आम बजट : करों में राहत की उम्मीद
आज एक फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट से करदाताओं खासतौर से छोटे आयकरदाताओं, नौकरीपेशा मध्यम वर्ग के साथ-साथ उद्योग एवं कारोबार क्षेत्र के लोगों को कर राहत की उम्मीद है.
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सरकार ने करदाताओं के लिए राहत के संकेत भी दिए हैं. चूंकि अप्रत्यक्ष कर अब वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में शामिल किए जा चुके हैं, इनमें वृद्धि या कमी करने का फैसला केवल जीएसटी परिषद ही ले सकती है, इसलिए अप्रत्यक्ष करों में आमतौर पर होने वाले बदलाव अब नये बजट 2018-19 में नहीं दिखाई देंगे. चूंकि 2018-19 का बजट आम चुनाव के पहले का आखिरी पूर्ण बजट होगा, इस कारण लोगों की बचत एवं उद्योग-व्यापार को गति देने के लिए विभिन्न कर राहत की संभावनाएं हैं. प्रत्यक्ष कर के मोच्रे पर आयकर एवं कॉरपोरेट टैक्स में रियायत मिल सकती है ताकि खर्च करने योग्य आय में इजाफा किया जा सके और कारोबार को भी गति दी जा सके.
गौरतलब है कि छोटे आयकरदाता नौकरीपेशा वर्ग के साथ-साथ मध्यम वर्ग के लोग चाहते हैं कि बढ़ती महंगाई और घटती हुई बचत के मद्देनजर उन्हें बजट में राहत मिलनी चाहिए. इस समय आयकर छूट की जो अधिकतम सीमा ढाई लाख रुपये है, उसे बढ़ाकर चार लाख किया जाना चाहिए. साथ ही, आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत बच्चों की स्कूल-कॉलेज की फीस, बीमा प्रीमियम और विनियोग आधारित लाभ आदि के लिए कटौती की जो सीमा डेढ़ लाख रुपये है, उसे बढ़ाकर ढाई लाख रुपये किया जाना चाहिए. साथ ही, 10 लाख रुपये तक की आय पर आयकर की दर 10 फीसदी की जानी चाहिए. टैक्स की श्रेणियों में भी उपयुक्त बदलाव किया जाना चाहिए.
सीनियर सिटीजन वर्ग के लोगों के लिए आयकर में छूट की सीमा बढ़ाई जानी चाहिए. साठ वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए छूट की सीमा साढ़े चार लाख रुपये और 80 साल से ऊपर के बुजुगरे के लिए छूट की सीमा 5.5 लाख रुपये की जानी चाहिए. घर खरीदने वालों को मौजूदा 2 लाख रुपये की जगह 5 लाख रुपये की टैक्स रियायत देनी चाहिए. यह कदम मकान खरीदने वालों को रियल इस्टेट प्रॉपर्टी खरीदने के लिए प्रोत्साहित करेगा और आवास क्षेत्र की तरक्की की रफ्तार बढ़ेगी.
जेटली वर्ष 2018-19 के बजट के माध्यम से जहां छोटे आयकरदाताओं के लिए राहत देते हुए दिखाई दे सकते हैं, वहीं नये आयकरदाताओं की संख्या बढ़ाने के लिए नई रणनीति प्रस्तुत करते हुए भी दिखाई दे सकते हैं. पिछले एक दशक में लोगों की आय तो तेजी से बढ़ी है लेकिन आयकरदाताओं की संख्या में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई है, और छोटे आयकरदाताओं को अपेक्षित राहत नहीं मिली है. हाल में आयकर विभाग ने आयकरदाताओं से संबंधित जो आंकड़े प्रस्तुत किए हैं, उनके अनुसार 2014-15 में 3.65 करोड़ लोगों ने टैक्स रिटर्न फाइल किया था. फिर 2015-16 में कुल 4.07 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न फाइल किया और 2016-17 में 6.26 करोड़ लोगों ने रिटर्न फाइल किया. यद्यपि आयकर रिटर्न फाइल करने वाले लोगों की संख्या नोटबंदी के बाद तेजी से बढ़ी लेकिन वास्तविक रूप से आयकर चुकाने वाले लोगों की संख्या बहुत कम रही.
वर्ष 2016-17 में 125 करोड़ लोगों में से करीब ढाई फीसद लोगों ने ही आयकर भरा. वर्ष 2018-19 के नये बजट के तहत कॉरपोरेट टैक्स की दर कम किए जाने की संभावना है. यह टैक्स हमारे देश में सबसे ज्यादा है, और अभी ग्लोबल लेवल पर अमेरिका से लेकर जापान तक में कॉरपोरेट टैक्स कम हुए हैं. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने पहले बजट में कॉरपोरेट टैक्स घटाने का वादा किया था. लेकिन, उसे अब तक लागू नहीं किया गया है. चूंकि कम कॉरपोरेट टैक्स रेट से अधिक निवेश को प्रोत्साहन मिलता है, और नौकरियां पैदा होती हैं. अतएव निवेश का वातावरण सुधारने के लिए नये बजट में अरुण जेटली द्वारा कॉरपोरेट टैक्स दरें 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत की जा सकती है. वित्त वर्ष 2018-19 के आम बजट में वित्त मंत्री पूंजी बाजार को लेकर कई कदमों की घोषणा कर सकते हैं.
अन्य निवेश साधनों की तरह इनमें सूचीबद्ध शेयरों में अल्पावधि पूंजी लाभ कर की अवधि को एक साल से बढ़ाकर तीन साल करने जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं. चूंकि देश के छोटे उद्योगों की अर्थव्यवस्था के विकास और रोजगार में महत्त्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन बड़ी संख्या में विभिन्न छोटे उद्योगों की स्थिति अच्छी नहीं है, अतएव लघु उद्योगों को टैक्स में छूट दी जा सकती है. इसमें सरकार नये कर्मचारियों को भर्ती करने पर तीन से पांच साल के लिए 30 फीसद की अतिरिक्त छूट दे सकती है, जो किसी भी लघु उद्योग के लिए बड़ी राहत होगी. अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए रोजगारपरक लघु उद्योग शुरू करने वाले को आर्थिक प्रोत्साहन दिया जा सकता है. विश्व भर में टैक्स रेट कम हो रहे हैं, ऐसे में हमारे देश में भी टैक्स की दरें कम होनी चाहिए अन्यथा हमारा निवेश बाहर चला जाएगा. निस्संदेह वित्त मंत्री के लिए विभिन्न वगरे के लिए कर राहत देना कोई सरल काम नहीं है. कर घटाने का देश के सरकारी खजाने पर बुरा असर पड़ेगा क्योंकि 2017-18 में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद का 3.2 प्रतिशत रखा गया है, जो इस स्तर से ऊपर जाते हुए दिखाई दे रहा है. साथ ही 2018-19 में राजकोषीय घाटे के जीडीपी के 3 प्रतिशत तक रखने के लक्ष्य को पाना भी मुश्किल है क्योंकि पेट्रोलियम पदाथरे की कीमत लगातार बढ़ रही है.
आशा करें कि ऐसी वित्तीय चुनौतियों के बीच भी वित्त मंत्री विभिन्न वगरे की कर राहत की अपेक्षाओं के मद्देनजर वित्तीय तालमेल के साथ वर्ष 2018-19 का जो नया बजट प्रस्तुत करेंगे वह छोटे आयकरदाताओं, नौकरीपेशा मध्यम वर्ग एवं उद्योग-कारोबार को राहत देने वाला और अर्थव्यवस्था को विकास की डगर पर आगे बढ़ाने वाला होगा.
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