अभिव्यक्ति पर अंकुश कहां
पिछले कुछ समय से मीडियाकर्मिंयों और बुद्धिजीवियों का एक वर्ग ऐसा माहौल बना रहा है, मानो देश में नरेन्द्र मोदी सरकार बनने के बाद मीडिया के लिए आपातकाल जैसी स्थिति पैदा कर दी गई है.
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यानी मोदी सरकार की हां-में-हां मिलाओ, उसकी प्रशंसा करो नहीं तो आपके खिलाफ कार्रवाई होगी. हाल में एनडीटीवी के मालिक प्रणय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय के आवास एवं उनके देहरादून के दूसरे ठिकानों पर मारे गए छापे के बाद मीडिया के साथ सरकार के व्यवहार को लेकर आलोचना कुछ ज्यादा ही तीखी हो गई है.
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने इसके विरोध की अगुवाई की जहां एकत्रित कुछ पत्रकारों ने सरकार पर तीखे हमले किए. इस बात से कोई असहमत नहीं हो सकता कि किसी देश में पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को उनके काम की पूरी आजादी होनी चाहिए. पत्रकारिता संसदीय लोकतंत्र के लिए शुद्ध रक्त संचरण की भूमिका निभाती है. मेरा तो यहां तक मानना है कि अगर कोई मीडिया संस्थान सरकार से वैचारिक असहमति रखता है तो उसे भी अपना विचार सतत व्यक्त करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए. सही और गलत का निर्णय जनता पर छोड़ देना चाहिए. हालांकि, इसका दूसरा पक्ष यह है कि वैसी स्थिति में यदि उस मीडिया संस्थान की आलोचना होती है तो उसे भी सहन करने का धैर्य दिखाना चाहिए.
एनडीटीवी विशेषकर इसका हिन्दी संस्करण मोदी सरकार के विरोधी संस्थान की भूमिका में कई बार दिखता है. किंतु इस कारण से सरकार ने उससे बदला लेने की नीति अपनाई यह तथ्यों से मेल नहीं खाता. इसी प्रकार कुछ लोग यह प्रचार कर रहे हैं कि भाजपा के एक प्रवक्ता संबित पात्रा को एनडीटीवी की बहस से उठकर जाने के लिए कह दिया गया, उसके विरुद्ध सीबीआई का छापा पड़ गया. ऐसे देश नहीं चलता है. वैसे भी सीबीआई ने एनडीटीवी के समाचार या प्रसारण संस्थानों पर छापा नहीं मारा. यह बात भी ध्यान रखने की है कि एनडीटीवी के मालिकों पर जितने मामले हैं सब मोदी सरकार के आने के पहले के हैं.
आयकर विभाग, प्रवर्तन निदेशालय एवं सीबीआई तीनों ने एनडीटीवी से जुड़ी हुई कंपनी आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड पर कई प्रकार की वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाकर मामला दायर किया है. जिस आईसीआईसीआई बैंक के मामले की लोग बात कर रहे हैं वह मामला 2008 का है.
आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड को प्रणय रॉय की निजी गारंटी पर बैंक ने 366 करोड़ का कर्ज दिया. इसके एवज में एनडटीवी के शेयर गिरवी रखे गए, जिसका मूल्य उस समय कर्ज से ज्यादा था. मजे की बात कि एक ही वर्ष में आईसीआईसीआई ने कर्ज को समाप्त करने के लिए सेटलमेंट कर लिया, जिसमें ब्याज के एक बड़े भाग को खत्म करने पर सहमति बनी जो करीब 48 करोड़ रुपये का था. सीबीआई का कहना है कि राय ने आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड के खाते से उतना धन निकाल लिया. इसके आधार पर आईसीआईसीआई एवं एनडीटीवी दोनों पर आपराधिक षडयंत्र का मामला बनाया गया है. सीबीआई ने प्रवर्तन निदेशालय के एक पत्र के आधार पर प्राथमिकी दर्ज किया.
सीबीआई और आयकर विभाग एनडीटीवी पर पहले से एक मामले की जांच कर रही है, जिसमें विदेशी संस्थान से धन लेकर उसके 80 प्रतिशत से भी कम राशि पर सेटलमेंट कर लिया गया. यह किस आधार पर हुआ और क्यों हुआ इसका उत्तर तो देश की कानूनी एजेंसियों को चाहिए. किंतु जो लोग मीडिया की आजादी के नाम पर छाती पीट रहे हैं उनके लिए यह जानना आवश्यक है कि एनडीटीवी का बहुमत शेयर आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड के पास है.
क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इस मीडिया कंपनी ने 2006 से 2012 के बीच ब्रिटेन, नीदरलैंड, स्वीडन और मॉरिशस आदि में 33 शेल कंपनियां बनाई, जिसके माध्यम से 1100 करोड़ रुपये की राशि जमा किया. आयकर विभाग का कहना है कि इस 1100 करोड़ रु पया में से 400 करोड़ रुपया मॉरिशस आधारित एक शेल कंपनी के माध्यम से एनडीटीवी को स्थानांतरित हो गए. जो 700 करोड़ रुपया बचा ब्रिटेन एवं नीदरलैंड में उनमें से 400 करोड़ रुपया ऐसे निवेशकों को वापस किए गए, जिनकी कोई पहचान नहीं है. शेष 300 करोड़ रुपया का कोई हिंसाब नहीं मिला है. इन सबमें यहां विस्तार से जाने की आवश्यकता नहीं है.
संक्षेप में इतना ही काफी है. अब यहां प्रश्न उठता है कि एक मीडिया कंपनी, जिसका काम समाचार और विचार प्रसारित करना है वह इस तरह विदेशों में शेल कंपनियां बनाकर क्या कर रही थी? यह किस मीडिया की भूमिका में आता है? या तो आप अपने देश में कर बचाना चाहते हैं या कोई निवेशक आपको भी लाभ पहुंचाना चाहता है और अपना भी, वह आपकी मूल कंपनी में निवेश नहीं कर सकता या फिर आप हवाला का कार्य करते हैं. शेल कंपनियों का इसके अलावा और क्या उद्देश्य हो सकता है. हम जानते हैं कि विदेशी निवेश पर भी कई प्रकार की छूट मिलती है, जो देश में निवेश करने पर नहीं मिलती है. जाहिर है, जब छानबीन हो रही है तो धीरे-धीरे सारा सच सामने आ रहा है. मामला दर्ज हुआ है तो छापा पड़ेगा ही. अगर प्रणय रॉय और राधिका रॉय को लगता है कि छापा गैर कानूनी है या उनको परेशान करने के लिए है तो उन्हें न्यायालय की शरण में जाना चाहिए. किंतु ये न्यायालय नहीं जा रहे हैं. क्यों? सच यह है कि मीडिया संस्थानों को और पत्रकारों को काम करने की उतनी ही आजादी है जितनी पहले थी और यह कायम रहेगी.
हर सरकारें चाहतीं हैं कि मीडिया उनके अनुकूल बने और उसके लिए मान्य रास्ते से प्रयत्न भी करती हैं. इस तरह का प्रयत्न वर्तमान सरकार के लोग भी कर रहे होंगे और इसे अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता. इसमें पत्रकारों को तय करना है कि ऐसे प्रयासों के बीच वे अपनी ईमानदारी और निष्पक्षता बनाए रखें. किंतु इसके अलावा यह आरोप कि मोदी मीडिया विरोधी है, अपने विरोधियों के खिलाफ किसी तरह कार्रवाई कर वह अन्य संस्थानों और पत्रकारों को डरा रहे हैं, निराधार है और वैसे लोगों द्वारा लगाए जा रहे हैं जिनका अपना निहित स्वार्थ है.
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