प्राथमिक स्वास्थ्य : पूरे किए जाएं वादे

Last Updated 07 Dec 2017 05:46:43 AM IST

फरवरी, 2017 में पेश किए गए केंद्रीय बजट में वादा किया था, ‘डेढ़ लाख स्वास्थ्य उपकेंद्रों (एचएससी) को स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सुधार केंद्रों (एचडब्ल्यूसी) में तब्दील कर दिया जाएगा.’


प्राथमिक स्वास्थ्य : पूरे किए जाएं वादे

इसके कुछ बाद मार्च, 2017 में भारत की नई स्वास्थ्य नीति संबंधी जारी विज्ञप्ति में ‘चुनिंदा के स्थान पर समग्र प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल’ की बात कही गई और इस प्रस्ताव का उल्लेख था कि ‘समग्र प्राथमिक देखभाल के एक पूरे पैकेज मुहैया कराने वाली’ सुविधाओं को ‘स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सुधार केंद्र’ के नाम से पुकारा जाएगा. नीति और वित्त पोषण के मोर्चे पर ये दो घोषणाएं यकीनन भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए उत्साहवर्धक खबरें थीं. समूचे देश में करीब 155,000 उपकेंद्रों का संजाल है, जिनमें से प्रत्येक के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में 5,000 के करीब लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं. लेकिन तथ्य यह भी कि  कई बार ऐसा भी हुआ है कि ये उपकेंद्र क्षमता के अनुरूप कार्य नहीं कर पाए. 

वादे भारत की राजनीतिक का अभिन्न हिस्सा होते हैं. 2016-17 के केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए ऐसी ही एक महत्त्वपूर्ण घोषणा की थी कि ‘एक नई स्वास्थ्य संरक्षण योजना आरंभ की जाएगी.’ हालांकि फरवरी, 2016 में केंद्रीय बजट की घोषणा के पश्चात अफरा तफरी के बीच एक नई योजना लागू करने की तत्परता देखी गई. और आधे-अधूरे अंदाज में राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना (एनएचपीएस) नाम से इसे घोषित कर दिया गया. बताया जाता है कि इस योजना का मसौदा सक्षम प्राधिकार की मंजूरी के लिए एक साल से ज्यादा समय से यूं ही पड़ा है. फलस्वरूप, पहले से जारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना को झटका लगा क्योंकि माना जा रहा था कि नई योजना इसका स्थान लेने वाली थी. एकाएक हैरत हुई इस बात पर कि 2017-18 के बजट में प्रस्तावित एनएचपीएस के आवंटन 1,500 करोड़ रुपये से घटाकर 1,000 करोड़ (बजटीय आंकड़ों की तुलना) कर दिया गया. गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वालों के लक्षित समूह के लिए राष्ट्रव्यापी एनएचपीएस का अनुमानित आवंटन करीबन 7,000 करोड़ रुपये सालाना होगा.
इस परिदृश्य में भारत में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा की जाने वाली नई घोषणा से लोगों में किसी उत्साह का संचार नहीं होता. बजट को घोषित किए दस महीने से ज्यादा का समय हो चला है, और 4,000 स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सुधार केंद्रों की स्थापना का कार्य प्रगति पर है, लेकिन इस गति से सभी उपकेंद्रों को एचडब्ल्यूसी में तब्दील करने में पचास साल लग जाएंगे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘2022 तक नया भारत’ आह्वान एक अवसर है, जब समयबद्ध लक्ष्य के साथ एचएससी को एचडब्ल्यूसी में अच्छे से तब्दील किया जा सकता है. 2018-19 के केंद्रीय बजट को पेश किए जाने का समय करीब आ गया है, इसलिए एचडब्ल्यूसी स्थापित करने के ठोस उपाय किए जाने चाहिए. प्रत्येक एचएससी को एचडब्ल्यूसी में बदले जाने के लिए 15-17 लाख रुपये की दरकार होगी यानि कुल 200,000 एचडब्ल्यूसी के लिए 30,000 से 35,000 करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत होगी.
अभी अपनाए जा रहे वृद्धि-उन्मुख तरीके से अपेक्षित लक्ष्य हासिल नहीं किए जा सकते. एक साल में कुल चार हजार और फिर हर गुजरते साल में कुछ हजार अतिरिक्त केंद्रों की स्थापना देश की जरूरत को पूरा नहीं करेगी. दूसरे, यह भी जरूरी है कि स्वास्थ्य प्रणालियों के समक्ष नवोन्मेषी समाधान की तरफ बढ़ने की चुनौती पेश करनी होगी. पांच सालों में दो लाख एचडब्ल्यूसी की स्थापना के लिए प्रति वर्ष 40 लाख एचडब्ल्यूसी की स्थापना की जानी चाहिए. सभी राज्यों के लिए चरणीकरण का तरीका नहीं होना चाहिए. सिक्किम, पुडुचेरी या हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य और केंद्र-शासित क्षेत्र एक या दो साल में ही अपने यहां एचएचसी को एचडब्ल्यूसी में बदल सकते हैं. उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों को इस दिशा में सक्रियता से बढ़ने के लिए समर्थन की जरूरत है.
जहां ग्रामीण भारत में विभिन्न प्रकार के उपकेंद्र मौजूद हैं, वहीं शहरी  क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए ऐसी ढांचागत सुविधाएं नहीं हैं. शहरी आबादी में सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली और लोगों के मध्य संपर्क पहले पहल प्राय: शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के जरिए होता है. ये केंद्र प्रति 50,000 लोगों की आबादी (ग्रामीण क्षेत्रों में एक एचएससी द्वारा सेवित जनसंख्या की दस गुणा) के लिए कार्यरत हैं. एनएचपी 2017, जो इस चुनौती को आंशिक रूप से स्वीकार करती है, में प्रस्ताव है कि ‘सरकार समूचे देश में लोगों को समग्र स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के लिए ऐसे स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य सुधार केंद्रों की स्थापना हेतु निजी क्षेत्र का सहयोग लेगी.’ लेकिन शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के लिए जरूरी है कि सरकार पूंजी निवेश करे. पूरी तरह निजी क्षेत्र पर निर्भर न रहे. शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य के लिए पूंजी और परिव्यय किए जाने की जरूरत है, और एचडब्ल्यूसी की स्थापना किए जाने का फैसला एक बड़ा अवसर है. समूचे देश में एचडब्ल्यूसी स्थापित किए जाना एक वृहत कार्य है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और उससे संबद्ध संस्थानों जैसे सरकारी संस्थानों के पास हो सकता है कि समय और समुचित क्षमता की कमी हो. बेहतर होगा कि कुल बजट का 1-2% हिस्सा एचडब्ल्यूसी की स्थानपा के लिए आवंटित किया जाए ताकि एक स्वतंत्र निगम का गठन हो सके. यह समयबद्ध गतिविधियों को क्रियान्वित करने के काम को अंजाम दे सकेगा. निगम की बंदोबस्ती पेशेवरों/पेशेवर एजेंसियों को सौंपी जा सकती है, जो इस बाबत प्रक्रिया का अच्छे से निर्देशन कर सकेंगे. स्वच्छ भारत मिशन के लिए अंगीकार की गई प्रक्रिया की भांति मेडिकल कॉलेज भी एचडब्ल्यूसी की स्थापना के कार्य की निगरानी में हाथ बंटा सकते हैं.
देश ने नीति-निर्माताओं को जब-तब बड़ी घोषणाएं करते देखा है. इनमें से बहुत थोड़ी का ही क्रियान्वयन हो सका है. देखते हैं कि एचडब्ल्यूसी ऐसी ही कोई घोषणा तो साबित नहीं हो जाएगी जिसका न तो कोई नतीजा निकला, न कोई अपेक्षित परिणाम? क्या यह वास्तव में भारतीयों के जीवन पर सकारात्मक असर डालेगी? एचडब्ल्यूसी की स्थापना का फैसला न केवल प्राथमिक देखभाल को मजबूती देने वाला है, बल्कि यह बचाव और प्रेरक देखभाल और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की राह को प्रशस्त करेगा. यह वह रास्ता है जो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाएगा और देश को अपने सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने संबंधी रणनीति बनाने में सहायक होगा. एनएचपी, 2017 का यही उद्देश्य है.

चंद्रकांत लहरिया


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