परत-दर-परत : तमिलनाडु के आकाश में नया ग्रह
तमिलनाडु की राजनीति बहुत दिनों से ठहरी हुई है. वही डीएमके और अन्ना डीएमके. तमिलनाडु के मतदाताओं ने बारी-बारी से दोनों को अवसर दिया.
परत-दर-परत : तमिलनाडु के आकाश में नया ग्रह |
कह सकते हैं कि दोनों ही दल समान रूप से भ्रष्ट और अकुशल साबित हुए हैं. बेशक, अन्ना डीएमके की दिवंगत नेता जयललिता इस मामले में कुछ ज्यादा उदार रहीं. लेकिन उनके जाने के बाद उनकी पार्टी नेतृत्व के अंतद्र्वद्वों से बुरी तरह ग्रस्त हो गई और उम्मीद कम ही है कि अगले चुनाव में वह मतदाताओं को बहुत ज्यादा आकर्षित कर पाएगी. कुछ-कुछ यही हाल करुणानिधि के नेतृत्व वाली मूल पार्टी डीएमके का भी है. करुणानिधि की उम्र हो गई है, और लगातार बीमारी ने उन्हें जर्जर बना दिया है. उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी तमिलनाडु की जनता के बीच उतने लोकप्रिय नहीं हैं. स्पष्ट है कि वरिष्ठ तमिल अभिनेता एवं निर्देशक कमल हासन के लिए इससे बेहतर समय नहीं हो सकता था कि अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं को मूर्त रूप देने के लिए एक नये दल की स्थापना करते.
इस मामले में कमल हासन ने अपने से अधिक लोकप्रिय अभिनेता रजनीकांत को मात दे दी है, जिन्होंने बहुत पहले ही राजनीति में उतरने की घोषणा कर दी दी थी, पर अभी तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं कर पाए हैं. दिलचस्प यह कि राजनीति में उतरने पर रजनीकांत का स्वागत भाजपा नेताओं ने तो हासन का स्वागत करुणानिधि के बेटे स्टालिन और आप नेता अरविंद केजरीवाल ने किया है. कह सकते हैं कि नई पार्टी अपेक्षाकृत सेक्युलर होगी.
एक नया दल बनाने की तिरसठ साल के हासन की पात्रता के बारे में शक नहीं किया जा सकता. बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्तिहैं, और चाहें तो अपने को अभिनय के अतिरिक्त अन्य भूमिकाओं में भी व्यस्त रख सकते हैं. उनकी तुलना में राजनीति में परिश्रम और दौड़धूप ज्यादा है, पर सत्ता के आयाम भी कम आकषर्क नहीं हैं. तमिलनाडु की राजनीति में फिल्म अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की महत्ता देखते हुए असफल होने की संभावना भी कम ही है. जब रजनीकांत की पार्टी सामने आ जाएगी, तब कहा जा सकेगा कि खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे दीवाने दो. हासन की नई पार्टी जो विकल्प देने जा रही है, वह कैसा होगा? इस बारे में कोई भ्रम नहीं हो सकता.
मदुरै में 22 फरवरी को अपनी पार्टी के गठन की घोषणा करते हुए हासन ने सूत्र रूप में जो बातें कहीं, उनसे पता चलता है कि इस नई पार्टी की कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं होगी. उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण घोषणा यह थी कि उनकी पार्टी ऐसी राजनीति के लिए प्रतिबद्ध है, जो ‘जाति-धर्म के खेल’ से परे और सुशासन पर केंद्रित होगी. जाहिर है, यह साधारण-सी बात कोई भी कह सकता है, इस पुछल्ले के साथ कि धर्म की राजनीति से जरूर बचा जा सकता है, पर जाति की राजनीति से कोई कैसे बच सकता है? मदुरै की स्थापना सभा में ही हासन को जाति विशेष का नायक सिद्ध करने की कोशिश की गई. हासन की पार्टी का नाम है-मक्कल नीधि मय्यम, जिसका अनुवाद लोक न्याय पार्टी के रूप में किया गया है. अपनी पार्टी के झंडे के बारे में उन्होंने कहा, ‘आप करीब से देखेंगे तो इसमें दक्षिण भारत का नक्शा पाएंगे. इसमें छह हाथ छह दक्षिणी राज्यों के लिए हैं. बीच में जो सितारा है, वह जनता के लिए है’ अर्थात यह अखिल भारतीय पार्टी नहीं होगी, दक्षिण भारत की अपनी पार्टी होगी. मक्कल नीधि मय्यम की महत्त्वाकांक्षा पूरे दक्षिण भारत में फैलने की बताई जा रही है, लेकिन पूरी संभावना है कि यह तमिलनाडु की पार्टी बन कर सीमित रह जाएगी.
यह भारत की राजनीति में एक नये चरण का प्रतीक है. कायदे से तो इसकी शुरु आत प. बंगाल में ममता बनर्जी द्वारा तृणमूल कांग्रेस के गठन से मानी जा सकती है. हालांकि तृणमूल पार्टी कांग्रेस का ही एक टुकड़ा है. ममता की उचित जगह कांग्रेस में ही थी, लेकिन इंदिरा गांधी और बाद में राजीव गांधी-सोनिया गांधी की कांग्रेस उस उग्र तथा आक्रामक नेता के लिए जगह बनाना नहीं चाहती थी, इसलिए उन्हें अपनी अलग पार्टी बनानी पड़ी. दिल्ली में आप के उदय के पीछे राजनीतिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचार के खिलाफ एक छोटा-सा अभियान था, लेकिन ध्यान से देखेंगे तो आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल के प्रोफाइल में आप एक अ-राजनीतिक व्यक्तित्व की केंद्रीयता देख सकते हैं. ममता की तरह केजरीवाल की भी कोई राजनीतिक विचारधारा नहीं है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी अराजनीतिक व्यक्ति हैं. मेरा खयाल है, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी इसी धारा के नेता कहे जा सकते हैं. मुलायम सिंह अपने को समाजवादी कहते रहे हैं, पर अखिलेश यादव को किसी वाद से कोई मतलब नहीं है.
राजनीतिज्ञों की यह नई पीढ़ी, जिसका विचारधारा से कोई संबंध नहीं है, पुरानी पीढ़ी से बेहतर है, या बदतर है, कहना मुश्किल है. लेकिन इतना है कि पुरानी पीढ़ी के पास विचार, राष्ट्र निर्माण और समाज सेवा के सफेद-रंगीन पर्दे रहा करते थे, पर इस पीढ़ी के लिए राजनीति का एकमात्र अर्थ है किसी भी शर्त पर सत्ता की प्राप्ति और पार्टी के भीतर अपनी एकछत्र हुकूमत चलाना. इसलिए यह तो भूल ही जाना चाहिए कि राजनीतिज्ञों की यह नई पीढ़ी लोकतंत्र को मजबूत करेगी, वह अच्छा प्रशासन दे सके, तब भी बड़ी बात होगी. अभी तक तो ऐसा कोई लक्षण दिखाई नहीं दिया है.
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