प्रसंगवश : बदलता आधार
आज दूसरों के साथ मिल-बैठ समय बिताना एक सहज वृत्ति है. जब हम लोगों के साथ रहते हैं, तो हममें प्रसन्नता, उत्तेजना और सतर्कता की ज्यादा अनुभूति होती है.
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दूसरों से जुड़ने का आरंभ शैशव काल से ही शुरू हो जाता है. किशोर होते-होते हम लगभग पचहत्तर प्रतिशत समय और लोगों के साथ बिताते हैं. प्रौढ़ हो कर नायक या सहायक की भूमिका में नजर आते हैं, और सामाजिकता हमारे लिए प्रमुख संसाधन बन जाती है.
उद्विकास (इवॉल्यूशन) की विचारधारा दूसरों से मिलने की कोशिश और उनसे निकट संबंध बनाने के लिए आनुवंशिक आधार ढूंढती है क्योंकि यह जीवन तथा प्रजनन के लिए अनिवार्य है. कोई व्यक्ति सामाजिकता की जगह कितनी निजता चाहता है, यह इस पर निर्भर करता है कि हम किस सीमा तक दूसरों के साथ खुल पाते हैं. वस्तुत: हम अपने लिए सामाजिक संपर्क का एक निश्चित स्तर चाहते हैं, और उसे स्थिर बनाए रखने की कोशिश करते हैं. उसी मनचाहे स्तर पर संपर्क बने रहने से खुश रहते हैं. व्यक्ति केंद्रित समाजों में मित्रता अपनी जरूरत के हिसाब से की जाती है जबकि सामूहिक समाजों में मित्रता नि:स्वार्थ और कृतज्ञ भाव से भी की जाती है.
दूसरों के साथ जुड़ने की कोशिश करते हुए यह चिंता भी हमारे मन में बनी रहती है कि क्या मैं पर्याप्त मात्रा में आकषर्क हूं, कहीं अस्वीकार तो नहीं कर दिया जाऊंगा. ऐसे में सामाजिक दुश्चिंता भी पैदा हो सकती है. तब लोग सामाजिक स्थितियों से कतराने लगते हैं, और अकेलेपन की अनुभूति के शिकार होने लगते हैं. दूसरों के साथ कम खुलते हैं, और बेरु खी से पेश आते हैं. इसी से जुड़ी हुई एक दूसरी स्थिति तब आती है, जब हम खुद को बाहर किया हुआ या छूटा हुआ पाते हैं. किसी व्यक्ति या समूह द्वारा छांट दिया जाना हमें गहरा घाव दे जाता है.
हम क्यों और कब किसी की ओर खिंचते हैं, या उसकी उपेक्षा करते हैं, यह जिंदगी का अहम मसला होता है.
सवाल उठता है कि जुड़ें तो किससे जुड़ें? किसकी ओर हम आकर्षित होते हैं? लोगों की कौन-सी विशेषता उन्हें ज्यादा आकषर्क बनाती हैं? दूसरे शब्दों में कहें तो दोस्ती और प्यार किन व्यक्तियों के बीच पनपता है? वे व्यक्ति जिनसे हम जुड़ते हैं, उनका शारीरिक सौष्ठव, खुद से समानता, अनुपूरकता और पारस्परिकता खास भूमिका निभाते हैं. हालांकि यौवन, स्वास्थ्य तथा सुडौल नाक नक्श प्राय: सभी संस्कृतियों में चाहे जाते हैं तथापि शारीरिक रूप से आकषर्क होने के मानदंड फर्क-फर्क होते हैं. शारीरिक रूप से आकषर्क लोगों में श्रेष्ठ व्यक्तित्व के गुण भी (हों या न हों पर) अक्सर देखे जाते हैं.
अक्सर हम उन लोगों की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं, जो लिंग, जाति, आयु, विचारधारा और मूल्य की दृष्टि से हमारे समान होते हैं. यह भी पाया जाता है कि अक्सर हम उन्हें पसन्द करते हैं, जो हमें पसंद करते हैं, और उन्हें नापसंद करते हैं, जो हमें नापसंद करते हैं. इनके अतिरिक्त परिचय और चिंता को भी साहचर्य का प्रमुख आधार पाया गया है. जो पास रहते हैं, उन्हें हम बार-बार देखते रहते हैं, और वे परिचित हो जाते हैं. परिचित व्यक्तियों की ओर हम अधिक आकर्षित होते हैं. साथ ही जब हम चिंतित या परेशान रहते हैं, तो दूसरों से जुड़ने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है क्योंकि दूसरे सामाजिक समर्थन देते हैं, खास तौर पर तब जब वे भी समान परिस्थिति से गुजर रहे हों.
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