हॉकी : जीत ने बंधाई उम्मीदें

Last Updated 08 Dec 2017 06:06:26 AM IST

भारतीय हॉकी टीम को कुछ महीनों पहले ही शोर्ड मारिन के रूप में नया कोच मिला है.


हॉकी : जीत ने बंधाई उम्मीदें

उन्होंने भारत को एशिया कप जिताकर पहली परीक्षा तो पास कर ली थी. लेकिन भुवनेश्वर में चल रहे वर्ल्ड हॉकी लीग फाइनल्स में ग्रुप मैचों में भारतीय प्रदर्शन को देखकर लगने लगा था कि मारिन भी शायद ज्यादा दिन के मेहमान न रहें. टीम ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के खिलाफ ठीक-ठाक खेलने के बाद अपनी गलती की वजह से जीत नहीं सकी. लेकिन जर्मनी के खिलाफ तीसरे मैच में तो टीम बिलकुल भी लय और ताल में नजर नहीं आई. जर्मनी ने मैच में पूरी तरह दबदबा बनाकर भारत को धो दिया.

इस प्रदर्शन को देखने के बाद लगा कि इस टीम में सुधार लाना शायद संभव नहीं है. भारत को क्वार्टर फाइनल में खेलना भी ऐसी टीम से था, जो कि अपने पूल में सभी मैच जीतकर टॉप पर थी. वह रियो ओलंपिक में फाइनल तक चुनौती पेश करके रजत पदक जीत चुकी थी और उसकी विश्व रैंकिंग तीसरी थी. इसलिए भारत की हार को लेकर किसी के भी मन में कोई संदेह नहीं था. लेकिन भारत ने टाईब्रेकर तक खिंचे इस मुकाबले को जिस दिलेरी के साथ जीता, उसे देखकर टीम के बारे में बनी धारणा फिर से बदल गई. इस मैच में भारतीय खिलाड़ी एक-दूसरे को सटीक पास दे रहे थे और ट्रेपिंग भी अच्छी थी. साथ ही हमलों को देखकर लग रहा था कि वह उद्देश्यपूर्ण ढंग से बोले जा रहे थे. भारत को अब इंग्लैंड और ओलंपिक चैंपियन अर्जेंटीना के विजेता से खेलना होगा. भारतीय टीम यदि इस मैच को जीत जाएगी तो वह 2014-15 में जीते कांस्य पदक वाले प्रदर्शन की बराबरी कर लेगी.

यह सही है कि पिछले कुछ सालों में भारतीय प्रदर्शन में सुधार हुआ है. भारत ने पिछले कुछ सालों में वर्ल्ड हॉकी लीग का कांस्य पदक जीतने के अलावा चैंपियंस ट्रॉफी का रजत पदक और एशिया कप का स्वर्ण पदक जीता है. पर टीम की सबसे बड़ी कमजोरी प्रदर्शन में एकरूपता की कमी है. इसे हम ग्रुप मैचों और क्वार्टर फाइनल में किए प्रदर्शन से ही समझ सकते हैं. इस चैंपियनशिप या चैंपियंस ट्रॉफी का फार्मेट ऐसा है कि आपको खराब प्रदर्शन करने के बाद भी आगे निकलने का मौका मिल जाता है. असल में फार्मेट के हिसाब से ग्रुप मैचों के बाद भाग लेने वाली सभी आठों टीमें क्वार्टर फाइनल में पहुंचती हैं. इसका भारत ने फायदा उठाया और ग्रुप मैचों में आखिरी स्थान पर रहने के बाद भी एक अच्छे प्रदर्शन से सेमीफाइनल में स्थान बना लिया. पर ओलंपिक और विश्व कप जैसी प्रतिष्ठित चैंपियनशिपों में इस तरह का मौका नहीं मिलता है. ग्रुप मैचों में इस तरह का प्रदर्शन करने पर अंतिम टीमों में खेलने का मौका मिलता.

बेल्जियम पर जीत से भारतीय कोच शोर्ड मारिन और गोलकीपर आकाश चिकते के कॅरियर को उड़ने के लिए नए पंख लग गए हैं. इस मैच से पहले दोनों का ही कॅरियर मुश्किल में नजर आ रहा था. ग्रुप मैचों में एक भी जीत नहीं प्राप्त करने के बाद मारिन के कॅरियर पर संकट के बादल दिखने लगे थे. वहीं चिकते के गोलकीपर रहते इंग्लैंड के खिलाफ आखिरी समय में गोल खाकर हारने और जर्मनी के खिलाफ घटिया प्रदर्शन के बाद बेल्जियम के खिलाफ सूरज करकेरा को उतारा गया. भारतीय टीम के काफी समय तक 2-0 से आगे रहने के बाद लगने लगा था कि सूरज करकेरा पीआर श्रीजेश के सहायक की जिम्मेदारी संभालने में सक्षम हैं. लेकिन आखिरी समय में बेल्जियम के बराबरी पा लेने और इसमें करकेरा के दो आसान गोल खा लेने की भूमिका की वजह से आखिरी समय में चिकते का उतारा गया. चिकते ने चार शानदार गोल बचाकर श्रीजेश की परछांई से निकलने का संकेत दे दिया.

शोर्ड मारिन ने जिस तरह से सरदार सिंह जैसे सीनियर खिलाड़ी को बाहर राह दिखाकर और जूनियर विश्व कप के स्टार खिलाड़ियों हरमनप्रीत सिंह, वरुण कुमार और टिर्की का ग्रेजुएशन कराकर टीम में शामिल कराया. उससे टीम में नई जान आई है. इस टीम पर हम अभी कुछ सालों तक भरोसा कर सकते हैं. शोर्ड ने ना सिर्फ अपने खिलाड़ियों को हमलावर रुख अपनाने के लिए प्रेरित किया बल्कि बेल्जियम के क्रासों पर पहरा बैठाकर उनके हमलों की जान निकाली. इस तरह की रणनीति भारतीय टीम पहले अपनाती नहीं दिखती थी. इस तरह से हम दुनिया की दिग्गज टीमों के समक्ष जल्द ही पहुंच सकते हैं. लेकिन इसके लिए प्रदर्शन में एकरूपता लाना बेहद जरूरी है. हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि टीम इस समय शोर्ड मारिन के सुरक्षित हाथों में है, इसे अच्छा अनुभव दिलाकर बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है.

मनोज चतुर्वेदी


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