रेल बजट : आत्मनिर्भरता के ट्रैक पर दौड़े
विगत 93 सालों में पहली बार वित्तमंत्री अरुण जेटली द्वारा रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बनाकर पेश किया गया.
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इस बजट का फोकस रेलवे का बुनियादी ढांचा मजबूत करना और रेलवे का राजस्व घाटा कम करना दिखाई दे रहा है. रेल बजट को निजीकरण की तरफ ले जाने के संकेत भी नये बजट में दिखाई दे रहे हैं. रेलवे के वर्ष 2017-18 के नए बजट के तहत यात्रा किराया और मालभाड़े में किसी तरह की कोई बढ़ोत्तरी भी नहीं की गई है और न ही कोई नई ट्रेन घोषित की गई.
रेल बजट के संबंध में वित्तमंत्री जेटली द्वारा कई प्रमुख घोषणाएं की गई हैं. नई मेट्रो रेल नीति लाई जाएगी. 3500 किलोमीटर नई रेल लाइन बिछाई जाएगी. पर्यटन और तीर्थ के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जाएंगी. आईआरसीटीसी से टिकट बुकिंग पर सर्विस टैक्स खत्म किया गया है. 500 स्टेशन विकलांगों की सुविधा के मुताबिक बनाए जाएंगे. रेलवे स्टेशनों पर लिफ्ट और एस्केलेटर्स लगाए जाएंगे. 300 स्टेशनों से यह शुरुआत की जाएगी. 2019 तक सभी ट्रेनों में बॉयो टॉयलेट लगाए जाएंगे. साथ ही 2020 तक मानवरहित क्रॉसिंग पूरी तरह से खत्म की जाएगी. 7000 रेलवे स्टेशनों पर सौर ऊर्जा की सुविधा दी जाएगी. शुरुआत में 25 स्टेशनों को चयनित करके विकसित किया जाएगा. रेल कोच से संबंधित शिकायतों को दूर करने के लिए सरकार के द्वारा कोच मित्र सुविधा शुरू की जाएगी. रेल के किराये-भाड़े का निर्धारण लागत, सामाजिक जिम्मेदारी और प्रतिस्पर्धा के आधार पर किया जाएगा.
वित्तमंत्री जेटली ने आम बजट के साथ रेल बजट प्रस्तुत करते हुए इस परिदृश्य को ध्यान में रखा कि भारतीय रेलवे संतोषजनक स्थिति में नहीं है. रेलों की संख्या कम पड़ रही है. सुविधाओं का भारी अभाव है. रेलवे पहले से कहीं अधिक चुनौतियों का सामना करते हुए दिखाई दे रही है. भीड़ बढ़ गई है और सेवाओं का स्तर घट रहा है. रेल लाइनों पर रोजाना दौड़ने वाली 19 हजार 700 गाड़ियों में से 12 हजार 300 यात्री ट्रेनों में रोजाना तकरीबन 2.50 करोड़ यात्री सफर करते हैं. इन यात्रियों की सुविधाएं लगातार घट रही हैं. भारतीय रेल के आठ हजार से ज्यादा रेलवे स्टेशनों में से करीब 4,300 से अधिक रेलवे स्टेशनों पर अभी भी बुनियादी सुविधाओं का भारी अभाव है. चूंकि रेल पटरियों पर दौड़ती ट्रेन असुविधा और असुरक्षा का पर्याय बन गई है. समुचित सुरक्षा मानकों की अनुपस्थिति की वजह से रेल दुर्घटनाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है. इन सब रेलवे मुश्किलों के मद्देनजर नये बजट में यात्री सुविधाओं का विस्तार किया गया है. रेल यात्रा को ज्यादा सुविधाजनक, सुरक्षित और कस्टमर फ्रेंडली बनाने के मद्देनजर कदम उठाए गए हैं.
वित्तमंत्री ने रेल बजट से संबंधित जो प्रावधान किए हैं, उनसे सामान्य रेल यात्रियों को कुछ राहत जरूर मिलेगी. चूंकि रेलवे के पास एसी क्लास के उपभोक्ताओं की संख्या करीब दो फीसद है, जबकि 98 फीसद भार स्लीपर क्लास, जनरल क्लास और लोकल ट्रेनों के यात्रियों का है. इनमें आरक्षित श्रेणी के कोचों में रोजाना सिर्फ दस लाख यात्रियों के सफर के लिए बर्थ और सीट उपलब्ध कराने की क्षमता रेलवे के पास है. बाकी यात्री जैसे-तैसे यात्रा करने को विवश हैं. ऐसे में रेलों में जनरल क्लास के कोच में सुविधा से बड़ी संख्या में सामान्य रेलयात्रियों को लाभ मिलेगा. नये बजट में इस तथ्य पर भी ध्यान दिया गया है. ऐसे में एक बड़ी राशि रेलवे में सुरक्षा मानकों को मजबूत करने, लाइनों का विद्युतीकरण और दोहरीकरण करने, यार्डस के आधुनिकीकरण और ट्रैफिक को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए सुनिश्चित की गई है. चाहे रेलवे के बजट के लिए वर्ष 2017-18 के आम बजट में 1 लाख 31 हजार करोड़ रुपये रखे गए हैं. फिर भी रेलवे के समक्ष कदम-कदम पर वित्तीय चुनौतियां होंगी. चूंकि, रेलवे की कमाई का 54 फीसद पैसा स्टॉफ के वेतन, भत्ते, पेंशन पर खर्च हो रहा है और आय का अधिकतर हिस्सा परिचालन में खर्च होने से भी रेलवे का विकास थम गया है.
इसी प्रकार, जहां राजस्व वृद्धि 2.8 प्रतिशत की धीमी रफ्तार से बढ़ रही है, वहीं रेलवे की लागत 10.9 प्रतिशत की तेज दर से बढ़ने के कारण रेलवे को जरूरी निवेश की दिशा में कठिन चुनौती स्पष्ट दिखाई दे रही है. उल्लेखनीय है रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने पिछले वर्ष रेलवे में पांच साल के लिए निवेश का जो खाका तैयार किया था, उसके मद्देनजर नये रेल बजट में उपयुक्त प्रावधान नहीं हैं. रेल मंत्रालय ने नये बजट के तहत जो बजटीय सहायता की मांग की थी, उस परिप्रेक्ष्य में आवंटन कम है. निश्चित रूप से वर्ष 2017-18 के लिए रेल बजट के प्रावधान विभिन्न समितियों की सिफारिशों के मद्देनजर रेलवे को माल ढुलाई के मामले में सक्षमता के लिहाज से प्रतिस्पर्धी बनाते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं. रेलवे नेटवर्क को अवरोध रहित बनाने, नेटवर्क का विस्तार, सिग्नलिंग क्षमता सुधारने के लिए तकनीक का उपयोग बढ़ाने में भी वित्तमंत्री के कदमों की गति धीमी है. वर्ष 2017-18 के रेल बजट के मद्देनजर वित्तमंत्री कई और अपेक्षाओं में दूर रह गए. रेलवे की आय बढ़ाने के लिए मालगाड़ी में वैगनों की भार क्षमता बढ़ाई जानी चाहिए थी.
तकरीबन सभी सवारी गाड़ियों में 24 डिब्बों का एकमान्य तरीका अपनाया जाना चाहिए था तो ऐसे एकीकरण के कारण आमदनी और यात्री सुविधाओं को बढ़ाया जा सकता था. विभिन्न जंक्शनों के बीच गाड़ियों को रोकना कम किया जाना चाहिए था ताकि ट्रेन की गति को कायम रखा जा सके. रेलवे के लिए स्वतंत्र नियामक की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए थी ताकि टैरिफ तय करने, निजी क्षेत्र के साथ मेलजोल बढ़ाने और रेलवे प्रतिष्ठान को सेवा के स्तर पर जवाबदेह बनाया जा सके. वित्तमंत्री और रेलमंत्री को यह देखना होगा कि यात्रा की सुगमता व सुरक्षा के लिए 2020 तक के लिए निधरारित लक्ष्यों की ओर रणनीतिक रूप से आगे बढ़ा जाए.
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