बैंक धोखाधड़ी : रकम वापस लाना दुष्कर
बैंकिंग कारोबार में फर्जीवाड़े की घटनाएं हमेशा से घटित होती रही हैं. अन्य देश भी मामले में अपवाद नहीं हैं.
बैंक धोखाधड़ी : रकम वापस लाना दुष्कर |
वर्ष 2013 में भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर डॉ. के.सी. चक्रवर्ती ने कहा था कि 1 करोड़ रुपये से ज्यादा के घोटालों का हिस्सा वित्त वर्ष 2005 से वित्त वर्ष 2007 के बीच 73 प्रतिशत था, जो वित्त वर्ष 2013 तक बढ़कर 90 प्रतिशत हो गया. सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के हवाले से संसद में हाल ही में कहा था कि वर्ष 2012 से वर्ष 2016 के बीच सरकारी बैंकों को विभिन्न बैंकिंग धोखाधड़ी के चलते कुल 227.43 अरब रुपये का नुकसान उठाना पड़ा.
बैंकिंग धोखाधड़ी के 25,600 से ज्यादा मामले दिसम्बर, 2017 तक दर्ज हुए, जिसके जरिये 1.79 अरब रुपये की धोखाधड़ी की गई. पिछले साल मार्च में रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2017 के पहले 9 महीनों में 1 लाख रुपये या इससे ज्यादा की राशि वाली धोखाधड़ी वाले 455 मामले आईसीआईसीआई बैंक, स्टैंर्डड चार्टर्ड बैंक में 244 मामले और एचडीएफसी बैंक में 237 ऐसे मामले पाये गए. उक्त अवधि में सरकारी बैंकों की भी ऐसे फर्जीवाड़े में संलिप्तता रही. रिजर्व बैंक की आर्थिक स्थायित्व के जून 2017 की रिपोर्ट के अनुसार 1 लाख से ऊपर के घोटाले का कुल मूल्य विगत 5 वर्षो में 9,750 करोड़ से बढ़कर 16,770 करोड़ रुपये पहुंच गया है. हालांकि, इसमें घोटाले की कुल राशि का 86 प्रतिशत हिस्सा कर्ज से जुड़ा था. इधर, कोलकाता के कारोबारी बिपिन बोहरा पर कथित तौर पर फर्जी दस्तावेजों के सहारे सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से 1400 करोड़ रुपये का कर्ज लेने का आरोप है.
वर्ष 2014 में सिंडिकेट बैंक के भूतपूर्व चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक एसके जैन पर कथित रूप से 8000 करोड़ रुपये का कर्ज रित लेकर स्वीकृत करने का आरोप है. वर्ष 2015 में बैंक ऑफ बड़ौदा में दिल्ली के दो कारोबारियों द्वारा 6,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गई थी. वर्ष 2016 में धोखाधड़ी के जरिये सिंडिकेट बैंक के खातों से 1000 करोड़ रुपये निकाले गये थे. विनसम डायमंड्स पर भी 7000 करोड़ रुपये का घोटाला करने का आरोप है. इसके प्रमुख जतिन मेहता ने नीरव मोदी के तर्ज पर धोखाधड़ी की थी. कोलकाता के कारोबारी नीलेश पारेख पर 20 बैंकों के 2,223 करोड़ रुपये गबन करने का आरोप है. ऐसे आरोपियों की फेहरिस्त लंबी है. सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या बैंकों में चल रहे धोखाधड़ी की वारदातों को नहीं रोका जा सकता है? सच कहा जाए तो बैंकों में इस तरह की गड़बड़ियों को नहीं रोका जा सकता है, लेकिन इनकी पुनरावृत्ति को जरूर कम किया जा सकता है. सवाल यह भी है कि क्या धोखाधड़ी की राशि वसूली नहीं जा सकती है, जिसका जबाव नहीं है. आमतौर पर बड़ी राशि की धोखाधड़ी, जो अमूमन बड़े कारोबारियों द्वारा की जाती है से वसूली करना असंभव होता है. कुछ मामलों में ऐसे कारोबारी विदेश भाग जाते हैं. देश में मौजूद उनकी परिसंपत्तियों को नीलाम कराकर कुछ वसूली की जा सकती है, लेकिन ऐसी परिसंपतियों को बेचना आसान नहीं होता है. उदाहरण के तौर पर दिवालिया कानून के तहत अभी तक चूककर्ता कर्जदारों की परिसंपत्तियों को बेचा नहीं जा सका है. नीरव मोदी के मामले में एजेंसियों ने 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि के आभूषण जब्त करने की बात कही है, लेकिन इसके वास्तविक कीमत का आकलन करना और फिर उसी कीमत पर उन्हें बेचना आसान नहीं है. हां, कम राशि वाले फर्जीवाड़े के मामले में बैंक, आरोपियों से कुछ वसूली करने में कभी-कभार सफल हो जाते हैं.
आमतौर पर दूसरे तंत्रों पर निर्भरता के कारण ऐसे मामलों में भी वसूली करना आसान नहीं होता है. माल्या के बाद अब नीरव भी बैंक के साथ धोखाधड़ी करके विदेश भाग गया है. दोनों को देश वापस लाना लगभग असंभव है, क्योंकि दूसरे देश से किसी आरोपी या अपराधी को लाने के लिए उनके बीच प्रत्यपर्ण संधि होनी चाहिए. भारत ने वर्ष 1962 से दूसरे देशों के साथ इस संधि को करना शुरू किया था. अब तक 37 देशों के साथ भारत ने इस संधि को किया है. बावजूद इसके विगत 16 सालों में 60 अपराधियों या आरोपितों को ही इस संधि की मदद से भारत लाया जा सका है. इनमें ब्रिटेन से 1, संयुक्त अरब अमीरात से 17 एवं अमेरिका से 11 हैं. ब्रिटेन ने तो क्रिकेट बुकी संजीव कुमार चावला को यह कहकर प्रत्यर्पित नहीं किया कि तिहाड़ जेल की हालात मानवीय नहीं है. ऐसे में सरकार एवं बैंक लाख दावा करें, लेकिन नीरव या इनके जैसे दूसरे आरोपितों से बैंक की डूबी राशि को वसूलना आसान नहीं है.
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