वैश्विकी : लोकतंत्र चलाने का अलोकतांत्रिक रवैया

Last Updated 11 Feb 2018 06:01:50 AM IST

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और प्रमुख विपक्षी नेता खालिदा जिया को विशेष कोर्ट द्वारा भ्रष्टाचार के एक मामले में सुनाई गई पांच साल की कठोर सजा से दो महत्वपूर्ण सवाल उभर कर सामने आए हैं.


वैश्विकी : लोकतंत्र चलाने का अलोकतांत्रिक रवैया

पहला: क्या वहां की लोकतांत्रिक संस्थाएं धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के अस्तित्व को सुरक्षित रख पाएंगी और विद्रोही धार्मिक कट्टर समूहों की पराजय होगी? दूसरा: आने वाले दिनों में मुख्य राजनीतिक शक्तियों-अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनल पार्टी-के बीच अरसे से जारी तीव्र मतभेद कम होंगे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत हो पाएगी? दरअसल, पिछले दो दशकों से बांग्लादेश की राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था इन दोनों चुनौतियों से जूझ रही है और देश को एक असफल राज्य बनाने की ओर धकेल रही  हैं. बांग्लादेश मुस्लिम बहुल देश है. अपनी आजादी से पहले यह पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था. अपनी भाषायी और जातीय पहचान को बनाए रखने के लिए 1971 में वह पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश के नाम से स्वतंत्र और संप्रभु देश बना. ब्रिटिश उपनिवेशवाद से स्वतंत्र होने वाले एशिया-अफ्रीका के अन्य देशों की तरह यहां भी पश्चिमी लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई गई. लेकिन दुर्भाग्य से पिछले 47 वर्षो के दौरान वहां के अवाम को कई बार सैनिक शासन की मार झेलनी पड़ी जिसके चलते लोकतांत्रिक प्रक्रिया कमजोर हुई. 1991 में बांग्लादेश सैनिक शासन से मुक्त हुआ और लोकतंत्र की वापसी हुई. तब से अब तक अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनल पार्टी बारी-बारी से सत्ता में आती रही हैं.

प्रधानमंत्री शेख हसीना अवामी लीग का नेतृत्व करती हैं, और बांग्लादेश नेशनल पार्टी  का नेतृत्व खालिदा जिया के हाथों में है. शेख हसीना बंगबंधु शेख मुजीबुर्र रहमान की बेटी हैं, और खालिदा जिया पूर्व राष्ट्रपति जनरल जिया-उर-रहमान की बीवी हैं, जिनकी हत्या 1981 में कर दी गई थी. शेख मुजीब देश के पहले राष्ट्रपति थे. 1975 में उनकी भी हत्या की गई थी. शेख हसीना और खालिदा जिया, दोनों अपनी राजनीतिक विरासत के चलते देश के शीर्ष पद पर आसीन हुई. दोनों में जब भी कोई सत्ता में रहा है, तो उसने अपने विरोधी दलों का दमन करने की कोशिश की है. जाहिर है कि लोकतांत्रिक सरकारों का यह अलोकतांत्रिक रवैया लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करता है. बांग्लादेश में यही घटित हो रहा है.
आम तौर पर जिन देशों में सरकारें जनता के प्रति उत्तरदायित्यों का निर्वाह नहीं कर पातीं और विधि के शासन की अनदेखी होती है, वहां न केवल संस्थाएं कमजोर होती हैं, बल्कि भ्रष्टाचार की भी नई-नई राहें खुल जाती हैं. लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया और मध्य-पूर्व में राजनीतिक नेताओं के  भ्रष्टाचार इसके उदाहरण हैं. अधिकतर मामलों में देखा गया कि राजनीतिक नेताओं ने विकासात्मक कार्यों और मानवीय परियोजनाओं के लिए मिली अंतरराष्ट्रीय मदद की राशि को निजी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया. ढाका की विशेष अदालत ने खालिदा जिया को ‘जिया अनाथालय ट्रस्ट’ को विदेशी दान के तौर पर मिले करीब 1.6 करोड़ रुपये के गबन के मामले में सजा सुनाई है. खालिदा को दिसम्बर में होने वाले चुनाव से बेदखल किया जाता है, तो भीषण रक्तपात की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. यहां की अस्थिरता भारत के लिए भी खतरा पैदा कर सकती है.

डॉ. दिलीप चौबे


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