बैंक घपला : एसआईटी से परहेज क्यों

Last Updated 24 Feb 2018 05:16:55 AM IST

पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के फर्जी लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग के जरिए नीरव मोदी द्वारा लगभग साढ़े ग्यारह हजार करोड़ रुपये का घोटाला किए जाने के मामले की गूंज संसद से लेकर सड़क तक सुनाई दे रही है.


बैंक घपला : एसआईटी से परहेज क्यों

कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल जहां इसके लिए मोदी सरकार  को जिम्मेदार बता रहै हैं, दूसरी तरफ वहीं केंद्र सरकार इसका ठीकरा यूपीए सरकार के माथे पर फोड़ने की कवायद कर रही है. उधर नीरव मोदी आराम से विदेश की सैर कर रहा है. इतना ही नहीं, वह तो पीएनबी को भी वहीं से धमका रहा है और भारत लौटने से साफ इनकार कर रहा है. यह अलग बात है कि केंद्र सरकार लगातार दावा कर रही है कि वह नीरव को निश्चित रूप से भारत वापस ले आएगी. कहने की जरूरत नहीं कि यह मामला मोदी सरकार के लिए सिरदर्द बनने लगा है.

कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टयिों का कहना है कि सरकार से नजदीकी के कारण ही नीरव मोदी इतना बड़ा घोटाला करने और देश से बाहर भागने में कामयाब हुआ. इसके विपरीत केंद्र सरकार का कहना है कि चूंकि इस घोटाले की शुरुआत यूपीए सरकार के दौरान हुई, इसलिए वही इस घोटाले के लिए जिम्मेदार है. सरकार के कई मंत्रियों का बयान है कि नीरव के खिलाफ तो मोदी सरकार ने ही कार्रवाई की है. बात बिल्कुल सही है, लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि सरकार ने नीरव के खिलाफ कार्रवाई तब शुरू की, जब वह देश छोड़कर भाग चुका था. इतना ही नहीं, नीरव मोदी तो पूंजीपतियों और कारोबारियों के शिष्टमंडल के एक सदस्य के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दावोस भी गया था. प्रधानमंत्री के साथ उसकी तस्वीरें भी छपी हैं.

इसमें कोई शक नहीं कि केंद्र सरकार ने नीरव मोदी के खिलाफ कार्रवाई की शुरुआत की, लेकिन तब जब उसके खिलाफ समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में खबर आने लगी. ऐसे में अगर किसी को लगता है कि केंद्र सरकार ने मजबूरी में कार्रवाई के लिए बाध्य हुई, तो उसे गलत कैसे करार दिया जा सकता है? सरकार ने तो यह भी दावा किया है कि उसने नीरव मोदी द्वारा किए गए घोटाले की आधी राशि के बराबर उसकी संपत्ति जब्त की जा चुकी है. वैसे सरकार के इस दावे पर शायद ही किसी को भरोसा है. आम धारणा यही है कि सरकार का यह दावा गलत है और लोगों को गफलत में रखने के उद्देश्य से किया गया है. नीरव मोदी के खिलाफ सरकारी कार्रवाई को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है और यह संदेह अकारण भी नहीं लगता. मुख्य रूप से इस संदेह के दो कारण दिखाई देते हैं. पहला यह कि यदि सरकार की मंशा नीरव मोदी के खिलाफ कार्रवाई करना था, तो उसके मंत्री इस घोटाले के लिए यूपीए सरकार को जिम्मेदार क्यों बताते रहे? क्या यूपीए सरकार के दौरान किए गए घोटाले अपराध की श्रेणी में नहीं आते? अजीब तो यह रहा कि वित्त मंत्री के बदले रक्षा मंत्री निर्मला सीतारामन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस घोटाले के लिए यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनु सिंघवी को लपेट लिया.
जाहिर है कि सरकार की कार्रवाई का असल उद्देश्य नीरव मोदी को अपराधी ठहराना नहीं, बल्कि उसके अपराध को पूववर्ती यूपीए सरकार पर थोपना था. सरकार की मंशा पर संदेह करने का दूसरा कारण यह है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में उस याचिका का विरोध किया, जिसमें अदालत से घोटाले के जिम्मेदार नीरव मोदी को दो माह के अंदर वापस भारत ले आने और एसआईटी गठित करने के लिए सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने इस याचिका को विरोध करते हुए कहा कि चूंकि इस मामले में एफआईआर हो चुकी है और जांच प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, इसलिए अब सरकार के लिए एसआईटी गठित करने का कोई औचित्य नहीं है. क्या सचमुच? अदालत ने यह तो जरूर कहा कि वह सरकारी जांच की इजाजत देती है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि वह विस्तार से जानना चाहेगी कि सरकार एसआईटी गठित करने संबंधी याचिक का विरोध क्यों कर रही है?
अब सवाल यह उठता है कि यदि सरकार किसी मामले की जांच कर रही है, तो क्या एसआईटी का गठन नहीं हो सकता? खासकर तब, जब सरकार की मंशा पर संदेह हो. हमने विगत में कई ऐसे मामले देखे हैं, जिनमें जांच प्रक्रिया जारी रहने के बावजूद एसआईटी का गठन किया गया है. अगर मोदी सरकार का यह दावा सही है कि वह भ्रष्टाचार के मामले में ‘जीरो टॉलरेन्स’ की हिमायती है, तो एसआईटी के गठन के लिए उसे स्वयं आगे आना चाहिए था. आखिर एसआईटी के गठन से उसे क्योंकर परहेज करना चाहिए? निष्पक्ष जांच के लिए अगर सरकार आगे आती, तो इससे उसका ही कद बढ़ता और बढ़ती उसकी विसनीयता भी. अपनी विसनीयता को खंडित होते सरकार क्यों देखना चाहती है? इससे तो यही संदेह होता है कि वह मामले को रफा-दफा करना चाहती है. सरकार चाहे जो भी कहे, लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि नीरव मोदी इतना बड़ा घोटाला करने में इसीलिए कामयाब हुआ कि उसके संबंध सत्ता के गलियारों से रहा है.
राजनीतिक रसूखदारों की सहायता के बिना नीरव मोदी इतना बड़ा घोटाला करने में कभी कामयाब नहीं होता. सरकार की नाक के नीचे वह लगातार घोटाला करता रहा और किसी को इसका भान तक नहीं हुआ कि घोटाला हो रहा है. सबसे गंभीर बात तो यह है कि इस घोटाले के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय को भी जानकारी दी गई थी और कई बार दी गई थी, लेकिन उसने नीरव मोदी के खिलाफ कार्रवाई करने के बदले चुप्पी साधे रखना ही उचित समझा. ऐसे में क्या यह संदेह अनुचित है कि नीरव मोदी को पीएम कार्यालय का भी वरदहस्त प्राप्त था. दरअसल, केंद्र सरकार ने एसआईटी के गठन का विरोध कर वास्तव में संदेह को और भी बढ़ा दिया है. सरकार को अच्छा लगे या बुरा, लेकिन वर्तमान परिस्थिति में उसकी मंशा पर तो सवाल उठेंगे ही.

कु. नरेन्द्र सिंह


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