वैश्विकी : संबंधों में संतुलन लाजिमी होगा
यह किसी को भी सोचने के लिए विवश करता है कि भारत दक्षिण एशिया के अपने पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध क्यों नहीं बना पाता?
वैश्विकी : संबंधों में संतुलन लाजिमी होगा |
चीन समर्थक और भारत विरोधी माने जाने वाले के. पी. शर्मा ओली के नेपाल के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही यह सवाल फिर उठने लगा है कि क्या भारत की विदेश नीति की बुनियादी संरचना में आक्रामक राजनय के तत्व निहित हैं, या वह अपने कूटनीतिक व्यवहार और बर्ताव से अपने पड़ोसियों के साथ शत्रुतापूर्ण वातावरण बनाता है, जो स्वयं उसके हितों के विरुद्ध जाता है. चूंकि नेपाल में एक नई राजनीतिक व्यवस्था की शुरुआत हो रही है, इसलिए भारत नेपाल के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक रिश्तों को नये सिरे से परखने की जरूरत है. इसलिए कि पीएम बनने के फौरन बाद ओली ने भारत पर अपना दबाव बनाने के लिए चीन के साथ अपने संबंधों को गहरा करने का इशारा किया है. उनका विश्वास है कि दोनों देशों की स्वाभाविक मित्रता सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक कारणों की वजह से है. दोनों देशों की सीमाएं भी खुली हुई हैं. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन भी नेपाल का पड़ोसी राष्ट्र है. इसलिए हमें किसी एक पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. उनके इस विश्वास को कोई चुनौती नहीं दे सकता क्योंकि भारत या अन्य स्वतंत्र देशों की तरह नेपाल को भी पूरे विश्व के साथ स्वतंत्र और बेहतर रिश्ता बनाने का अधिकार है.
दरअसल, भारत नेपाल के सम-दूरी सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता और उसके साथ अपना विशेष संबंध बनाए रखना चाहता है, जो वहां के कम्युनिस्ट नेतृत्व को बर्दाश्त नहीं है. वे मानते हैं कि इन्हीं विशिष्ट संबंधों के आधार पर भारत नेपाल की नीतियों को प्रभावित करने की कोशिश करता रहता है. पिछले कुछ अनुभव इसकी तसदीक भी करते हैं. भारत ने 2015 में नेपाल के नये संविधान में मधेशी हितों की अनदेखी वाले कुछ प्रावधानों पर आपत्ति उठाकर कम्युनिस्ट नेताओं के शक और संदेह की पुष्टि ही की. मधेशियों के आंदोलन के दौरान भारत-नेपाल सीमा की नाकेबंदी को भी भारत के उनको समर्थन के रूप में देखा गया. भारत की ओर से यह हस्तक्षेपकारी नीति रही. यह नई दिल्ली की कूटनीतिक भूल थी. बाद के दिनों में भी संविधान में संशोधन करके सामाजिक न्याय के मुद्दों को शामिल किया जा सकता था. भारत ने भी संविधान लागू होने के 40 साल बाद सामाजिक न्याय के प्रावधानों को शामिल किया था.
आम तौर पर छोटे देश अपनी स्वतंत्रता, संप्रभुता और स्वतंत्र पहचान को लेकर सशंकित रहते हैं. नेपाल भी इसका शिकार है. इसलिए भारत को नेपाल के साथ समान दरजा के साथ पेश आना होगा. नेपाल के आंतरिक मामलों में रुचि नहीं लेनी होगी. अगर वह ऐसा करता है, तो ओली भारत के सुरक्षा हितों के विरुद्ध कोई काम नहीं करने का आश्वासन देने से पीछे नहीं हटेंगे. यह सच है कि भारत को पहली बार ओली जैसे भारत विरोधी रुख वाले प्रधानमंत्री का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन अगर ऐसा है, तो यह भारतीय कूटनीति की जिद्द और हठ की वजह से भी है. अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री मोदी नेपाल के साथ रिश्तों को सुधारने की पहल कर रहे हैं. और उम्मीद है कि ओली भी भारत-नेपाल संबंधों में संतुलन बनाकर चलेंगे.
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