रेल बजट : कायाकल्प की संभावना नहीं

Last Updated 02 Feb 2018 04:38:24 AM IST

गंभीर चुनौतियों और संसाधनों की तंगी से जूझ रही भारतीय रेल के बजट आवंटन में बढोत्तरी करने के साथ वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मुसाफिरों पर कोई बोझ नहीं डाला है.


रेल बजट : कायाकल्प की संभावना नहीं

लेकिन यह समग्र रूप से औसत बजट है, जिसमें रेलवे के कायाकल्प की कोई संभावना फिलहाल नहीं नजर आती. हालांकि रेलवे नेटवर्क को मजबूत करना और ढुलाई क्षमता बढ़ाना सरकार का प्रमुख केंद्र बिंदु रहा है. सरकार ने 2018-19 के लिए रेलवे का पूंजीगत व्यय 1.48 लाख करोड़ से अधिक प्रस्तावित किया है. इसमें भी सुरक्षा को स्वाभाविक तौर पर सबसे अधिक तवज्जो देते हुए 73,065 करोड़ रुपये की राशि इससे संबंधित कामों पर व्यय करने का प्रस्ताव किया गया है.
रेलवे में थोड़े सुधार के लक्षण इस बीच में दिख रहे हैं. इसका परिचालन अनुपात थोड़ा बेहतर हुआ है. 2018-19 में रेलवे की प्राप्तियां 2.01 लाख करोड़ परिकल्पित है, जबकि राजस्व व्यय चार फीसद बढोत्तरी के साथ 1.88 लाख करोड़ आंका गया है. इस बार एक हजार किमी नई रेल लाइन, एक हजार किमी का आमान परिवर्तन और 2100 किमी का दोहरीकरण का लक्ष्य रेलवे ने रखा है.

आम बजट में रेल बजट के समाहित होने का यह दूसरा साल है. रेलवे के नीति निर्धारकों को पहली बार यह नजर भी आने लगा है कि देश की लाइफ लाइन कहा जाने वाला यह महकमा अब बाकी महकमों से अलग नहीं रहा. फिलहाल रेलवे का जोर क्षमता सृजन पर है. 2018-19 में रेलवे 12,000 माल डिब्बों और 5160 सवारी डिब्बों के साथ 700 इंजनों की भी खरीदारी करेगी. वहीं सुरक्षा के मद्देनजर 4267 मानव रहित समपारों को भी दो साल में समाप्त कर दिया जाएगा. रेलवे स्टेशनों पर यात्री सुविधाओं के विकास की दिशा में भी कुछ कदम उठे हैं. इस साल पहला आधुनिक ट्रेन सेट चालू होंगे और मुंबई और बंगलुरू में मेट्रो रेल के विस्तार के साथ वडोदरा में रेल विविद्यालय बनेगा. आज भारतीय रेल का नेटवर्क 67,368 किमी हो गया है और यह भारी दबाव से जूझ रही है. भारतीय रेल रोज करीब ढाई करोड़ से अधिक मुसाफिरों को गंतव्य तक पहुंचाने के साथ भारी मात्रा में माल ढुलाई कर रही है. यह रोज औसतन 19,710 रेलगाड़ियां चला रही है, जिसमें से 12,335 यात्री गाड़ियां हैं. रेलवे की असली कमाई माल गाड़ियों से होती है. इस समय यात्री यातायात का घाटा बढ़ कर 36 हजार करोड़ रु पये तक पहुंच गया है. कुछ खंडों पर यात्री यातायात का भारी दबाव है और सेवाओं का स्तर बहुत गिर रहा है. कौन गाड़ी कब दुर्घटना की शिकार हो जाए और गंतव्य पर कितनी देरी से पहुंचगी, कुछ कहा नहीं जा सकता है. रेलवे के समक्ष सबसे बड़ी तात्कालिक चुनौती अगले साल यानी 2019 तक सालाना डेढ़ अरब टन माल वहन क्षमता बढाने का है. इसी तरह प्रधानमंत्री के सुझाव के तहत रेलवे जिन खास प्राथमिकताओं पर काम कर रहा  है, उसमें पांच साल में मॉडल शेयर बढ़ा कर 37 फीसद करना भी शामिल है. लेकिन इस दिशा में अभी खास प्रगति नहीं दिख रही है. अलबत्ता, सुरेश प्रभु के रेल मंत्री काल की एक महत्त्वाकांक्षी योजना को रेल मंत्री पीयूष गोयल गति देने में लगे हैं और वे चाहते हैं कि 2022 तक पूरी भारतीय रेल विद्युतीकृत हो जाए. इससे रेलवे की क्षमता तो बढ़ेगी लेकिन पूरे काम और डीजल इंजनों को भी बिजली इंजनों में बदलने पर भारी धन व्यय होगा.
रेलवे में 2.20 लाख कर्मचारियों की रिक्तियां हैं, जिसमें से 1.41 लाख पद सबसे जरूरी संरक्षा श्रेणी के खाली पड़े हैं. कर्मचारी भारी दबाव में काम कर रहे हैं. भारतीय रेल रफ्तार पर खास जोर दे रही है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि अभी हमारी माल गाड़ियों की औसत रफ्तार 23.1 किमी और यात्री गाड़ियों की 44.2 किमी प्रति घंटा है. सरकार ने पांच सालों में माल गाड़ियों की औसत रफ्तार दोगुना करने और यात्री गाड़ियों की रफ्तार 25 किमी प्रति घंटा बढ़ाने की परिकल्पना की है. बुलेट ट्रेन पर जोर है मगर हकीकत यह है कि बाकी गाड़ियों को भी सुधारना जरूरी हो गया है. रेल मंत्रालय ने 2015-16 में रेलवे में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पांच साल में 8.56 लाख करोड़ रु पये के निवेश की योजना पर विचार किया था. इसमें भीड़ भाड़ को कम करने के लिए 1.99 लाख करोड़ और नेटवर्क विस्तार के लिए 1.93 लाख करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित था. सुरेश प्रभु के जाने के बाद से प्राथमिकताएं बदल गई हैं. हर साल पांच हजार किमी रेल पथ नवीनीकरण की जरूरत है लेकिन यह काम धीमी गति से चल रहा है.

अरविंद कुमार सिंह
भारतीय रेल के पूर्व सलाहकार


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