों की संख्या 41 हजार को पार कर चुका है। ब्रिटेन में भी करीब 1100 लोगों को जान गंवानी पड़ी है एवं 18 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। विकसित देशों की भयावह स्थिति इस बात का प्रमाण हैं कि अगर आप समय पर सचेत नहीं हुए और कोविड 19 वायरस को अपनी सीमा में घुसने देने तथा विस्तार करने के रोकने के कदम नहीं उठाए तो फिर यह आपके यहां विनाशलीला मचा देगा।
सच यह है कि चीन के वुहान प्रांत में मचे कोहराम के बीच ही यूरोप में कोरोना के मामले सामने आने लगे। फ्रांस में पहला तीन मामला जनवरी में आया और तीनों वुहान से आए थे। इसी तरह के मामले दूसरे देशों में भी आए। किंतु उन्होंने सुरक्षा के उपाय नहीं  किए। न लोगों के मेलजोल को रोकने के कदम उठाए, न हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग की और न ही विदेशी उड़ानों को रोकने का कदम उठाया। स्कूल, कॉलेज, मॉल, बाजार सब खुले रहे, सभाएं, इवेंट आदि जारी रहे। ये तब जगे जब स्थिति बिगड़ने लगी। अमेरिका ने भी आरंभ में इसे गंभीरता से नहीं लिया। दूसरी ओर दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, ताइवान एवं जापान ऐसे देश हैं, जिन्होंने लोगों के मेलजोल को रोकने से लेकर अन्य कदम उठाए एवं स्थिति ज्यादा नहीं बिगड़ने दी। कोरोना अपने-आप आपके घरे में नहीं आ सकता। अगर आप बाहर निकलेंगे और दूसरे किसी संक्रमित के संपर्क में आएंगे तभी आप उसके दुष्चक्र में आएंगे। भारत में अभी तक जितने मामले आए हैं वे सारे मिलने-जुलने से ही पैदा हुए हैं। कोरोना से संक्रमित ज्यादातर लोग वही हैं, जो विदेशों से आए या उनके सपर्क में आए। अगर विदेशों से आए लोग आम एडवाइजरी का पालन किए होते तो हमारे यहां इतने मामले भी नहीं होते। कोई एक व्यक्ति बाहर से संक्रमित होकर आया और एडवाइजरी न मानकर चुपचाप अपने परिवार में चला गया, मित्रों से मिला, किसी और से मिला और उसके कारण काफी लोग संक्रमित हो गए।
भारत में 11 मार्च तक केवल 71 मामले थे। उसके बाद तेजी से उछाल आया। दुनिया के स्तर पर भी देखेंगे तो पहला एक लाख मामला 67 दिनों में आया, दूसरा एक लाख 11 दिन में, तीसरा चार दिनों में और चौथा तीन से भी पांचवा, छठा एक दिन में। यह सब लोगों के मिलने-जुलने और संक्रमण प्रसारक होने के कारण हुआ है। चीन हमारा पड़ोसी है, लेकिन हमारी दशा वैसी नहीं हुई। हमने इटली, ईरान, मलेशिया तक से अपने लोगों को निकालकर लाया। यदि देश सतर्क नहीं होता व्यवस्था नहीं होती तो अभी का दृश्य अत्यंत ही डरावना होता। तो अब हमें तीन सप्ताह सफलतापूर्वक निकालना है।

अवधेश कुमार


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