सामयिक : कुशल पेशेवरों की अहमियत

Last Updated 10 Feb 2018 02:43:16 AM IST

इन दिनों दुनियाभर में जैसे-जैसे आर्थिक विकास बढ़ने का परिदृश्य दिखाई दे रहा है वैसे-वैसे भारत के कुशल पेशेवरों की मांग बढ़ती जा रही है.


सामयिक : कुशल पेशेवरों की अहमियत

यद्यपि दुनिया के कई विकसित देश प्रवासियों के लिए रोजगार के दरवाजे बंद करते हुए दिखाई दे रहे हैं, लेकिन भारत की प्रतिभाओं और भारत के कुशल पेशेवरों की विशिष्ट उपयोगिता के कारण विकसित और विकासशील देशों में महत्त्व बना हुआ है. कई विकसित और विकासशील देश भारतीय प्रतिभाओं के लिए अपने दरवाजे बंद नहीं कर पा रहे हैं. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले ‘स्टेट ऑफ द यूनियन एड्रेस’ में मेरिट बेस्ड इमिग्रेशन पॉलिसी की वकालत की. साथ ही उन्होंने वीजा में अलग-अलग देशों का कटा सिस्टम खत्म करने का संकेत दिया. इसका सबसे ज्यादा लाभ भारतीय समुदाय को होगा.
स्टेट ऑफ द यूनियन एड्रेस में प्रवासियों को लेकर ट्रंप के बदले हुए रुख से पूरे अमेरिका में रहने वाले भारतीय समुदाय और भारत के कुशल प्रोफेशनल्स बहुत उत्साहित हैं. ऐसे में इनके द्वारा व्हाइट हाउस के सामने ट्रंप की योग्यता आधारित आव्रजन नीति के समर्थन में एक रैली निकाली गई. इस रैली में यहां काम कर रहे सैकड़ों भारतीय कुशल पेशेवर अपने बच्चों और जीवनसाथी सहित शामिल हुए. इनमें श्रमिक, ग्रीन कार्ड का इंतजार करने कर्मचारी और उनके साथी कुछ अमेरिकी भी शामिल थे. रैली में लोग कैलिफोर्निया, टेक्सास, शिकागो, फ्लोरिडा, न्यूयार्क और मैसाच्युसेट्स तक से आए थे जो दशकों से अमेरिका में रह रहे हैं. उन्होंने ट्रंप से अपील की  कि वह देशों के हिसाब से वैध स्थायी निवास की सीमा का अंत करें ताकि उच्च काल प्राप्त भारतीय श्रमिकों को ग्रीन कार्ड मिलने में आ रही दिक्कतें दूर हों.

उन्होंने कहा, उच्च काल प्राप्त भारतीय श्रमिकों को हजारों की संख्या में ग्रीन कार्ड जारी करने से उन्हें अपनी क्षमताओं का पूर्ण प्रदर्शन करने में मदद मिलेगी, जिससे अमेरिका में वृद्धि और संपन्नता आएगी. इसी तरह से दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स (आसियान) के 10 देशों इंडनेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, मलेशिया, ब्रुनेई, थाइलैंड, म्यांमार, लाओस, वियतनाम और कंबोडिया के राष्ट्र प्रमुखों ने पिछले माह 25 जनवरी को भारत के कुशल पेशेवरों के सहयोग से कारोबार विस्तार की बात कही है. 
निसंदेह विदेशों में प्रवासी भारतीय और कुशल भारतीय पेशेवर प्रभावशाली हैं. ये कितने प्रभावी और उपयोगी हैं, इसका अंदाज इसी जनवरी 2018 में अमेरिका में घटित एच-1बी वीजा पर सख्ती के प्रस्ताव और फिर उस पर रोक संबंधी घटनाक्रम से लगाया जा सकता है. 2 जनवरी को अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्यरिटी (डीएचएस) ने ट्रंप सरकार की ‘बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन नीति’ के तहत प्रस्तावित एच-1बी वीजा नियमों में संसाधन का प्रस्ताव किया था. इसके तहत एच1बी वीजा पर अमेरिका में रहकर ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे भारतीय सहित अन्य देशों के आईटी विशेषज्ञों को बड़ा झटका लग सकता था.
 इस वीजा को खत्म करने के पीछे मकसद यह था कि अमेरिका में काम करने वाले कुशल पेशेवरों के लिए स्व निर्वासन का माहौल तैयार किया जाए. चूंकि अमेरिकी कंपनियों में काम करने वाले विदेशियों में से करीब 70 फीसद कर्मचारी भारतीय हैं, अतएव अमेरिका के वीजा संबंधी नये सुधार से भारतीय प्रोफेशनल्स की मुश्किलें बढ़ जाती और उन्हें अमेरिका छोड़ना पड़ सकता था. इतना ही नहीं अमेरिका में कॅरियर की नई चमकीली संभावना खोजने वाले भारत के नये आईटी प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिका में जाकर कमाई करने के ऊंचे सपने पूरे होना मुश्किल हो जाते. निश्चित रूप से अमेरिका के एच-1बी वीजा के नियमों के भारत के लिए हानिकारक प्रस्ताव को रुकवाने के लिए कुछ प्रभावी अमेरीकियों की अहम भूमिका सामने आई. अमेरिका के प्रभावी डेमक्रेटिक सांसद तुलसी गाबार्ड सहित अनेक प्रवासी भारतीय सांसदों ने अमेरिकी सरकार को आगाह किया कि इस बदलाव से बड़ी संख्या में भारतीय एच-1बी वीजाधारकों को अमेरिका छोड़कर जाना पड़ सकता है. इनमें से बड़ी संख्या में ऐसे कारोबारी हैं जो अमेरिकी उद्योग-कारोबार को आगे बढ़ा रहे हैं और बड़ी संख्या में अमेरिकी लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं. ऐसे में इनका जाना अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए हानिप्रद होगा.
भारत की सॉफ्टवेयर उद्योग की नियामक संस्था नासकॉम द्वारा भी अमेरिकी सीनेटरों और कांग्रेस सदस्यों से भारतीय पेशेवरों की वीसा संबंधी मुश्किलों के हल के लिए सार्थक बातचीत की गई. इस संगठन द्वारा अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के लिए बंद होते दरवाजे को खुला रखवाने में सार्थक भूमिका का निर्वहन किया गया. यह सर्वविदित तथ्य है कि पूरी दुनिया में प्रवासी भारतीयों और विदेशों में कार्य कर रही भारत की नई पीढ़ी की श्रेष्ठता को स्वीकार्यता मिली है. कहा गया है कि भारतीय प्रवासी ईमानदार, परिश्रमी और समर्पण का भाव रखते हैं. आईटी, कम्प्यूटर, मैनेजमेंट, बैंकिंग, वित्त आदि के क्षेत्र में दुनिया में भारतीय प्रवासी सबसे आगे हैं. प्रवासी अपने कार्यरत देशों में रहते हुए भारत के विकास के लिए धन बरसाते हुए दिखाई दे रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के कृषि विकास कोष द्वारा जारी की गई रिपोर्ट 2017 के मुताबिक दुनियाभर के विभिन्न देशों में कार्यरत प्रवासियों के द्वारा अपनी कमाई को अपने-अपने देशों में भेजने के मामले में प्रवासी भारतीय पहले क्रम पर हैं.
विदेश में रहने वाले प्रवासी भारतीयों ने वर्ष 2016-17 में भारत में 62.7 अरब डॉलर की धनराशि भेजी है. प्रवासियों के द्वारा भारत भेजी गई 40 फीसद धनराशि ग्रामीण क्षेत्रों में भेजी गई है, जिसका बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और जीवन स्तर बढ़ाने में खर्च किया गया है. आशा करें कि प्रवासी भारतीय सांसद और प्रवासी भारतीय दुनिया के कोने-कोने में अपनी नेतृत्व शक्ति और ज्ञान का परचम फहराते हुए विदेशी मुद्राओं का ढेर स्वदेश भेजकर जहां एक ओर भारत को बढ़ती विदेशी पूंजी की जरूरत के लिए मदद करेंगे, वहीं वे अपने परामर्श से भारतीय युवाओं को नये दौर के मद्देनजर पल्लवित-पुष्पित करते हुए भी दिखाई देंगे.

जयंतीलाल भंडारी


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