मुद्दा : जरूरी सामान की पहुंच महत्त्वपूर्ण

Last Updated 31 Mar 2020 12:54:39 AM IST

दुनिया के साथ हमारा देश भी कोविड 19 महामारी से जूझ रहा है। जूझ ही नहीं रहा बल्कि जंग लड़ रहा है।


मुद्दा : जरूरी सामान की पहुंच महत्त्वपूर्ण

यह ऐसी जंग है जिस पर सरकार लोगों के सहयोग, अनुशासन और धैर्य के बिना पार नहीं पा सकती है। इस जंग के कई पहलू हैं। इसका पहला पहलू जहां अपने आप को इस महामारी से बचाना है वहीं दूसरा पहलू ये है कि जो लोग इससे बचने के लिए अपने घरों में कैद हैं, उनके लिए रोजमर्रा के जरूरी सामान की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय अर्थशास्त्री अमत्र्यसेन का सिद्धांत यहां बड़े मायने रखता है। इसके अनुसार अकाल के समय लोग भूख से इसलिए नहीं मरते क्योंकि देश में खाद्यान्न की कमी हो जाती है बल्कि इसलिए मरते हैं क्योंकि भूख से निपटने का प्रबंधन फेल हो जाता है। इससे निपटने का तरीका यह है कि जिस क्षेत्र में अन्न की कमी है अगर हम उस क्षेत्र में दूसरे क्षेत्र से अन्न लाकर उपलब्ध करा दें तो वहां लोगों की भूख से मौत नहीं होगी। हालांकि देश में इस समय न तो अकाल है और न ही भुखमरी, लेकिन आने वाले समय में लोगों को जरूरी सामान उपलब्ध कराना चुनौतीपूर्ण जरूर होगा। इसकी कई वजह है। सबसे पहली तो ये कि लॉकडाउन के दौरान कहीं जरूरी सामान न मिले, इस आशंका के चलते बहुत से लोगों ने अपनी जरूरत से ज्यादा सामान इकट्ठा कर लिया है।

इसके चलते दुकानों में सामान की कमी हो जाएगी और कमजोर तबके को जरूरी सामान नहीं मिल पाएगा। ऐसे में उन लोगों को भी दिक्कत होगी जो संतोषी प्रवृत्ति के हैं। लिहाजा सरकार को लोगों को ये भरोसा दिलाना होगा कि किसी भी जरूरी सामान की कमी नहीं होगी। लोगों को ये बात समझाने के लिए सरकार मीडिया का सहारा ले सकती है और अच्छी बात ये है कि वह इसका सहारा ले भी रही है। ऐसे में लोगों का भी ये फर्ज बनता है कि वे सरकार की बात पर भरोसा करें और अनावश्यक होर्डिग से बचें ताकि बाजार में कृत्रिम तौर पर सामान की कमी न हो और वस्तुओं के दाम आसमान न छूएं। इसके साथ सरकार को ये भी सुनिश्चित करना होगा कि लॉकडाउन के दौरान जरूरी सामान का उत्पादन होता रहे और लोगों को ये सामान बिना किसी बाधा के मिलता रहे। यहां संतोष कि बात ये है कि अभी तक देश में कहीं भी जरूरी सामान की कमी नहीं है।
सबको सब जरूरी सामान आसानी से मिल रहा है। यह सुगमता, उपलब्धता और निरंतरता आगे भी बनी रहे, बसें हमें सरकार के साथ मिलकर ये सुनिश्चित करना है। इस महामारी की मार सबसे अधिक मजदूर तबके और रोज के खाने-कमाने वाले लोगों पर पड़ी है। कोई काम-धंधा न रहने और धन के अभाव में इस वर्ग के लिए खानपान के साथ रिहायश की दिक्कत हो गई है। इसके चलते देश की राजधानी समेत समेत महानगरों से बड़े स्तर पर इनका पलायन हो रहा है। और वो भी तब जब लॉकडाउन के चलते परिवहन के सभी साधन बंद हैं। हजारों लोग हुजूम में अपने छोटे छोटे बच्चों और जरूरी सामान के साथ भूखे-प्यासे पैदल ही सैकड़ों मील दूर अपने गांवों के लिए चल दिए हैं। अनेक लोग मनमाना भाड़ा देकर और अपने प्राण संकट में डालकर ट्रक, मिनी ट्रक आदि में भेड़-बकरियों की तरह लदकर जा रहे हैं। इसके चलते कुछ लोग दुर्घटना का शिकार हो अकाल मौत के मुंह में चले गए।
इस प्रकरण में सबसे भयावह बात यह है कि लोगों को भीड़भाड़ से बचने के लिए कहा गया था, लेकिन पलायन में वही हो रहा है। ऐसे में अगर भीड़भाड़ में शामिल कुछ लोग भी इस महामारी से संक्रमित हुए तो यह विस्फोटक रूप ले सकती है, जिसके परिणाम और भी विस्फोटक हो सकते हैं। ऐसे में पलायन की समस्या से कारगर तरीके से निपटना बेहद जरूरी हो गया है। पलायन जैसी बड़ी गलती को सुधारने के लिए ऐसा करना बेहद जरूरी भी हो गया है। सरकार चाहे वो केंद्र की हो या राज्य की। इसके लिए समाज के सक्षम लोगों को भी आगे आना होगा। इसके लिए तुरंत ऐसा तंत्र बनाना होगा जिसके जरिए गरीब लोगों को उनके घर पर या घर के आसपास सस्ता या मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया जा सके। इसके लिए सरकार और स्वयंसेवी संगठनों द्वारा ऐसी हेल्पलाइन शुरू की जाएं जो जरूरतमंद लोगों तक समय पर खाना पहुंचा सकें। गरीब लोगों के खातों में तुरंत कुछ नकद धनराशि भेज दी जाए, जिससे वे अपने भोजन के साथ अपनी अन्य जरूरी आवश्यकताएं भी पूरी कर सकें। पैसा निकालने के लिए गरीब लोगों की भीड़ बैंकों में न जुटे इस बात का भी ध्यान रखना होगा। ये सारे काम बहुत तेजी से करने होंगे क्योंकि इसमें थोड़ी सी भी ढिलाई बहुत भारी पड़ने वाली है।

अशोक शर्मा


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