'आंचल' के विस्तार की जरूरत
यह जानते हुए भी कि एक शिशु के लिए मां के दूध की कितनी बड़ी उपयोगिता है, हमारे देश में स्तनपान की दर सिर्फ 40 प्रतिशत तक है.
![]() शिशु के लिए मां के दूध बहुत जरूरी (फाइल फोटो) |
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के इस आंकड़े का एक अभिप्राय यह भी है कि देश में काफी बड़ी तादाद में माताएं विभिन्न कारणों (नौकरी जैसी व्यस्तता अथवा किसी बीमारी की वजह से) अपने शिशुओं को स्तनपान नहीं करा पाती हैं. खास तौर से समय-पूर्व जन्मे और कुछ ही दिन के शिशुओं को कुपोषण आदि ऐसी दिक्कतों का सामना ज्यादा करना पड़ता है क्योंकि उस वक्त कई माताएं उन्हें स्तनपान कराने की स्थिति में नहीं होतीं. इन समस्याओं का समाधान मानव दूध बैंक है, लेकिन इस मोर्चे से जुड़ी सच्चाई यह है कि हाल तक देश में ऐसा एक भी सरकारी बैंक नहीं था.
कुछ ही दिन पहले यह जानकारी प्रकाश में आई है कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने देश की राजधानी स्थित लेडी हार्डिग मेडिकल कॉलेज में नेशनल ह्यूमन मिल्क बैंक की स्थापना की है. यह देश का पहला सरकारी मानव दुग्ध बैंक है और अपने आप में सबसे बड़ा भी है. इस बैंक को 'वात्सल्य: मातृ अमृत कोष' नाम दिया गया है. नार्वे की सरकार और ओस्लो विविद्यालय की नॉर्वे-भारत सहयोग संबंधी एक योजना के तहत स्थापित किए गए इस बैंक का ज्यादा बड़ा उद्देश्य समय से पहले जन्मे शिशुओं को मां का दूध उपलब्ध कराना है ताकि उन्हें जीवन की शुरु आत में उपयोगी पोषण मिल सके.
शैशवावस्था में मां के दूध का पोषण पाने वाले बच्चों में मोटापे, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और एलर्जी संबंधी बीमारियों से लड़ने की बेहतर क्षमता देखी गई है.
यदि स्तनपान से वंचित शिशुओं को शुरु आत में मां का दूध उपलब्ध कराया जाए तो उनकी मृत्युदर में 22 प्रतिशत तक कमी लाई जा सकती है. जहां मानव दूध के इतने फायदे हैं, इससे जुड़ा सच यह है कि देश में न तो ऐसी बैंकिंग को लेकर जागरूकता है और न ही ऐसे बैंक अस्पतालों आदि में आम तौर पर दिखाई देते हैं.
इधर, जब दिल्ली में पहला सरकारी मानव दूध बैंक स्थापित किया जा रहा था, तो यह तथ्य भी प्रकाश में आया कि देश में सिर्फ राजस्थान ऐसा अकेला राज्य है जहां ऐसे नवजात बच्चों को भी सामुदायिक दुग्ध बैंकिंग के जरिये मां का दूध मुहैया कराया जाने लगा है जो अस्पतालों में पैदा नहीं कराए जाते हैं.
असल में राजस्थान सरकार ने इस संबंध में 'आंचल' नामक मदर मिल्क बैंक प्रोजेक्ट शुरू किया है, जिसके पूरे प्रदेश में फिलहाल 11 केंद्र बनाए गए हैं. ये केंद्र विभिन्न माताओं से दूध जमा करते हैं और फिर जरूरतमंद बच्चों तक पहुंचाते हैं. ऐसी स्वस्थ महिलाएं इस तरह के बैंक को अपना दूध दान में उपलब्ध कराती हैं, जिनके बच्चों को मां के दूध की जरूरत नहीं रह गई है. दावा है कि राज्य की करीब साढ़े तीन हजार माताएं इसे अपना दूध दान में देती हैं, जिससे पिछले साल सितम्बर तक 5600 माताओं को अपने शिशुओं की जिंदगी बचाने में मदद मिली थी.
बहरहाल, जहां मां के दूध और उसकी बैंकिंग की इतनी अधिक महत्ता और जरूरत है, वहां यह परिदृश्य निराश करने वाला है कि अभी हमारे देश में न तो इसके बैंकों की स्थापना पर कोई जोर रहा है और न ही इसे लेकर पर्याप्त जागरूकता है. स्वास्थ्य राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने बताया था कि देश में एक भी सरकारी मानव दूध बैंक नहीं है, जिसके बाद केंद्र सरकार ने इस बारे में दिशा-निर्देश जारी करने का संकेत दिया था. इसी के बाद दिल्ली के लेडी हॉर्डिंग मेडिकल कॉलेज में ऐसा पहला बैंक स्थापित किया गया. हालांकि, यह भी सच है कि सरकार पिछले ही साल 'मां-मदर्स एब्सॉल्यूट अफेक्शन' स्लोगन के तहत देशव्यापी स्तनपान संबंधी कार्यक्रम की शुरुआत कर चुकी है पर इसे लेकर ज्यादा उत्साहवर्धक नतीजे सामने नहीं आ सके हैं.
ब्राजील में दुनिया का सबसे बड़ा ह्यूमन मिल्क बैंक नेटवर्क है. अकेले ब्राजील में ऐसे 221 बैंक हैं, जबकि पूरी दुनिया में मानव दुग्ध बैंकों की संख्या भारत के पहले बैंक को मिलाकर 293 ही है. यूनिसेफ के मुताबिक, ब्राजील में ऐसे बैंकों की मदद से शिशुओं की मृत्युदर में 80 प्रतिशत तक की कमी लाने में सफलता मिली है. ऑस्ट्रेलिया में भी ऐसे बैंकों की बदौलत अब तकरीबन 90 फीसद शिशुओं को मां का दूध मिल पा रहा है. जरूरत है कि न सिर्फ जरूरतमंद शिशुओं को मानव दुग्ध बैंकिंग से मां का दूध उपलब्ध कराया जाए, बल्कि माताओं में भी इससे संबंधित जागृति लाई जाए.
| Tweet![]() |