वैश्विकी : तनातनी के बीच नरमी
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की बीजिंग यात्रा से भारत और चीन के बीच पिछले करीब चालीस दिनों से जारी तनातनी के माहौल में नरमी आने की संभावना है.
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भारत, भूटान और चीन के बीच मिलन बिंदु डोकलाम में चीन की गतिविधियों को लेकर भूटान की आपत्ति और उसके आधार पर भारत की कार्रवाई के कारण यह सीमा विवाद शुरू हुआ था. चीन का विदेश मंत्रालय और वहां का मीडिया ही नहीं, भारत में भी कुछ ऐसे लोग थे, जो डोकलाम मुद्दे का शांतिपूर्ण हल खोजने के बजाय संघर्ष की बात कर रहे थे. लेकिन सरकारी स्तर पर भारत ने संतुलित और जिम्मेदाराना रवैया अपनाया. डोकलाम में भारतीय सुरक्षाकर्मियों की तैनाती के बाद चीन की ओर से कूटनीतिक तौर पर यह दबाव बनाया जा रहा था कि पहले भारतीय सैनिक विवादित स्थल से पीछे हटें तभी द्विपक्षीय वार्ता शुरू ंहोगी, लेकिन अब चीन के इस रुख में आवश्यक बदलाव आया है, और डोभाल और उनके चीनी समकक्षी यांग जिईची के बीच बातचीत से मसले का हल निकलने के आसार बढ़ गए हैं.
भारत तो पहले से ही कहता रहा है कि वह नहीं चाहता कि मतभेद विवाद में बदले और विवाद संघर्ष में. अब चीन भी लगभग ऐसी ही भाषा का इस्तेमाल करने लगा है. दोनों देशों के दोस्ताना संबंधों को वि शांति और वि की आर्थिक प्रगति के लिए अपरिहार्य मान रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अस्ताना में इस समझदारी का निर्माण किया था. उसी भावना के अनुरूप समस्या के समाधान का रास्ता प्रशस्त हो रहा है. पूरे विवाद में एक बात स्पष्ट तौर पर उभर कर सामने आई है कि भारत अपनी छत्र-छाया वाले छोटे देश भूटान के सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. साथ ही, चीन को इस बात की भी अनुमति नहीं देगा कि वह मनमाने तरीके से सीमा क्षेत्र में बदलाव करे जिससे भारत के सुरक्षा हितों को चोट पहुंचे. जाहिर है कि भारत के इस दृढ़ रुख का उसके अन्य पड़ोसी देशों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. भारती-चीन के बीच विवादित मुद्दे का हल करने के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का सुझाव उपयुक्त है कि दोनों पक्ष विवादित क्षेत्र से अपने सुरक्षाकर्मियों को पीछे हटाएं. इसका अर्थ है कि चीन विवादित क्षेत्र में सड़क निर्माण का कार्य बंद करे और भारतीय सैनिकों को चीन की एकतरफा गतिविधियों को रोकने के लिए हस्तक्षेप की जरूरत ही न पड़े.
अगले महीनों में चीन में ब्रिक्स देशों का शिखर सम्मेलन आयोजित होने वाला है. इसमें नरेन्द्र मोदी भी भाग लेंगे. उनकी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच लगातार बातचीत भी होगी. आशा की जानी चाहिए कि तब तक डोकलाम मुद्दे का समाधान हो चुका होगा. यदि ऐसा नहीं होता है, तो शिखर सम्मेलन में दोनों देशों का शीर्ष नेतृत्व कोई रास्ता निकाल लेगा. हिमालय के आर-पार शांति और स्थायित्व इक्कीसवीं सदी को एशिया की सदी बनाने की गारंटी है. इस ऐतिहासिक मिशन को पूरा करने की जिम्मेदारी दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के कंधे पर है. भारत और चीन जितनी तेजी से प्रगति कर रहे हैं, और वि में जिस गति से इनका प्रभाव बढ़ रहा है, स्वाभाविक है कि दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा हो, लेकिन यह सकारात्मक होनी चाहिए. इसे प्रतिद्वंद्विता में बदलने में किसी का हित नहीं है.
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