मुद्दा : आर्थिक विकास का छलावा

Last Updated 10 Feb 2018 02:37:53 AM IST

आए दिन तमाम परियोजनाओं के लिए शिलान्यास होते हैं, लेकिन उनमें से कितनी समय से पूरी हो पाती हैं, इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता.


मुद्दा : आर्थिक विकास का छलावा

हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस की यह कहते हुए आलोचना की कि उसने अपने कार्यकाल में परियोजनाओं के शिलान्यास तो किए लेकिन उन्हें समय से पूरा न करके देश के लोगों की आंखों में धूल झोंकी. मजे की बात यह कि उन्होंने स्वयं अगस्त, 2017 में तामझाम के साथ एक ही दिन में राजस्थान में 9,500 सड़क परियोजनाएं आरंभ करके एक तरह से रिकॉर्ड ही बना दिया था.
उत्तर प्रदेश में 2017 में विधान सभा चुनाव से पूर्व तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मात्र छह घंटों में 5,500 नई परियोजनाएं शुरू कीं. लेकिन ऐसी महत्त्वाकांक्षी परियोजनाएं कदाचित ही समय से पूरी हो पाती हैं. सीएजी की विभिन्न रिपोटरे से इस बात की तस्दीक होती है. दरअसल, तमाम राजनीतिक पार्टियां चुनाव नजदीक आने पर शिलान्यासों की झड़ी लगाकर मतदाताओं का ध्यान खींचने की कवायद में जुट जाती हैं. मोदी सरकार सुशासन की हामी है. सरकारी मशीनरी को चुस्त-दुरूस्त करने के वादे के साथ सत्तासीन हुई है, लेकिन परियोजनाओं के त्वरित कार्यान्वयन की दिशा में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला. इस स्थिति के चलते परियोनाएं निर्धारित समय से पूरी नहीं हो पातीं. न केवल इतना बल्कि उन पर व्यय भी निर्धारित लागत से ज्यादा हो जाता है. केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय, जो 150 करोड़ रुपये या उससे अधिक की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की निगरानी करता है, ने बीते सितम्बर माह में जो फ्लैश रिपोर्ट जारी की है, उसके मुताबिक, 1,263 परियोजनाओं की कुल मूल लागत 15,53, 683.89 करोड़ रुपये रहने का अनुमान था. अब इनको पूर्ण करने की लागत 17,48,427.56 करोड़ रुपये बैठेगी यानी इन परियोजनाओं की मूल लागत में 12.60 प्रतिशत का इजाफा हो जाएगा.

अधिकारियों की तंद्रा टूट नहीं पा रही. कह सकते हैं कि अफसरशाही के स्तर पर पसरी शिथिलता के चलते विकास घड़ियाली आंसू जैसा बना हुआ है. गौरतलब है कि परियोजनाओं के शिलान्यास का सिलसिला प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दौर में शुरू हुआ था, जब विभिन्न क्षेत्रों में तमाम महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं की बुनियादी डाली गई, जिनसे भेदभावरहित विकास संभव हो सका. लेकिन आज के समय में राजनीतिक पार्टियां और उनकी सरकारें परियोजनाओं का श्रेय लेने की जुगत में रहती हैं. पंजाब का एक किस्सा मजेदार है, जब एक सड़क परियोजना का तीन राजनीतिक पार्टियों-शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस और लोक इंसाफ पार्टी-ने शिलान्यास कर डाला. इस प्रकार के अनेक किस्से सुनने को मिल जाएंगे. दरअसल, विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच प्रतिस्पर्धा इस कदर बढ़ चुकी है कि वे अपनी उपलब्धियां गिनाने के फेर में इस प्रकार से सिर भिड़ाने को तत्पर रहती हैं. परियोजनाओं की निर्धारित से ज्यादा लागत और उनके क्रियान्वयन में विलंब एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़े बताते हैं कि 36 परियोजनाएं तो ऐसी हैं जो अपने पूरा होने के लिए नियत समय से 20 वर्ष पीछे हैं. इन पर निवेश लागत 32.7 लाख करोड़ रुपये थी, जो अब बढ़कर 14.35 लाख करोड़ रुपये हो चुका है.
अनेक परियोजनाओं को मूर्तरूप देने का मंसूबा दशकों पूर्व बांधा गया था, लेकिन अभी तक उन्हें पूरा नहीं किया जा सका है. कई कारणों में धन की कमी और सरकारों के बदल जाना प्रमुख है. सरकार के स्तर पर इस नाकामी का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर अनेक तरह से दृष्टिगोचर होता है. अवाम खुद को छला हुआ महसूस करता है, और बेरोजगारी को हल करने का रास्ता मुश्किल भरा हो जाता है. प्रधानमंत्री मोदी कह चुके हैं कि उन्हें विकास से सरोकार है, परियोजनाओं को सिरे चढ़ाने में किसी प्रकार की राजनीति से इतर विकास के सिलसिले को गतिशील बनाने पर उनकी तवज्जो ज्यादा है. यकीन किया जा सकता है कि इससे परियोजनाओं में अनावश्यक विलंब नहीं होने देगी. लेकिन इसके लिए यह भी आवश्यक है कि सुस्ती से घिरी अफसरशाही और सरकारी अमले को चुस्त किया जाए. राजनीतिक पार्टियों को भी अपने निहित हितों को तिलांजलि देनी होगी. उन्हें अर्थव्यवस्था के व्यापक हित की दिशा में सोचना होगा. अभी तो हो यह रहा है कि परियोजनाओं के शिलान्यास नाम पर छलावा हो रहा है, जो अर्थव्यवस्था के हित में नहीं है.

रणधीर तेजा चौधरी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment