बीसीसीआई : प्रशासकों की राह नहीं आसान
सुप्रीम कोर्ट द्वारा भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के संचालन के लिए नियुक्त प्रशासकों के पैनल ने कामकाज तो संभाल लिया है और उन्होंने आते ही जिस तरह से बीसीसीआई के संयुक्त सचिव अमिताभ चौधरी को चयन समिति की बैठक में संयोजक के तौर पर भाग लेने से रोका.
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उससे यह तो साफ है कि अदालत द्वारा निर्धारित नियमों के हिसाब से ही काम होगा.
असल में बांग्लादेश के खिलाफ होने वाले एकमात्र टेस्ट के लिए टीम का दिल्ली में चयन होना था और बहस का मुद्दा यह था कि चयन समिति की बैठक को कौन बुलाएगा? अमिताभ चौधरी ने बीसीसीआई के संयुक्त सचिव होने के नाते बैठक बुलाई. लेकिन प्रशासकों के पैनल के मुखिया विनोद राय ने उन्हें इस काम के लिए अयोग्य बताते हुए बीसीसीआई सीईओ राहुल जोहरी से बैठक में संयोजक के तौर पर भाग लेने को कहा. इससे यह तो साफ हो गया कि आगे से बीसीसीआई और राज्य एसोसिएशनों के कामकाज में लोढ़ा समिति की सिफारिशों के हिसाब से पात्रता रखने वाले पदाधिकारी ही भाग ले सकेंगे.
साफ है कि बीसीसीआई और उससे संबद्ध राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों में जब तक लोढ़ा समिति की सिफारिशें पूरी तरह लागू नहीं हो जातीं और नये चुनाव नहीं हो जाते, तब तक राय की अगुआई वाला प्रशासकों का पैनल काम करता रहेगा. पर इस पैनल की राह कोई आसान नहीं रहने वाली है. उनके सामने पहली समस्या आईसीसी बैठक के रूप में आने वाली है. सुप्रीम कोर्ट ने चार फरवरी को होने वाली इस बैठक में भाग लेने के लिए बीसीसीआई के संयुक्त सचिव अमिताभ चौधरी को अनुमति दे दी थी. पर यह भी कहा कि अमिताभ बैठक में प्रशासक विक्रम लिमये के साथ भाग लेंगे. यहां समस्या यह है कि आईसीसी बोर्ड बैठक में में एक देश का एक ही प्रतिनिधि भाग ले सकता है. आईसीसी दूसरे प्रतिनिधि को भाग लेने की अनुमति क्यों देगा? असल में एन श्रीनिवासन के आईसीसी चेयरमैन रहने के दौरान भारत को कुल राजस्व का 22 प्रतिशत देने का फैसला किया गया था. पर अब आईसीसी सभी सदस्यों को बराबर हिस्सा देना चाहता है.
इसलिए बीसीसीआई का पक्ष रखने के लिहाज से बहुत ही महत्त्वपूर्ण बैठक है. इस पैनल के सामने दूसरा बड़ा काम आईपीएल का सुचारू संचालन कराना होगा. इसमें भाग लेने वाली फ्रेंचाइजियों को अभी तक यह नहीं मालूम है कि टीमों के लिए खिलाड़ियों की नीलामी कब होगी. पहले नीलामी की तारीख चार फरवरी रखी गई और फिर बोर्ड के हालात के मद्देनजर इस तारीख को बढ़ाने का फैसला कर लिया. इससे लगता है कि महीने के आखिर तक ही खिलाड़ियों की नीलामी हो पाएगी. यह सभी जानते हैं कि आईपीएल भारतीय क्रिकेट की कमाई का बड़ा साधन है. इसलिए प्रशासकों के लिए आईपीएल का सफल संचालन बहुत ही जरूरी है. आईपीएल के इस संस्करण के लिए अभी कोई भी करार नहीं हुआ है. इन करारों को करने में महीनों लगते हैं. लेकिन विनोद राय की अगुआई वाले पैनल के सामने इस काम के लिए ज्यादा समय नहीं है. लेकिन प्रशासक बहुत ही पेशेवर हैं, इसलिए वह इस काम को बिना किसी दिक्कत के कर सकते हैं.
हां, इतना जरूर है कि वह यदि आईपीएल से बीसीसीआई को उम्मीदों के मुताबिक धन मुहैया करा सके तो साफ हो जाएगा, इसका संचालन करने वाले दिग्गजों की कोई अहमियत नहीं है और इस काम को बिना उनके भी किया जा सकता है. प्रशासकों को सुप्रीम कोर्ट से कई मामलों में स्पष्टीकरण लेना होगा. इसमें सबसे प्रमुख बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों में कार्यकाल को लेकर है. पहले कहा गया था कि कुल कार्यकाल नौ साल हो सकता है और हर कार्यकाल के बाद एक तीन साल का कूलिंग पीरियड जरूरी है. लेकिन बाद में बताया गया कि बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट एसोसिएशन में नौ-नौ साल के कार्यकाल हो सकते हैं. यह सही है कि लोढ़ा समिति की सिफारिशों के पूरी तरह से लागू होने और उसके बाद नए चुनाव होने तक यह प्रशासकों का पैनल काम करता रहेगा. पर इतना तय है कि जितनी जल्दी बीसीसीआई में सुधार हो जाएंगे, देश की क्रिकेट के लिए भी उतना ही अच्छा होगा. पैनल को यह भी ध्यान रखना होगा कि सालों से जमे पदाधिकारी कहीं अपने डमी लोगों से तो बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट एसोसिएशनों पर तो काबिज नहीं करा रहे हैं. अगर ऐसा हुआ तो भारतीय क्रिकेट को फायदा होने के बजाय नुकसान हो जाएगा.
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