इसरो : निजी कंपनियों पर बढ़ता भरोसा

Last Updated 25 Nov 2017 05:44:30 AM IST

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) निजी कंपनियों की मदद से 30 उपग्रहों का निर्माण करना चाहता है, जिसके लिए निविदा भी आमंत्रित की गई है.


इसरो : निजी कंपनियों पर बढ़ता भरोसा

इसरो के अध्यक्ष किरण कुमार ने साफ तौर पर कहा कि इसरो खुद से बड़ी संख्या में उपग्रहों का निर्माण करने में सक्षम नहीं है. उपग्रहों के निर्माण में तेजी लाने के लिए फरवरी, 2018 तक 4 से 5 निजी कंपनियों का चयन किया जा सकता है. निजी कंपनियों की मदद से इसरो प्रत्येक साल 16 से 18 उपग्रहों का प्रक्षेपण अंतरिक्ष में करना चाहता है.
इसरो की योजना आगामी 5 सालों में अंतरिक्ष में 60 उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की है. इसरो का यह भी लक्ष्य है कि वर्ष 2021 तक पूर्ण रूप से निजी कंपनियों द्वारा निर्मिंत उपग्रह का अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया जाए. गौरतलब है कि मौजूदा समय में इसरो केवल 3 से 4 उपग्रह ही अंतरिक्ष में हर साल प्रक्षेपित कर पा रहा है, लेकिन प्रत्येक साल अंतरिक्ष में ज्यादा उपग्रह प्रक्षेपित करने पर ही देश की बढ़ती जरूरतों, जिसमें रक्षा एवं आम दोनों शामिल हैं को पूरा किया जा सकता है. इसरो यह भी चाहता है कि निजी कंपनियां अपने संसाधनों से उपग्रहों का निर्माण करें, ताकि आने वाले दिनों में ज्यादा विकल्प उपलब्ध हो सके.

वैसे, विश्व के अनेक देशों में निजी कंपनियां जैसे, बिजेलो एयरोस्पेस, एक्सिएम स्पेस, एक्स कैलिबर अलमेज, ग्लोबल स्पेस, फाइनल फ्रंटियर टेक्नालॉजी आदि अंतरिक्ष में उपग्रहों को प्रक्षेपित करने का काम कर रही हैं.  उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के मामले में भारत का नाम अग्रणी देशों में शामिल है. इतना ही नहीं, इस कार्य को अंजाम देने में भारत दूसरे देशों की भी मदद कर रहा है. हालांकि, सोवियत यूनियन ने 4 अक्टूबर 1957 को स्पूतनिक-1 नाम से विश्व का पहला उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया था. भारत ने वर्ष 1975 में आर्यभट्ट नामक उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित किया था, लेकिन खुद के संसाधनों से उसने 18 जुलाई 1980 में एसएलवी रॉकेट से रोहिणी डी-1 का प्रक्षेपण किया. अब तक 40 से अधिक देशों द्वारा लगभग 6600 उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किये जा चुके हैं. ज्ञातव्य है कि उपग्रह को रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाता है, जिसे बाद में कंप्यूटर की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है. देखा जाए तो अंतरिक्ष विज्ञान के संदर्भ में निजी क्षेत्र की भूमिका भारत में बहुत ही सीमित है. फिलवक्त इनकी सहभागिता कलपुजरे की आपूर्ति तक सिमटा हुआ है. बीते महीनों नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस-1 एच का निजी क्षेत्र के सहयोग से 31 अगस्त को अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया गया था, लेकिन वह असफल रहा. लगभग 1400 किलोग्राम वजनी आईआरएनएसएस-1 एच, आईआरएनएसएस ‘नाविक’ का आठवां उपग्रह था. यह उपग्रह श्रृंखला के पहले उपग्रह आईआरएनएसएस-1 ए की जगह लेने वाला था, जिसकी परमाणु घड़ियां खराब हो गई हैं. इस उपग्रह के निर्माण के लिए इसरो ने छह निजी कंपनियों के कंसोर्टयिम से लगभग 70 कर्मचारियों को तैनात किया था, जिन्होंने उपग्रह के एसेंबलिंग, इंटीग्रेशन और परीक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस-1 एच के प्रक्षेपण की नाकामी ने दो सवाल खड़े किए हैं. पहला, क्या रॉकेट पीएसएलवी में गड़बड़ी थी या फिर निजी क्षेत्र के इंजीनियरों ने उम्मीद के मुताबिक काम नहीं किया. जांच से साफ हो गया है कि रॉकेट पीएसएलवी में उड़ान के कुछ मिनटों के बाद ही तकनीकी खराबी आ गई और प्रक्षेपण असफल हो गया. लिहाजा निजी क्षेत्र की सहभागिता को लेकर इसरो के अध्यक्ष किरण कुमार उत्साहित हैं. उनके अनुसार इसरो एक ऐसी व्यवस्था बनाना चाहता है, जिसमें निजी क्षेत्र की उपग्रह निर्माण में सक्रिय सहभागिता रहे.
किरण कुमार का कहना है कि अभी हम जो कर सकते हैं और जो हमें करना चाहिए के बीच एक अंतर है और वह है आवश्यकता और हमारी क्षमता के बीच. निश्चित तौर पर निजी क्षेत्र की मदद से हम इस अंतर को पाट सकते हैं. हमें हर साल 16 से 17 उपग्रह बनाने होते हैं. अस्तु, इस अंतर को पाटने के लिए निजी क्षेत्र को आगे लाना जरूरी है. हां, शुरू में हमें निजी क्षेत्र के कार्यों पर जरूर नजर रखनी होगी.

सतीश सिंह


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