मम्मी, मैं सीखूंगा गोली चलाना
यह फिल्मी गाना साठ-सत्तर के दशक का हिट गाना था. रेडियो पर बजा करता.
![]() सुधीश पचौरी (फाइल फोटो) |
बच्चों के जन्मदिन पर गाया-बजाया जाता! मेहमानों के आगे माता-पिता बच्चे से कहा करते गुडडू जरा गोली चलाने वाला गाना सुना और वह किसी पुतले की तरह अटेंशन में खड़ा होकर पूरा गाना गाता : मम्मी, मैं भी सीखूंगा गोली चलाना, लीडर न बनूंगा, मुझे फौजी आफीसर बनाना, मम्मी मैं तो सीखूंगा गोली चलाना!
चीन के साथ हुआ सन बासठ वाला युद्ध निपट चुका था. युद्ध के दौरान रेडियो जो खबरें देता उनमें एक लाइन ध्यान खींचती कि \'हमारी सेनाएं बहादुरी के साथ पीछे हट रही हैं\'. तब \'बहादुरी के साथ पीछे हटना\' भी अच्छा लगता. यह अपनी वीरता का गायन था. किशोरावस्था में देशभक्ति और फौज की वीरता यों भी सबको भाती है. इस गाने का असर गहरा रहा. इस में व्यक्त बाल-वीरता के भाव ने फौजी ड्रेस का एक नया बाजार खड़ा कर दिया था. बच्चों के लिए फौजी रंग वाली पूरी ड्रेसें बिकने लगी थीं. इस ड्रेस में फौजी वाले हरे रंग की शर्ट पेंट अफसरों वाली टोपी, कंधे से जेब तक आती एक बुनी हुई रस्सी और हाथ में पतला-सा डंडा होता, जिसे हाथ में लेकर या बगल में दबाकर फिल्मी फौजी अफसर अक्सर बात करते दिखा करते थे.
शायद \'बहादुरी के साथ पीछे हटने\' का भाव ही था, जिसने वीरता की ऐसी पापूलर मांग पैदा की जिसकी पूर्ति के लिए एक फिल्मी गाना बनाया गया और उसे सपोर्ट करने वाली फौजी ड्रेस की पूरी इंडस्टी रातों रात खड़ी कर दी. इस गाने के जरिए फौज और फौजी अफसर का एक बेहद सरल रूप खड़ा कर दिया गया. फौजी अफसर होने का मतलब गोली चलाने वाला हो गया. बालक कहता कि मैं गोली चलाना सीखूंगा ताकि फौजी अफसर बन पाऊं. यह बालबुद्धि के अनुकूल ही था. बर्थडे पर बच्चे यह गाना जरूर गाते. मध्यम वर्ग के बर्थडे वाले बालक इस ड्रेस को उस दिन पहनते और मार्च पास्ट टाइप तक करते दिखते.
फिर, पाक से पैंसठ का युद्ध हुआ, इकहत्तर में युद्ध हुआ. बांग्लादेश बना. पाकिस्तान के हजारों कैद कर लिए गए सैनिक छोड़े गए और न जाने क्या क्या हुआ. लेकिन अजीब चीज यह भी हुई कि इस गाने का बजना भी बंद हो गया. वह ड्रेस कुछ दिनों तक किसी-किसी दुकान में लटकी दिखती रहीं और फैंसी डेस के स्कूली शोज के लिए अब भी दिल्ली के किनारी बाजार में लटकी दिख सकती हैं, लेकिन उस फौजी ड्रेस का जोर उतना न रहा. पता नहीं क्या हुआ कि साठ-सत्तर के दशक की यह बाल वीरता और फौजी अफसर बनने की बाल आकांक्षा पिचहत्तर के बाद बजनी बंद हो गई. बालसुलभ वीरता के भाव के हृास के कारणों का पता तो किसी समाजशास्त्री या फैशनशास्त्री को लगाना चाहिए कि साठ-सत्तर के बीच वाले दशक में बालकों में फौजी अफसर बनने की ललक किस तरह एक गाने में बदली और फिर फौजी कामना का एक बाजार बना और फिर अचानक \'आउट ऑफ फैशन\' हो गया तो क्यों?
हमारे अनुसार उस गाने को बजाने वाला वीर बालक गायब नहीं हुआ बल्कि बड़ा होकर वह एक अंग्रेजी चैनल का एंकर बन गया और इन दिनों टीवी के चैनलों में खबरें पढ़ा करता है. चरचा कराया करता है, वहीं अपनी वीरता दिखाता रहता है. जब-जब बॉर्डर पर कुछ होता है, वह भड़क उठता है. पाकिस्तान के रिटार्यड जनरलों और अपने रिटार्यड जनरलों के बीच बातों के तीर चलवा कर अपने वीर वचनों के जरिए नए युद्धोन्माद को प्रसारित करता रहता है. जरा भी किंतु-परंतु करने वाले को सीधे देशद्रोही राष्ट्रद्रोही कहकर उनको पाकिस्तान जाने को सलाह देता रहता है. लेकिन पता नहीं एक दिन क्या और क्यों हुआ कि अंग्रेजी के सबसे वीर चैनल का एक परमवीर एंकर अपनी वीरता दिखाते-दिखाते न जाने कहां बिला गया और अब सुनते हैं कि एक नया अंग्रेजी चैनल लेकर आ रहा है.
इन दिनों एक और अंग्रेजी एंकर उसकी कमी पूरा कर रहा है. फौजी फिटिंग वाली जेकिट-सी पहने रहता है. वीर भाव से ऐसा चूर-चूर कि आम दुर्घटना की खबर तक को वीर भाव से सुनाता है. कभी कश्मीर या पाकिस्तान की बात होती है तो बातों की गोलियां चलाने लगता है. अच्छा लगता है कि कोई तो है जो देश बचाए हुए है वरना \'देशद्रोही\' तो इसे \'बर्बाद\' कर देते. पता नहीं क्यों, मुझे यह वीर एंकर उसी बालक की तरह दिखता है जो साठ के दशक में गोली चलाने के लिए मचलता था. फर्क इतना ही है कि वह गाना गाता था. ये बातों की गोली चलाता है. बदले में लाखों रुपये महीने की तनखा पाता है.
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