वायु प्रदूषण : जैसे भी हो, हवा बदलो
सर्दियों की दस्तक के साथ ही दिल्ली एनसीआर सहित देश की कई अन्य क्षेत्रों की फिजां पर छाया जहरीला ‘स्मॉग’ सुर्खियों में है।
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हवा में प्रदूषण का स्तर ‘खतरनाक स्थिति’ तक पहुंच चुका है। प्रदूषण की समस्या दिल्ली तक सीमित नहीं है। हवा इतनी प्रदूषित हो गई है कि एक आकलन के मुताबिक हर दिन हर व्यक्ति 40 सिगरेट पीने जितना धुआं अपने फेफड़े में भर रहा है।
वैसे तो आज पूरी दुनिया वायु प्रदूषण की शिकार है, लेकिन भारत के लिए यह समस्या कुछ ज्यादा ही घातक होती जा रही है। देखना दयनीय है कि केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें और उनकी तमाम एजेंसियों के साथ एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट तक प्रदूषण पर लगाम लगाने की कोशिश करते रहे लेकिन सब को नाकामी ही मिली। खैर, प्रदूषण की चर्चा पूरे देश में है, लोक सभा में भी हुई, लेकिन इस मसले को लेकर हमारे सांसद कितने गंभीर हैं, यह पहली चर्चा के दौरान उपस्थिति ने बताया। फिर उनके बीच चली सियासत ने। प्रदूषण पर चर्चा शुरू हुई तो सौ से भी कम सांसद सदन में नजर आए। चर्चा का नोटिस देने वाले कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि प्रदूषण से लड़ने की सरकार में इच्छाशक्ति नहीं है। हालांकि चर्चा के बीच से कुछ सकारात्मक बातें भी निकल कर आई। सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसद किसानों के पक्ष में खड़े दिखाई दिए। कहा कि किसानों द्वारा पराली जलाने से बहुत कम प्रदूषण फैलता है, जबकि वाहन और अनियमित उद्योग वायु प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। बहरहाल, दिल्ली में प्रदूषण को लेकर सियासत तेज हो गई है। एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार पर निशाना साधा तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच जुबानी जंग जारी है।
यह ठीक है कि दिल्ली सरकार ने प्रदूषण के बढ़ते खतरनाक स्थिति से निपटने के लिए फिर से ऑड-ईवन फार्मूला लागू किया, लेकिन व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो सिर्फ इस एक कदम से दिल्ली में प्रदूषण के स्तर पर खास फर्क देखने को नहीं मिला। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि ऑड-ईवन प्रदूषण रोकने का कोई स्थायी समाधान नहीं है। सवाल है कि ऑड-ईवन फॉर्मूला लागू करने के पीछे दिल्ली सरकार का क्या मकसद रहा है? क्या वह प्रदूषण कम करने को लेकर वाकई गंभीर हैं? या इस बहाने चुनाव से पहले राजनीतिक गोल दागना चाहते हैं। दूसरी बात यह है कि अब तक के ऑड-ईवन से क्या मिला। क्या उससे प्रदूषण में कमी आई थी, यह सवाल पूछा जा रहा है। पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है कि दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में अक्टूबर की शुरु आत से लेकर दिसम्बर तक स्मॉग का आतंक बना रहता है। सवाल उठता है कि आखिर, सरकार कर क्या रही है? पानी प्रदूषित, नदियां प्रदूषित, मिट्टी प्रदूषित और हवा प्रदूषित। बढ़ते प्रदूषण का मिजाज इसी तरह से बना रहा तो आने वाले दिनों में मानव सभ्यता का ही नाश हो जाएगा। आबादी के लिहाज से सबसे ज्यादा नुकसान भारत का ही होने वाला है, लिहाजा भारत को तत्काल कुछ सार्थक व ठोस उपाय करने होंगे। वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई कमजोर होने की बड़ी वजह है कि इसमें जनता सक्रिय रूप से भागीदार नहीं बन रही। नतीजा होता है कि वायु प्रदूषण रोकने का अच्छे से अच्छा कदम भी नाकाम हो जाता है।
भारत में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए काफी कानून, नियम और दिशानिर्देश हैं। समस्या है इन्हें सख्ती से लागू कराने में नाकामी। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि हवा में घुलते जहर के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। अत: समस्या बहुआयामी है। इस पर अंकुश लगाने के लिए आम लोगों में जागरूकता फैलाने के साथ ही एकीकृत योजना बना कर उसे गंभीरता से लागू करना होगा। इक्कीसवीं सदी में जिस प्रकार से हम औद्योगिक विकास और भौतिक समृद्धि की ओर बढ़े चले जा रहे हैं, उससे पर्यावरण संतुलन समाप्त हो रहा है। वायु का स्थान प्राथमिकताओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों में होना चाहिए, लेकिन अफसोस की बात है कि साल दर साल बीत जाने के बाद भी भारत में वायु प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। चाहे केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकारें, कोई भी प्रदूषण से लड़ने के लिए गंभीर नहीं दिखता। इसलिए हर इंसान को धरती के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, तभी कुछ ठोस नजर आ सकेगा। वक्त कुछ करने का है, न कि सोचने का।
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