मिजल-रूबीला : तेज करने होंगे प्रयास

Last Updated 03 Feb 2017 05:14:48 AM IST

अपने मुल्क भारत में हर साल 2.6 करोड़ बच्चे जन्म लेते हैं और तकरीबन 11.4 लाख बच्चे अपना 5वां जन्म दिन मनाने से पहले ही मर जाते हैं.


मिजल-रूबीला : तेज करने होंगे प्रयास

इनमें से अधिकतर की जिंदगी बचाई जा सकती है क्योंकि उन बीमारियों का इलाज है. भारत में सालाना करीब 30 प्रतिशत बच्चों को जीवनरक्षक वैक्सीन नहीं मिल पाता. इन्हें रोगों से बचाने के लिए सरकार ने टीकाकरण में प्रयास तेज किए हैं.

फरवरी के पहले हफ्ते मिजल-रूबीला (एमआर) यानी खसरा-रूबीला वैक्सीन भी इस टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल हो जाएगा. यह एक वैक्सीन खसरा के खिलाफ संरक्षण प्रदान करेगा व इसके साथ ही रूबीला से होने वाले जन्मजात दोषों से भी. इस वैक्सीन का विस्तार मुल्क के राज्यों में चार चरणों में होगा. पहले चरण की शुरुआत 7 फरवरी को तमिलनाडु, कर्नाटक, लक्षद्वीप व पुडुचेरी से होगी, जिसमें 9 माह से 15 साल के करोड़ों बच्चों को कवर किया जाएगा और सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों व स्कूलों में सरकार इसे मुफ्त मुहैया कराएगी. केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय का लक्ष्य 2020 तक खसरा व रूबीला का पूरी तरह से उन्मूलन करना है. खसरा एक ास-रोग है व छोटे बच्चों की मौतें का एक प्रमुख कारण भी है. यह एक संक्रामक रोग है, जिन बच्चों का प्रतिरक्षातंत्र मजबूत नहीं होता, उनकी इसके वायरल की चपेट में आने की आशंका रहती है.

अगर कोई बच्चा इसकी चपेट में आ जाता है तो पहले कुछ हफ्तों में उसका प्रतिरक्षातंत्र कमजोर पड़ जाता है तो ऐसे हालात में सामान्य जुकाम व डायरिया भी जानलेवा बीमारी साबित हो सकता है. गौरतलब है कि 2015 में खसरे के कारण दुनियाभर में करीब 1 लाख 34 हजार 200 मौतें हुईं और भारत में सालाना करीब 49000 मौतों की वजह खसरा है. यह हालात तब हैं, जबकि इसका इलाज बहुत ही सस्ता है. प्रति बच्चा खसरा वैक्सीन की कीमत एक अमेरिकी डॉलर से भी कम है. भारत में खसरा कवरेज सव्रे बताते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर कवरेज कभी भी 80 फीसद से ऊपर नहीं गई, जबकि इस बीमारी के उन्मूलन के लिए खसरा के लिए बच्चों को दी जाने वाली पहली व दूसरी खुराक में 95 फीसद कवरेज की जरूरत है. रूबेला गर्भवती महिलाओं व बच्चों की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित करती है.

अगर कोई गर्भवती महिला गर्भावस्था की प्रारंभिक अवस्था में रूबेला के इंफेक्शन से ग्रस्त हो जाती है तो रूबेला सीआरएस (कॅनजेनिटल रूबेला सिंड्रोम) बन सकती है, जिसके गर्भ में पल रहे भ्रूण व नवजात शिशु के लिए घातक परिणाम हो सकते हैं. ऐसे बच्चों को कम सुनाई पड़ना, मोतियाबंद, ग्लूकोमा, दिमाग का पूरी तरह से विकसित नहीं होना और दिल की बीमारी होने की आशंका अधिक रहती है. ऐसा बच्चा दूसरों पर निर्भर रहता है. रूबेला का संक्रमण मानव से मानव फैलता है, लिहाजा इसका उन्मूलन संभव है.

भारत सरकार इसी दिशा में बढ़ रही है.’ वैसे अमेरिकाई क्षेत्र से रूबेला खत्म हो गया है. यूरोप के कुछ मुल्कों में यह मौजूद है. भारत में सालाना करीब 25000 बच्चे सीआरएस से प्राभावित होते हैं. मुल्क के बच्चे स्वस्थ जिंदगी जिए, इसी नजरिए से केंद्रीय स्वास्थ्य व बाल कल्याण मंत्रालय सात फरवरी से एमआर वेक्सीन अभियान शुरू कर रहा है. सात फरवरी से शुरू होने वाले पहले चरण में तमिलनाडु, कर्नाटक, लक्षद्वीप व पुडुचेरी को चुना गया है. यहां पहले सरकारी व निजी स्कूलों में पढ़ने वाले 5-15 आयुवर्ग के बच्चों को एमआर वैक्सीन दिया जाएगा. फिर सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों व आंगनबाड़ी केंद्रों में छोटे बच्चों को.

यूनिसेफ के हेल्थ विशेषज्ञ का कहना है कि 5-15 आयुवर्ग के बच्चों तक पहुंच के लिए स्कूलों में अभियान चलाना एक कारगर वैश्विक रणनीति है. भारत भी उसी का अनुसरण करता है. एमआर वैक्सीन के लिए इन राज्यों के स्कूलों में तमाम जरूरी बंदोबस्त कर दिए गए हैं. उनकी सलाह है कि अभिभावक घबराएं नहीं. अगर किसी बच्चे ने पहले से ही खसरे वाली डोज ली है तो भी एमआर वैक्सीन लेना चाहिए. इससे कोई नुकसान नहीं होगा बल्कि यह डबल सुरक्षा कवच का काम करेगा.’ गौरतलब है कि तीन साल पहले नेशनल वैक्सीन एडवाइजरी बॉडी ने एमआर वैक्सीन को टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करने को कहा था. तीन साल बाद अब सरकार इसके लिए तैयार है. केंद्रीय स्वास्थ्य व बाल कल्याण मंत्रालय को उम्मीद है कि समयबद्व कार्यक्रम की मदद से 2020 तक मुल्क से खसरा व रूबीला उन्मूलन का लक्ष्य हासिल करना संभव है.

अलका आर्य
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment