मीडिया : चार हाथों वाला आदमी

Last Updated 30 Jul 2017 04:41:46 AM IST

वे ज्यों ही आकर सामने की कुरसी पर बैठा त्यों ही उसने अपने हाथ के चारों मोबाइल मेज पर ताश के पत्तों की तरह बिछा दिए.


मीडिया : चार हाथों वाला आदमी

चारों महंगे आई फोन थे. चार-चार मोबाइलों का आप क्या करते हैं? काम के लिए जरूरी हैं. न रखूं तो काम कैसे चले? इतनों की क्या जरूरत है? सिर्फ एक से काम चल जाना चाहिए. अपना तो एक से ही चल जाता है. मुझे चार जरूरी हैं. दो पर्सनल हैं, तीसरा ऑफिशियल वाला और चौथा एकदम सीक्रेट कोड वाला. यह स्पेशल नम्बर है, जो रिकॉर्ड नहीं होता.
मैंने पूछा : क्या मतलब कि रिकॉर्ड नहीं होता?
वह बोला : अच्छा, मैं तुमको फोन करता हूं.
मेरा फोन बजा. मैंने देखा कि एक नया छोटा सा नम्बर आ रहा है.
मैंने पूछा : यह क्या सीक्रेट नम्बर है?
वह उत्साह से बोला : यही असली चीज है, मैं कर सकता हूं, तुम नहीं कर सकते. नम्बर फोन में दर्ज नहीं होगा. यह वीवीआईपी नम्बर है.
तुमको इसकी क्या जरूरत पड़ गई?

भई, हमारे जैसे कंसलटेंटों की किसे जरूरत नहीं? कई सरकारी और प्राइवेट महकमे कंसल्ट करते हैं. रिकॉर्ड होने के खतरे से बचने के लिए यह वीवीआइपी नम्बर है. हरेक को नहीं दिया जाता. मैं तो रात नौ बजे बंद कर देता हूं, सुबह सात बजे ऑन करता हूं. इस डिजिटल क्रांति के जमाने में भी भला कोई फोन को बंद करता है, तुमने उसे लैंडलाइन बना दिया है. हां. और क्या? भई, मोबाइल अब सिर्फ मोबाइल नहीं है, इसी में टीवी है, रेडियो है, इंटरनेट है, सब कुछ है. आराम से चैट करो. खाली वक्त में खेल खेलो, फिर देखो पोर्न, देखो कुछ भी करो. आजकल तो बच्चे तक पोर्न साइटें देखते हैं. इसका असर जानते हो? औरों के बच्चे करते होंगे. मेरे बच्चों के पास दो-दो हैं, इन्हीं से पढ़ते हैं, होमवर्क करते हैं, बिजी रहते हैं, ये देखो मेरे बच्चे ने यह प्रोजेक्ट बनाया है. वह चित्र दिखाने लगा.

यह नोटबंदी के दौर का किस्सा है. अब तो जीएसटी आ गई है, वह और बिजी होगा. हो सकता है कि उसने दो-चार और नये स्मार्टफोन ले लिए हों. स्मार्टफोन आपकी हैसियत को बताता है. जितने फोन, उतना रौब. जितने महंगे, उतना पव्वा. स्मार्टफोन एक लत है, उसके नये-नये मॉडल जो दिन-रात मीडिया में विज्ञापित किए जाते रहते हैं, जिनके नये से नये फीचर बताए जाते हैं, बच्चों से लेकर बड़ों तक के ह्रदयहार हैं. किसी मेले-ठेले, किसी भीड़ भरे समारोह में लोग आपकी जेब पर कम, आपके मोबाइल पर हाथ साफ ज्यादा करते हैं. नया मोबाइल, महंगा मोबाइल एक चस्का है, हर आदमी देखते ही उसे पाना चाहता है, और जिनको हम निम्न मध्यवर्गीय समझते हैं, वे उनको सबसे पहले पाना चाहते हैं. वह उनकी जान है, उसके लिए वे फाइट कर बैठते हैं.

अच्छा भोजन नहीं है, स्वास्थ्य नहीं है, शिक्षा नहीं है, जरा-सी गंदी-सी जगह में रहना पड़ रहा है, लेकिन स्मार्टफोन सबको बराबर बना रहा है. स्मार्टफोन सबको समान बनाने वाला है. रिस्की जगह जाकर खतरनाक एंगल से सेल्फी लेना, चैट में लगे रहना, हर वक्त किसी की चैट का जवाब देते रहना या कुछ लिखते रहना, एक प्रकार की नई लतें हैं, चस्के हैं. लैंडलाइन थी, तो उससे हर वक्त चिपके रहने की लत नहीं थी, मोबाइल से चिपके रहना नई लत है. एक बच्चे को उसके माता-पिता ने बचपन से यह लत लगा दी. वह हर समय मोबाइल में रहता. जब लत बढ़ गई तो माता-पिता ने चाहा कि लत दूर हो, इसके लिए उन्होंने उससे मोबाइल ले लिया, बच्चे ने गुस्से में आकर अपने हाथ की नस काट ली. आजकल अस्पताल में उसके ‘मोबाइल डिएडिक्शन’ यानी मोबाइल की लत छुड़वाने का इलाज चल रहा है. मोबाइल नई लत है, नया-नया है, नया दिखावा है, नई जीवन शैली है.

जितने सफल तेज-तर्रार लोग मिलेंगे, उनके पास कम से कम दो-तीन तो होंगे. वे आपके पास आते ही अपने फोनों को कुछ इस तरह से बिछा देंगे, जैसे ताश के पत्ते बिछा रहे हों. उनकी एक नजर आप पर, एक मोबाइल पर रहेगी कि कौन बजा, किसको क्या जवाब देना है? अगर आपसे मिलने आए हैं, तो आधे से ज्यादा समय वे मोबाइल में लगे रहेंगे. पत्रकारिता में मोबाइल के बढ़ते उपयोग की बात समझ आती है. वह वहां मल्टीमीडिया की तरह काम करता है. लेकिन हमारे उस दोस्त या उस जैसों के पास चार-चार फोन उनकी हैसियत के दिखावे के माध्यम मात्र हैं. मैं फिर पूछता हूं : एक सामान्य आदमी को कितने मोबाइल चाहिए?

सुधीश पचौरी
लेखक


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